झाँसी की बेटी शिक्षित कर रही हैं झुग्गी बस्ती के बच्चों को और साथ ही समझा रही है स्वच्छता का महत्व

द हुनर फाउंडेशन की निर्देशक और संस्थापिका करोना के बढ़ते प्रकोप में जरूरतमंदो की हर संम्भव सहायता कर रही हैं| पहले भी अपनी सिलाई मशीन को घुमा स्वयं बनाएं थे मास्क और मुफ्त में झाँसी की सड़कों पर हर नजर आए जरूरतमंद तक पहुँचाए| केवल 1:44 मीनट में एक मास्क सील देती हैं, और दर्ज किया इंडिया बुक रिकार्ड, यूपी. बुक रिकार्ड के साथ पाँच रिकार्ड में अपना नाम |

केवल एक बजय जो किसी भी सपने का पूरा होना असंभव बनाती है, वह है असफल होने का का डर|
 
 
करूणा, दयाशीलता, क्षमावत्शल, धैर्यशील गुणों के समलत साहस, निडरता, प्रखर वक्ता, सुदृढ़ गुणों से लबालब हैं 27 वर्षीय नितिका सिंह गौर| ये झाँसी की बेटी निडरता और निर्णायक दृष्टि से वर्तमान की झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई हैं|
डाॅ. नितिका सी.डी. गर्ल्स डिग्री कॉलेज, लखनऊ में रसायन विज्ञान की सहायक प्रोफेसर हैं| यें द हुनर फाउंडेशन की निर्देशक और संस्थापिका हैं| वह शिक्षा रोपण, स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, मासिक धर्म जागरूकता अभियान, सैनिटरी पैड वितरण और महिला सुरक्षा आदी सामाजिक कमजोरियो के विरूद्ध कार्य करती हैं| साथ ही यथा संभव सहायता करने के लिए तत्पर रहती हैं|
वें अखिल भारतीय युवा शक्ति और बृजभूमि फाउंडेशन नारी शक्ति को प्रणाम की अध्यक्ष भी हैं|
डाॅ. नितिका सिंह गौर भारतीय नारी शक्ति का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं|
आइये जानते हैं इस युवा महिला की उपलब्धि की कहानी, Jagdisha के साथ उनकी खास बात-चीत में :-
आरम्भिक जीवन
नितिका सिंह गौर का जन्म 11 फरवरी 1994 में झाँसी उत्तर प्रदेश में हुआ था| उनका परिवार राजपूत ठाकुर, जाट हैं जो राजस्थान मारवाडी परिवार से संबंध रखते हैं| उनके पिता रेलवे में कार्यरत थे और माँ ग्रहणी| उनकी एक बडी बहन और एक बडे भाई है| वह परिवार की सबसे छोटी और लाडली बेटी हैं|
उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा झाँसी में पूरी की| वह बचपन से ही शिक्षा के साथ साथ खेलकूद, चित्रकला और डांस आदी गतिविधियों में भी अत्युत्तम रही| उन्होंने रसायन विज्ञान से अपनी स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा बाबू बनारसी दास यूनिवर्सिटी लखनऊ से अध्ययन किया| फिर रसायन विज्ञान से एमटेक का अध्ययन प्रारम्भ किया|
डाॅ. नितिका हमेशा से वैज्ञानिक बनना चाहती थी, लेकिन वह उनकी मंजिल नही| उनकी राह तो कुछ अलग थी, और नियति ने उन्हें उनकी उस राह से मिलवाया |
कैसे हुईं द हुनर फाउंडेशन की शुरूआत :
डाॅ. नितिका अपने पापा के बहुत करीब थी, और उनसे अत्यधिक प्रीति रखती| लेकिन होनी किसी के वश में नही उसे कौन टाल सकता हैं|
यह कहना पूरी तरह गलत होगा की जीवन के लक्ष्य में भाग्य की कोई भूमिका नहीं होती| 2016 में हृदय मानो तीक्ष्ण बाणो से विच्छेदित हो गया, जब पापा इस संसार से विदा हुए| उन्होंने जीवन के बहुत से गुर सिखाए थें| जरूरतमंदो की सहायता करना भी उन्ही ने सिखाया| उनके मरणोपरांत एक रहस्य भी सामने आया| पापा हर वर्ष 20 या अधिक गरीब लडकियों का सामुहिक विवाह करवाया करते थें|
तब मैंने इस बात को ओर गहराई से समझा और जाना कि पापा ने हमारी जरूरतों के साथ कभी समझौता नही किया पर साथ ही मानवता के पथ पर भी चले|
