भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में देश के प्रति समर्पित कल्पना दत्त की जीवनी

आज यानी 15 अगस्त 2022 को भारत-भर में स्वतंत्रता दिवस की 75वी वर्षगांठ का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। हर घर तिरंगा की मुहिम देश-भर में चलाई जा रही है। 

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उन सभी वीर जवानों और वीरांगनाओं को श्रद्धांजलि दी जाती है जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना बलिदान दे दिया या महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आजादी की लड़ाई में न केवल पुरुषों ने बल्कि महिलाओं ने भी अपने साहस और शक्ति के दम पर अंग्रेजों को लोहे के चने चबवाए हैं ।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में देश के प्रति समर्पित और आजादी की कामना रखने वाली बहुत सी महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। 

साथ ही गांव-गांव जाकर काफी बड़ी संख्या में महिला आंदोलनकारियों ने देश के लोगों को आज़ादी के आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। 

कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी थे जिनको न तो वह प्रसिद्धि मिली और न ही उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो पाया लेकिन उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।

इस कड़ी में एक नाम हैं कल्पना दत्त का। कल्पना दत्त एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी हैं। इन्होंने अंग्रेजो से निडरतापूर्वक लोहा लिया।

कल्पना दत्त ने बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भेष बदलकर क्रांतिकारियों को गोला-बारूद पहुंचाया करती थीं। वह निशानेबाजी में भी प्रशिक्षित थी।

आइये जानते हैं इस महिला स्वतंत्रता सेनानी के बारे में..

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प्रारंभिक जीवन

कल्पना दत्त का जन्म बंगाल के चटगांव के श्रीपुर गांव में मध्यमवर्गीय परिवार में 27 जुलाई 1913 को हुआ था। उनके पिता का नाम विनोद बिहारी दत्त था।  

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चटगांव से ही की। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद विज्ञान विषय से आगे की पढ़ाई जारी रखने का निर्णय लिया। जिसके लिए उन्होंने 1929 में कलकत्ता के बेथ्यून कॉलेज में प्रवेश लिया। इस बीच वे क्रांतिकारियों की जीवनी पढ़ने लगीं।

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क्रांतिकारी गतिविधियां

क्रांतिकारियों की कहानियों का उनके जीवन में इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वे छात्र जीवन से ही छात्र संघ की गतिविधियों में शामिल हो गईं। इस दौरान उनकी मुलाकात बीना दास और प्रीतिलता वड्डेदार जैसी क्रांतिकारी महिलाओं से हुई। उसके बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में वह लगातार शामिल होने लगीं। 

इसी बीच उनकी मुलाकात मास्टर सूर्यसेन से हुई और वह उनकी पार्टी ‘इंडियन रिपब्लिकन आर्मी’ में शामिल हो गईं। मास्टर सूर्यसेन को ‘मास्टर दा’ के नाम से भी जाना जाता है। 

कल्पना दत्त सूर्यसेन के विचारों से बहुत प्रभावित हुई। इस तरह वे आज़ादी की लड़ाई का हिस्सा बन गईं और अंग्रेजों के खिलाफ अपनी मुहिम छेड़ दी।

कल्पना दत्त वेश बदलकर क्रांतिकारियों को गोला-बारूद पहुंचाया करती थीं।

1930 में उनके दल ने चटगांव शास्त्रागार को लूटा। लेकिन इस दौरान अंग्रेजों की नजरों में आने के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़कर चटगांव वापस आना पड़ा। और वही से चुपचाप इस दल के संपर्क में रहीं। उनके साथ के बहुत से क्रांतिकारियों को अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।

वे चटगांव में गुप्तरूप से संगठन के लोगों को विस्फोटक सामग्री और हथियार पहुंचाने लगीं।

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जेल को बम से उड़ाने की बनाई योजना

कल्पना दत्त ने संगठन के लोगों को अंग्रेजी शासकों से रिहा कराने के लिए जेल को बम से उड़ाने की योजना बनाई।  

उनकी इस योजना में प्रीतिलता जैसी क्रांतिकारी महिला भी शामिल थीं।

इसके लिए उनको हथियार प्रशिक्षण की भी ज़रुरत थी। इसीलिए वे रात के सन्नाटे में सूर्यसेन के गांव जातीं और प्रीतिलता के साथ रिवाल्वर शूटिंग में नियमित अभ्यास करने लगी थीं।  

उन्होंने साल 1931, सितंबर में चटगांव के यूरोपियन क्लब पर हमले की योजना बनाई। हमले को अंजाम देने के लिए उन्होंने अपना वेश बदल लिया था। दुर्भाग्यवश, पुलिस को इस योजना की भनक लग गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

