बिहार की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर मंजरी जरूहर का जीवन परिचय

बिहार की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर मंजरी जरूहर का जीवन परिचय

भारत की पहली पांच महिला IPS ऑफिसर में इनका पांचवा स्थान है और बिहार की वह पहली महिला आईपीएस ऑफिसर हैं।

एक महिला जब सामाजिक खोकली पृष्ठभूमि बुनियादों पर चोट मारती है, तो वह आगे समाज में महिलाओं के लिए भी दरवाजे खोल देती है। एक दृढ़ संकल्पी महिला केवल स्वयं ही नहीं बल्की अन्य महिलाओं के सशक्त होने की राह भी बना देती हैं।

एक ऐसा माहौल जहां एक से बढ़कर एक ऊंचे पदों पर आसीन पदाधिकारी हैं। लेकिन महिला कि मूल शिक्षा केवल घर गृहस्थी को संभालने पर सबसे ज्यादा जोर दिया जा रहा है।

युवा अवस्था में जल्दी से विवाह, लेकिन वहां भी कोई समझने वाला नहीं। ससुराल पक्ष सही नहीं तो तलाक और फिर से परिवार का शादी पर ही जोर। 

पर इस बार न अपने जीवन की डोर किसी के हाथ दी। हुई दृढ़, लिया संकल्प और शुरू करी अपनी डगर।

यह महिला हैं, बिहार की पहली आईपीएस ऑफिसर मंजरी जरूहर।

सहकर्मियों द्वारा अविश्वास और उपहास का व्यवहार देखने के बाद भी वह निरंतर आगे बढ़ती रहीं। और उनके हौंसले को तोड़ने के लिए आने वाले सभी पत्थरों से रास्ते में आने वाले गड्ढों को भरती रहीं। 

वह केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के विशेष महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुईं। और वर्तमान में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) की सलाहकार हैं।

वह सराहनीय सेवा के लिए भारत सरकार के पुलिस पदक और विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति के पुलिस पदक की भी प्राप्तकर्ता हैं।

तो आइए जानते हैं रिटायर्ड आईपीएस आधिकारी मंजरी जरूहर की लीग से हटकर कुछ कर गुजरने की राह….

बचपन से ही मिली आदर्श गृहणी होने की शिक्षा

मंजरी जरूहर, बिहार के छोटे से कस्बे में जन्मी। उनके परिवार में उन्हें विनम्र वातावरण मिला।

चार भाई – बहनों में सबसे बड़ी हैं मंजरी जरूहर। अन्य देशों का तो पता नहीं लेकिन भारत में बेटी के पैदा होने के बाद ही उसकी शादी की जिम्मेदारी खड़ी हो जाती है। बचपन से ही लड़की के कान में एक मंत्र सा फूंकना शुरू हो जाता है कि तुम्हें अगले घर जाना है। 

मंजरी एक सम्मानित परिवार से आती हैं। उनके परिवार के कई सदस्य आईएएस और आईपीएस अधिकारी थे।

मंजरी जरूहर को भी बेटी होने के नाते बचपन से ही आदर्श गृहणी होने की शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया गया।

वह कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ीं और एक मेधावी छात्रा रहीं। वह हमेशा अच्छे ग्रेड से पास होती लेकिन इस ओर किसी का ध्यान ही कहां था।

उनकी मां ने उन्हें सिलाई कढ़ाई और खाना बनाने में परिपक्व किया क्योंकि आदर्श गृहणी के ये आवश्यक गुण हैं।

उन्होंने पटना वुमन कॉलेज से इंग्लिश ऑनर्स में चार साल की कॉलेज शिक्षा प्राप्त की।

19 साल की उम्र में उनकी शादी एक इन्डियन फॉरेन सर्विस ऑफिसर से करवा दी गई। 

लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। उनकी वह शादी चली नहीं। ससुराल पक्ष का व्यवहार और पति का अनदेखा करना परिणाम यह हुआ कि उनका तलाक हो गया।

