एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी

कमलजीत कौर संधू एक पूर्व भारतीय महिला एथलीट हैं। उन्होंने 1970 बैंकाक एशियाई खेलों में 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था। 

जिस दौर में घर-गृहस्थी को संभालना ही एक लड़की का भविष्य होता है, उस समय वह खेल की दुनिया में मेडल जीत कर ला रहीं थीं। 

भारतीय महिला एथलीट खासकर ग्रामीण परिवेश से आनेवाली महिलाओं का सफर खेलों में आसान नहीं था। भारतीय महिला एथलीटों को सामाजिक व्यवस्था द्वारा हर कदम पर चुनौती का सामना करना पड़ता है।

यह कह कर पीछे हट जाना आसान है कि हमें अवसर नहीं मिले, लेकिन कुछ करने का जज़्बा रखने वाली महिलाओं ने हमेशा हर दौर में अपने अवसर स्वयं बना लिए।

कमलजीत कौर संधू एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। 

मेहनत और लगन से अवसरों के हर बंद दरवाजों को खोला जा सकता है। आपनी योग्यता में हर दिन निखार और निरंतरता ही आपके लक्ष्य की ओर पंहुचने की महत्त्वपूर्ण कड़ी होती है।

कमलजीत कौर को खेल जगत में अतुलनीय योगदान के लिए 1971 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । 

1971 में, वह 400 मीटर की दौड़ में ट्यूरिन, इटली में आयोजित वर्ल्ड विश्वविद्यालय खेलों में फाइनल में पहुँचने वाली महिलाओं में से एक थी । 

उन्होंने 1973 म्युनिक ओलंपिक में महिलाओं की 400 मीटर दौड़ में भाग लिया। कमलजीत कौर एथलीट के रूप में 1973 मे सेवानिवृत्त हुई। वह एक राष्ट्रीय स्तर की बास्केटबॉल और अंतर विश्वविद्यालय हॉकी खिलाड़ी भी थीं । 

1982 में उन्होंने भारतीय महिला स्प्रिंट टीम के कोच के रूप में एशियाई खेलों में भाग लिया। 

भारतीय एथलीट के तौर पर कई उपलब्धियां अपने नाम करने वाली कमलजीत कौर संधू खेलों में आनेवाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं।

तो आइये जानते हैं इस महिला खिलाड़ी का सफर…

यह भी पढ़ें- कॉमन वेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी

प्रारंभिक जीवन

कमलजीत कौर संधू का जन्म 1948 में पंजाब में हुआ था। उनके पिता का नाम मोहिंदर सिंह कौर है। उनके पिता खुद एक खिलाड़ी थे जो अपने कॉलेज के दिनों में हॉकी खेलते थे। उनका परिवार मिलिट्री सर्विस से संबंध रखता है। 

वह एक शिक्षित परिवार से आती हैं। अपनी चार बहनों में वह दूसरे नंबर की हैं।

वह बचपन से ही खेलों में गहरी रूचि रखती थीं । स्कूल के दौरान वह हर खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया करती थीं। उनकी यह प्रतिभा देखकर उनके पिता ने अपने मित्र राजा करणी सिंह से सलाह मांगी और उन्हें खेल वाले स्कूल में एडमिशन दिला दिया। 

उस समय लड़कियों को किसी शारीरिक या खेल स्पर्धा में शामिल नहीं किया जाता था। और ना ही उनसे खेल-कूद की कोई उम्मीद की जाती थी। 

उस समय लड़कियों के खेलने को बिल्कुल सही नहीं माना जाता था। 

कमलजीत कौर की खेलों में रूचि देखकर उनकी माँ कहा करती थीं कि इस तरह से तो वह रोटी बनाना नहीं सीख पाएंगी। हालांकि, उनके पिता उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया करते थे। 

लेकिन उन्होंने हर रूढ़िवादी सोच को गलत साबित किया और खेलों में हिस्सा लेकर खुद की एक पहचान बनाई। धीरे-धीरे लोग उन्हें जानने लगे। 

यह भी पढ़ें- एक दुर्घटना में अपने दोनों पैर और बायां हाथ खोने के बाद कैसे बनी पैरा शूटर  

खेल सफर

कमलजीत कौर चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय में शारीरिक शिक्षा विभाग में शामिल हुईं । 

साल 1967 में उन्होंने नेशनल चैम्पियनशिप में 400 मीटर की दौड़ में हिस्सा लिया। लेकिन अनुभव और प्रशिक्षिण की कमी की वजह से वह रेस पूरी नहीं कर पाईं । हार के बावजूद कमलजीत ने वहां मौजूद लोगों को बहुत प्रभावित किया। 

राजा करणी सिंह ने एशियन खेलों में गोल्ड मेडलिस्ट अजमेर सिंह से उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए कहा। उन दिनों खेलों में महिला खिलाड़ियों की ट्रेनिंग की कोई सुविधा नहीं थी। यही नहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स, पटियाला में भी महिला कोच की कोई सुविधा नहीं थी। 

कमलजीत कौर ने कोच अजमेर सिंह से ट्रेनिंग ली। उस दौरान कोच अजमेर सिंह पहली बार किसी महिला खिलाड़ी को ट्रेनिंग दे रहे थे।