पापा के निधन के बाद मैं थोड़ी उलझन में आ गई, क्योंकि माँ अब घर में अकेली थी| सबने कहाँ अब झाँसी में ही रहो और अपने लिये कोई दूसरी राह चूनो| दूसरी ओर बहन जिनकी शादी हो चुकी थी, उनके जीवन में भी समस्या चल रही थी| अब भाई भी जो झाँसी से बहार पढ़ाई कर रहे थे, उन्होंने माँ के पास रहने का फैसला किया|
भाई ने फिर मुझे नई उडान भरने को प्रेरित किया| माँ ने भी सहयोग किया| मैंने भी शिक्षण क्षेत्र को अपनी राह के रूप में चुन लिया था|
मैं वापस लखनऊ आई और अपनी पढ़ाई में ध्यान केंद्रीत किया| तब यूनिवर्सिटी द्वारा एक बार शिक्षा जागरूकता अभियान के तहत मैं लखनऊ के एक झुग्गी बस्ती मे गई, वहाँ के कुछ लोग हमारी बातों से बहुत आकर्षित हुए और साथ ही उनके मन में बहुत से सवाल भी थे| उस दिन तो उनके सभी सवालों का हल में नही दे पाई थी, क्योंकि कुछ नियमों से बंधी थी|
उस दिन मेरे जीवन का मकसद मुझे मिल गया| मुझे समाज के लिए कुछ बहतर करना हैं यह तो मुझे मालुम था, लेकिन शुरूआत कहाँ से करनी हैं यह अब समझ आ गया था|
अपनी क्लासस के बाद मैंने झुग्गी बस्ती में जाना शुरू कर दिया| मेरे लिए वह पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण और हौसलों से भरा रहा, जब 44 बच्चों ने मेरी कक्षा में उपस्थिति दिखाई|
जून 2018 मे मैंने द हुनर फाउंडेशन की शुरूआत की, और शुरूआती 6 महीनों तक अकेले ही सारा काम संभाला|
द हुनर फाउंडेशन यह नाम ही क्यों चुना :
बचपन से ही सभी मुझे कहते थे कि इसमे हर काम करने का सही हुनर हैं| तो क्यों न मैं जिन्हें सिखाऊ उनमे भी वह हुनर हो|
द हुनर फाउंडेशन की अब तक की यात्रा कैसी रही :
मैंने बच्चों को पढ़ाना तो शुरू कर दिया था, लेकिन कक्षा में जब कुछ लड़कियाँ 3-4 दिन लगातार छुट्टी पर रही तब मैंने उनसे अनुपस्थिति का कारण पूछा| उनके जवाब ने मेरे लक्ष्य की चेन में एक कडी ओर जोड़ दी| उन लड़कियाँ ने उत्तर दिया कि पीरियड के समय दर्द और कपड़ा प्रयोग में लाने के कारण कपड़े को बार – बार बदलना पड़ता हैं| साथ ही कपड़ो के गंदे होने का भय भी रहता हैं| सैनिटरी पैड खरीदना उनके लिए व्यर्थ व्यय करने जैसा हैं|
अब क्या था, सबसे पहले तो पीरियड की सही जानकारी और पीरियड स्वच्छता के प्रति भी वहाँ कोई सजग नही| इसलिये सबसे पहले हर महीने उस बस्ती की हर महिला और किशोरिओं के लिए मुफ्त में सैनिटरी पैड वितरित करने प्रारंभ किये| साथ ही मासिक धर्म मिथकता का खंडन करते हुए उन्हें समय समय पर उचित जानकारी देने के लिये अभियान भी शुरू किया|
मासिक धर्म स्वच्छता अभियान की सीमाएं केवल झुग्गी बस्ती तक ही सिमित नही हैं सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में जा-जा कर भी छात्र- छात्राओं और अध्यापक अध्यापिकायों को उचित जानकारी से अवगत कराया जाता हैं|
मेरे हौसलों की बुलंदी कभी कमजोर नही हुई, शुरूआती दौर में उत्साह ओर बढ़ गया जब 2018 अगस्त में ही द हुनर फाउंडेशन के कार्यों की टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रस्तुति हुई|
द हुनर फाउंडेशन की धीरे-धीरे टीम बनी और शिक्षा, नैतिकता, स्वच्छता और मासिक धर्म संबंधित जागरूकता के लिए नुकक्ड़ नाट्यक्रम भी आयोजित किये गए| समय समय पर क्षेत्र के विद्यालयों में भी जागरूकता अभियान आयोजित करते रहे हैं|