सिविल परीक्षा की तैयारी 

एक लड़की की शादी टूटना यानी समाज के शिकंजे में फंसना। परिवार ने उनकी दूसरी शादी कराने का सोचा। लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया।

यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था। जिसने मंजरी जरूहर का जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल गया था। उन्होंने माता – पिता पर निर्भर होने के स्थान पर अपने जीवन की जिम्मेदारी स्वयं लेने का निर्णय किया।

उन्होंने आईपीएस की तैयारी का फैसला किया। सिविल सेवा प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए वह दिल्ली चली गईं। 

उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएशन किया और सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी भी शुरू कर दी।

वह सिविल प्रवेश परीक्षा की उपयुक्त तैयारी करने के लिए राओस स्टडी सेंटर, कनॉट प्लेस दिल्ली में शामिल हुईं।

पैनल का अन्तिम प्रश्न 

लिखित परीक्षा में पास होने के बाद जब वह इंटरव्यू पैनल के सामने बैठी और सभी सवालों के जवाब दे धन्यवाद देकर चली। वह राहत की सांस लेते हुए कमरे से बाहर निकल ही रही थीं।

अचानक उन्हें एक आवाज आई कि अभी एक प्रश्न और है। वह रुकी और प्रश्न कर्ता ने पूछा।

अगर एक अपराधी भाग रहा हो और मैं आपको गोली मारने के लिए कहता हूं, तो क्या आप उसे गोली मार देंगी?

उन्होंने उस समय कुछ सेकेंड का विराम लिया और अपने उत्तर के बारे में सोचा। उन्होंने उत्तर दिया की अगर कानून इजाजत देगा तो वह जरूर गोली मारेगी।

जवाब के बाद उन्हे वहां से जानें की अनुमति मिली। और अंतत: उन्होंने इंटरव्यू पास कर लिया। और वह आईएएस में नहीं बल्कि आईपीएस में शामिल हुईं।

बाद में उन्हें पता चला की अधिकारियों के पास गोली चलाने का कोई व्यापक लाइसेंस नही होता लेकिन कानून एक आधिकारी को कुछ परिस्थितियों में गोली चलाने की अनुमति देता है।

किया खुद को साबित 

साल 1976 में वह यूपीएससी की सिविल परीक्षा में उत्तीर्ण हुईं। उन्होंने राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद में अपना बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त किया।

बुनियादी प्रशिक्षण के बाद मंजरी जरूहर जिला प्रशिक्षण के लिए पटना गईं। वहां उनके महानिरीक्षक के वाक्य कुछ अटपटे थे, उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते कि क्या करें।

आईजी ने कहा कि उन्होंने किरण बेदी की फाइल मार्गदर्शन के लिए मंगाई है।

जिला प्रशिक्षण पूरा करने के बाद आईपीएस अधिकारी को पहले सहायक पुलिस अधीक्षक और फिर पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात किया जाता है।

हालांकि, पुरुष साथी आईपीएस अधिकारियों की भांति मंजरी जरूहर को महिला होने के कारण वे पद नहीं दिए गए। वरिष्ठ अधिकारियों का अनुमान था, कि एक महिला इन पदों को संभालने में सक्षम नहीं हो सकती।

उन्हें सीआईडी में एएसपी की पोस्ट मिली। लेकिन वह डेस्क जॉब थी और वह फील्ड पोस्टिंग चाहती थीं।

मंजरी जरूहर भी हार मानने वालों में से नही थीं। उन्होंने कड़ी से कड़ी मेहनत की और आखिरकार उन्हें पोस्टिंग मिली।

उन्हें कई साथी वरिष्ठ अधिकारियों से प्रोत्साहन और समर्थन भी मिला।

उनकी एक सहेली के पिता जो उनके सीनियर थे और रिटायर होने वाले थे। उन्होंने मंजरी जरूहर की फाइल आगे बढ़ाई और उन्हें स्वयं को साबित करने का अवसर मिला।