लेकिन अपराध साबित न होने के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया था। हालांकि बाद में आशंका की वजह से उनके घर पर अंग्रेजों द्वारा पुलिस का पहरा बिठा दिया गया।

घर के बाहर पहरा होने के बाद भी कल्पना दत्त कहां मानने वाली थीं वे तो पुलिस की आंखों में धूल झोंककर नौ-दो-ग्यारह हो गईं। और भागकर सूर्यसेन से जा मिलीं।

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जब मिली उम्रकैद की सजा

क्रांतिकारी साथी सूर्यसेन के साथ मिलकर दो सालों तक कल्पना दत्त विभिन्न आंदोलनों को अंजाम देती रहीं। 17 फरवरी 1933 को उनके साथी सूर्यसेन को गिरफ्तार किया गया। 

जबकि कल्पना दत्त अपने साथी मानिन्द्र दत्ता के साथ भागने में कामयाब रहीं। कुछ महीनों तक वे इधर उधर छुपती रहीं, मगर मई 1933 को उन्हें पुलिस ने घेर लिया।

कुछ देर तक चली मुठभेड़ के बाद कल्पना दत्त और उनके साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

साल 1934 में सूर्यसेन और उनके साथियों को फांसी की सजा दे दी गई। और 21 वर्षीय कल्पना दत्त को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। 

उम्रकैद की सजा मिलने का मतलब था कि वह अब आजादी की लड़ाई के लिए किसी स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा नहीं बन सकती। लेकिन उनके भाग्य की लकीरों में तो कुछ ओर ही लिखा था। 

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उम्रकैद की सजा से हुईं रिहा

1937 में प्रदेशों में मंत्री मंडल बनाए गए। उस दौरान महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि द्वारा क्रांतिकारियों को छुड़ाने की मुहीम शुरू की गई थी। इस आंदोलन के उग्र होने पर अंग्रेजों को बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों को रिहा करना पड़ा था। उन्हीं क्रांतिकारियों में कल्पना दत्त भी एक थीं। 

जेल से बाहर आने के बाद कल्पना दत्त ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की। बाद में उनका झुकाव कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ बढ़ा। 

1943 में कल्पना दत्त ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पूरन चंद जोशी के साथ विवाह किया। और अब कल्पना दत्त कल्पना जोशी बन गयी थी। 

इस समय बंगाल अकाल और विभाजन से जूझ रहा था। तब कल्पना जोशी ने यहां लोगों के लिए कई राहत कार्य भी किए।

उनके दो बेटों को जन्म दिया, जिनका नाम चांद जोशी और सूरज जोशी था। उनके बेटे चांद जोशी बहुत बड़े पत्रकार रह चुके हैं।

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राजनीति नहीं जमी

कल्पना दत्त राजनीति में भी सक्रिय भूमिका में रहीं। साल 1943 में उनको कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार भी बनाया गया लेकिन वह विधानसभा चुनाव जीतने में सफल नहीं हो पाई। हालांकि पार्टी में मतभेदों के वजह से उन्होंने पार्टी छोड़ दी। 

उन्होंने राजनीति से दूरी बनाने के बाद चटगाँव लूट केस पर आधारित अपनी आत्मकथा को लिखा। और उसके बाद वह एक सांख्यकी संस्थान में नौकरी करने लगीं। 

फिर वे बंगाल से दिल्ली आ गईं। यहां वह इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी का हिस्सा बनीं।

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निधन

कल्पना दत्त ने 8 फरवरी 1995 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में आखिरी सांस ली। 

उनके निधन के बाद साल 2010 में आशुतोष गोवारिकर ने उनके जीवन पर आधारित फिल्म बनाई। फ़िल्म का नाम था ‘खेले हम जी जान से’। फिल्म में दीपिका पादुकोण और अभिषेक बच्चन ने लीड रोल प्ले किया था।

उनके बेटे चांद जोशी की पत्नी मानिनी ने कल्पना दत्त पर एक उपन्यास ‘डू एंड डाई: चटग्राम विद्रोह’ के नाम से लिखा था। और फिल्म की कहानी उन्हीं के उपन्यास से ली गई थी।

साल 1979 को कल्पना दत्त को पुणे में ‘वीर महिला’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 

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भारत देश वीरों और विरांगनाओं की भूमि है। जिनके बलिदान के कारण हम स्वतंत्र भारत में सांस ले पा रहे हैं। तो आज इस अवसर पर हमने भूली बिसरी क्रांतिकारी महिला को याद कर, उनके विषय में आपके साथ जानकारी साझा की है।

Jagdisha की ओर से महान क्रांतिकारी महिला को सहृदय श्रद्धांजलि। 🙏

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