19*20 मीटर के मापदंड से पैड स्वयं बनाकर 1500 जरूरतमंद महिलाओं को पैड वितरित किये थे|
झुग्गी बस्ती के बच्चों को केवल शिक्षा देना ही मेरे एकमात्र लक्ष्य नही मैं उनमे छुपे हुनर को भी प्रकट करने में विश्वास रखती हूँ| इसलिए हर सप्ताह के अंत में बच्चों को विभिन्न गतिविधियाँ जैसे चित्रकारी, गायन, खेल-कूद विभिन्न वाद्ययंत्रों जैसे गिटार, बांसूरी आदि को बजाना और डांस सिखाया जाता हैं| इतना ही नही लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर जैसे टाइकोंडो का अभ्यास भी करवाया जाता हैं|
द हुनर फाउंडेशन स्वच्छता अभियान के तहत भी कार्यरत हैं और लोगों को गंदगी से होने वाली बीमारियों के प्रति जागरूक करते हैं|
मास्क बनाने की प्रेरणा कहाँ से मिली :
करोना के कारण लॉकडाउन के समय मैं अपने घर झाँसी में ही थी| अब रोज घर की गली में अपनी रेडी धकेलते सब्जी वाले, फल वाले आते थे| वे सभी ओर भी इलाको में अपना समान बेचने जाते होगे और करोना महामारी में उनका बिना मास्क पहने रहना| ये मुझे बहुत गलत और अजीब भी लगा| माँ को भी यह वाक्य अजीब लगा तो उन्होंने एक रेड़ी वाले से पूछ लिया कि आपको मालूम हैं कि भयानक महामारी चल रही हैं और आपने मास्क भी नही पहना| तब उसने जबाब दिया कि मास्क पहले तो कही मिलते नही जो कही दिखे भी तो बहुत महँगे मिलते हैं और सर्जिकल मास्क रोज- रोज खरीदना भी संभव नही हो पाता|
तब मैंने ठान लिया कि इनकी मदद तो निश्चित ही करनी हैं| समस्या यह थी की मास्क बनाऊ कैसे, क्योंकि कपड़ा लाने के लिये बाजार तो बंद थे| लेकिन बनाने तो थे, तब माँ ने कुछ समय खरीदी सूती चादर मुझे दी| और मैंने उन्हीं से तीन परतो के मास्क बना कर तैयार किए, जिन्हें गंदा होने पर धो पर बार बार प्रयोग में लाना सरल था|
उन मास्क को हर आने वाले रेड़ी वालो को दिया| लेकिन इतना प्रयाप्त नही था| मैंने अपने क्षेत्र के हर जरूरतमंद तक मास्क पहुँचाने का निश्चय किया|
मैं एकदिन में 500 मास्क बनाने में समर्थ हूँ| मैंने मास्क बना कर तैयार कर लिए|
करोना के कारण घर से बहार जाना मुश्किल था| डीएम सर से अनुमति लेने का प्रयत्न किया, लेकिन निराशा मिली| निश्चय दृढ़ था, इसलिए पीछे हटने का तो सवाल ही नही था| कुछ दोस्तों के साथ मोका देख मास्क दिहाडी मजदूरों और झुग्गी बस्ती तक मास्क वितरण का कार्य किया| साथ ही जरूरतमंदो के घर तक राशन पहुँचाने का कार्य भी किया|
मेरे कार्यो की जब चर्चा होने लगी और कुछ मीडिया वालो ने प्रशंसा की और लेख लिखा| तब स्वयं झाँसी के डीएम सर ने मेरे पास कॉल कर सराहना की|
अब शहर के आईजी और एसपी राहुल श्रीवास्तव ने पुलिस लाइन मे मास्क बैक खोलने का प्रस्ताव रखा फिर मैंने भी सहर्ष ही सहयोग करना स्वीकार किया| सुबह के 7 बजे से शाम के 7 बजे तक पुलिस मास्क बैक में मास्क बनाना सिखाती| हमने बच्चों, बड़ो, पुलिस कर्मियों के लिए अलग अलग तरह और करोना संदेश के साथ मास्क बना कर तैयार किए|
मैं केवल 1 मिनट और 44 सेकंड में एक मास्क बनाकर तैयार कर देती हूँ और मेरी यह रफ्तार प्रशिक्षित दर्जी भी नही पकड़ पाए| जिसके लिए मैंने 5 वर्ल्ड रिकार्ड, यूपी बुक रिकार्ड और इंडिया बुक रिकार्ड अपने नाम किए| साथ ही बहुत सारे राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित हुई|