जिला स्तर पर उन्होंने बोकारो की एसपी के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वहां उन्होंने 1984 में इंदिरा गांधी हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों को नियंत्रित करने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई।

जब दंगे भड़के उस दौरान वह मुंबई में छुट्टी पर थीं। फ्लाइट कनेक्टिविटी न होने पर ट्रेन से यात्रा कर बोकारो पहुंची और मोर्चा संभाला।

जब राज्य को बिहार से अलग किया गया तब उन्हें और उनके पति राकेश जरूहर को झारखंड कैडर में स्थानांतरित किया गया।

उन्होंने भागलपुर हत्याकांड, और लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन दिखाया।

बोकारो में एसपी के अतिरिक्त उनका उल्लेखनीय कार्यकाल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) जैसे केंद्रीय बलों में रहा।

करियर में आगे बढ़ने की प्रेरणा 

मंजरी जरूहर के हृदय और मस्तिष्क पर महिलाओं की समाज में अवस्था, मुख्यत: पितृसत्तात्मक समाज में और सामाजिक क्रूर प्रथाओं से पीड़ित महिलाओं को दशा ने गहरा प्रभाव डाला।

पीड़ित महिलाओं की आंखें उन्हें झकझोर देती, जो उन्हें न्याय दिलाने के लिए प्रेरित करती।

एक मामला जिसने उनके जीवन में गहरी छाप छोड़ी। उनकी नियुक्ति एएसपी के तौर पर दानापुर, बिहार में हुई। वहां उन्हें एक युवा महिला का शव गंभीर रूप से जला हुआ मिला। 

पूछताछ के दौरान उन्हें महिला के द्वारा अपने माता-पिता को भेजे हुए कई पत्र मिले। वह पत्र चीख चीख कर ससुराल वालों द्वारा दी जानें वाली प्रताड़नाओं को बता रहे थे।

मृत महिला के सुसराल वाले हत्या के आरोप में हिरासत में ले लिए गए।

मृत महिला के माता-पिता पुलिस स्टेशन में वह मामला वापस लेने की गुहार के लिए गए। और कारण यह था कि हत्यारे दामाद ने उस गरीब पिता की दूसरी बेटी से शादी करने का प्रस्ताव रख दिया था।

अजीब है यह समाज और वे माता-पिता भी जो एक बेटी को खो चुके हैं और दूसरी बेटी को भी उसी दलदल में डालने को तैयार है। 

 व्यक्तिगत जीवन

मंजरी जरूहर को अपने प्रशिक्षण के दौरान साथी अधिकारी राकेश जरूहर से जुड़ाव महसूस हुआ और बाद में उन्होंने उनसे शादी की।

रिटायर होने के बाद उन्होंने लेखन में अपना नाम कमाया। उन्होंने अपना संस्मरण, जिसका शीर्षक है मैडम सर प्रकाशित किया है।

“मंजरी जरूहर का मानना है, अगर किसी भी महिला के जीवन में कुछ भी गलत घटित हो रहा है तो उन्हें उसे चुनौती की भांति लेना चाहिए। दुखी या निराश हो कर बैठने या अपमान सहते रहने से कोई परिणाम नहीं निकलता। हौसला बुलंद कर आगे बढ़ते रहना चाहिए।”

विपरीत परिस्थितियों के बाद भी एक महिला ने दृढ़ता दिखाई। अपने समर्पण और कड़ी मेहनत से उन्होंने स्वयं को साबित किया। उन्होंने साबित कर दिया कि सतत संघर्ष करते रहने से लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

आज मंजरी जरूहर हर स्त्री के लिए प्रेरणा हैं, जो केवल परिस्थितियों और भाग्य का उलाहना सा देकर छुप जाती हैं।

यह बहुत कष्ट की बात है कि आज का युवा निस्वार्थ देश सेवा के स्थान पर सत्ता और विशेषाधिकार को अधिक महत्व देता है।

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