वह हमेशा अपने कोच के निर्देशों का पालन करतीं। कोच अजमेर सिंह के कहने पर ही उन्होंने दौड़ना शुरू किया था। 

फिर 1970 एशियाई खेलों में हिस्सा लेने का निश्चय किया। 

साल 1969 में उन्होंने एनआईएस में एक शॉर्ट कैंप में हिस्सा लिया। वह खेल की पूरी तैयारी में लग गई। उनका सारा ध्यान आने वाले टूर्नामेंट पर लगा था। वह हर हाल में खुद को साबित करना चाहती थी। 

ईसपीएन में प्रकाशित एक लेख में कमलजीत कौर ने कहा था कि, “मुझे नहीं मालूम कि अधिकारी मुझे पसंद करते थे। मैं हमेशा से बहुत जिद्दी थी। जब मेरा ट्रायल था, वे सब मुझे घूर रहे थे। मेरे हारने की उम्मीद कर रहे थे। बाद में जब में जीत गई उन्होंने मुझे दोबारा दौड़ाया लेकिन दूसरी बार मैंने और बेहतर समय में दौड़ पूरी की थी।” 

कमलजीत कौर ने अपने खेल और प्रतिभा के बल पर हमेशा लोगों को गलत साबित किया। वहां के अधिकारी, उनके मजबूत नेतृत्व को देखकर उन्हें नापसंद करते थे। 

लेकिन अपनी प्रतिभा के दम पर उन्होंने सभी आलोचकों का मुंह बंद कर दिया था। उन्होंने एशियाई खेलों से पहले दो अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर टूर्नामेंट में बेहतर प्रदर्शन किया। 

यह भी पढ़ें- पावरलिफ्टिंग और बाॅडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं में हिजाब पहनकर लेती है भाग

एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता

14 दिसंबर 1970 में बैंकाक में आयोजित छठे एशियन खेलों में कमलजीत कौर संधू ने वो कर दिखाया जो पहले किसी भारतीय महिला खिलाड़ी ने नहीं किया था। 

उन्होंने 400 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। 

उस दिन ट्रैक पर कमलजीत कौर सबसे आगे थीं । 200 मीटर तक दौड़ में वह अपनी लीड बनाए हुई थी लेकिन जल्द ही ताइवान की ची चेंग ने तेजी पकड़ी और वह उनसे आगे निकल गईं । 

दौड़ पूरी होने के 50 मीटर पहले चेंग मांसपेशियों में दर्द की वजह से पीछे रह गईं । वह चेंग से केवल 10 मीटर पीछे थी। वह दोबारा आगे निकल आई और उन्होंने 57.8 सेकेंड में यह दौड़ पूरी की। 

एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीतने के अलावा उन्होंने खेलों में कई सम्मान और उपलब्धियां अपने नाम की। 

साल 1971 में, वह 400 मीटर की दौड़ इटली के त्युरीन, में आयोजित विश्वविद्यालय खेलों में फाइनलिस्ट में से एक बनी। 

साल 1971 में ही भारत सरकार ने उन्हें पदम श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था।

उन्होंने 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में महिलाओं की 400 मीटर के दौड़ में भाग लिया। 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकने वाली कमलजीत कौर भारत की पहली महिला खिलाड़ियों में से एक हैं।

उन्होंने 1973 में एथलीट करियर से सन्यास ले लिया था। 

यह भी पढ़ें- पर्वतारोही बलजीत कौर ने 30 दिनों में 8,000 मीटर से ऊंची 5 चोटियों पर फतह कर रचा

कोच बन महिला खिलाड़ियों को किया प्रोत्साहित

1975 में एनआईएस की तरफ से कमलजीत कौर को प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव मिला और इसके साथ ही उनके खेल करियर की दूसरी पारी शुरू हुई। उन्होंने 1982 में एशियाई खेलों में भारतीय टीम को तैयार किया।

कमलजीत कौर ने खेलों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए विशेष तौर पर ध्यान दिया। कोच के रूप में उन्होंने महिला एथलीट खिलाड़ियों की ट्रेनिंग को बदला।

उन्होंने शॉर्ट कैंप को बदलकर लंबे कैंप आयोजित करने शुरू किए। उस समय किसी भी टूर्नामेंट में महिला खिलाड़ियों से पदक की उम्मीद नहीं की जाती थी लेकिन उन्होंने इस बात को गलत साबित करके दिखाया। 

बतौर कोच उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रहीं। 1982 के एशियाई खेलों में भारतीय महिला एथलीटों ने अच्छा प्रदर्शन किया। 

यह भी पढ़ें- पारूल चौधरी ने 3000 मीटर स्पर्धा में 6 साल का रिकार्ड तोड़ बनाया नया नेशनल रिकार्ड

कमलजीत कौर ने खिलाड़ी से लेकर कोच के तौर पर भी भारत में खेलों में महिलाओं की भूमिका को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Jagdisha कमलजीत कौर आपका खेल जगत में योगदान अविस्मरणीय है। आप सभी महिला खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