अगस्त 2020 में मैं वापस लखनऊ आ गई| मैं और मेरी टीम द हुनर फाउंडेशन की 4 शाखाएँ निपुर्णता से चला रहे हैं| हातरस हत्या कांड और बैंगलौर की एक खबर ने फिर बहुत से सवाल उत्पन्न कर दिए थे| मैंने अपना निजी फोन नम्बर लखनऊ की महिलाओं के लिये सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से सर्कुलेट कर दिया| जिससे रात में कोई यातायात का साधन न मिलने की स्थिति में कोई भी महिला मुझसे संपर्क कर सके| मैं किसी भी समय अपने टिम के सदस्य के साथ स्वयं उनकी सहायता के लिए पहुँचती हूँ|
यह मुहिम बरेली, लखनऊ, झाँसी में भी टीम के सदस्य बखूबी निभा रहें हैं|
हमने लखनऊ के ग्रामो गाँव को गोद ले लिया हैं| वहाँ हम मुफ्त में कपड़े, दवाइयां, महिलाओं के लिए सैनेटरी पैड आदि वितरण करते रहते हैं| अब वहाँ की शिक्षा, स्वास्थ्य और डिजिटिकरण विषयों पर कार्य कर रहे हैं|
अब तक के सफर का ऐसा वाक्य जिस कारण निराशा मिली:
ऐसा तो कभी कुछ मेरे साथ नही हुआ| बाकी कुछ छोटी परेशानियां तो आती रहती है| हाँ मेरी वात्सलय भावना के कारण जरूर एक बार थोड़ा दुख हुआ था| एक लडकी जो सितापुर से लखनऊ अपनी स्नातक शिक्षा के लिये आई थी| वह भी हमारे साथ जुड गई, लेकिन जब 3-4 दिन तक वह नही आई तो मैंने कारण जानने की कोशिश की| कॉल करने पर उसने बताया कि वह अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने में असमर्थ हैं| उसके पापा चपरासी हैं और शिक्षा का भार उठा नही सकते| लेकिन मैं अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हूँ|
उसकी बात सुनकर, मुझे लगा कि उसकी मदद करनी चाहिए| मैंने उसे अपने पास बुला लिया| क्योंकि उस वक्त मैं एमटेक कर रही थी, तो होस्टल में ही रहती थी| उसके कारण बहार अलग रूम लिया और उसकी पढ़ाई और सभी जरूरतो का ध्यान रखा| वह कृतघ्न लड़की 6 महिने बाद ही बिना बताए मेरी गैरमौजूदगी में अपना समान लेकर चली गई| उससे संपर्क किया तो बोली मुझे आगे से कॉल करने की आवश्यकता नही| मैं इस कगबिल हूँ कि अपना ध्यान रख सकू|
उसकी बात सुन मन को धक्का तो आवश्य लगा|
भविष्य की क्या योजनाएं हैं:
शिक्षा के प्रचार प्रसार पर अधिक से अधिक कार्य करना चाहती हूँ| ऐसी शिक्षा प्रणाली का उद्गम करना हैं जहाँ प्रायौगिक शिक्षा पर अधिक से अधिक बल हो| भविष्य में ऐसे विद्यालय का निर्माण भी करना चाहती हूँ, जिसमें सिर्फ गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान की जाएगी|
अवार्ड :
जब हमारे काम के कारण हमारी पहचान बनी हो तब मन को एक संतुष्टी मिलती हैं कि हमने समाज हित के लिए कुछ योगदान तो अवश्य दिया हैं|
इंटरनेशनल हुमन राइटस यूनीट द्वारा 2020 में डॉक्टरेट की उपाधि मिली|
2019 में मुझे अक्षय कुमार से बेस्ट यंगस्टर का सम्मान भी मिला| इसके अतिरिक्त ओर भी बहुत से सम्मान मिले जो समय समय पर ओर भी बहतर करने की प्रेरणा देते हैं|
प्राइड ऑफ़ हिंदुस्तान अवार्ड 2021, इंटरनेशनल राजस्थान एक्सलेंस अवार्ड 2020 से लेकर बहुत से नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड प्राप्त हैं|
महिलाओं के लिए संदेश :
शिक्षा के महत्व को समझे और अपने जीवन लक्ष्य पर दृढ़ता से चले| अपनी राह स्वयं बनाएं|
Jagdisha का आत्मविश्वास और सकारात्मक विचारों वाली महिला को अभिवन्दन| हम आपके भविष्य के कार्यों की पूर्ति की कामना करते हैं और सामाजिक उद्धार के आपके सभी उल्लेखनीय कार्यों की सराहना करते हैं|

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