मृदंग महारानी दंडामुदी सुमती राममोहन राव : प्रथम महिला उत्कृष्ट मृदंग वादिनी और लया विन्यासम कलाकार

“कड़ी मेहनत, तीव्र इच्छा और निरंतरता हमारे ऐसे तीन साथी है, जो हमे हमारी मंजिल तक पहुंचाने की काबिलियत रखते है।”

आंध्रप्रदेश की निदुमोलु सुमति, जिन्हें दंडामुदी सुमति राम मोहन राव के नाम से भी जाना जाता है| वे मृदंग वादन में निपुण कलाकार हैं। वह “मृदंग विद्वान” श्री दंदामुड़ी राम मोहन राव की पत्नी हैं। वे भारत की प्रथम महिला मृदंग वादिनी, और प्रथम महिला लया विंयासम कलाकार हैं।
दंडामुदी सुमति राम मोहन राव भारत की पहली सर्वश्रेष्ठ महिला मृदंग कलाकार हैं| उनकी संगीत कला उत्कृष्टता के लिये उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री सम्मान (2021) से अलंकृत किया गया हैं|

सुमति जी का जन्म 16 अक्टूबर 1950 को पश्चिम गोदावरी जिले के एलुरु, आंध्रप्रदेश में श्री निदुमोलु राघवैया और श्रीमती निदुमोलु वेंकटरात्नम्मा के घर हुआ था| उनके पिता श्री निदुमोलु राघवैया एक मृदंग विद्वान थे| 6 वर्ष की आयु से ही उनके पिता ने उन्हें मृदंग बजाने की शिक्षा देना शुरू कर दिया था|

मृदंग महारानी दंडामुदी सुमती राममोहन राव : प्रथम महिला उत्कृष्ट मृदंग वादिनी और लया विन्यासम कलाकार


वह उन्हें संगीत समारोहों में ले जाया करते थे जिससे उनका प्रतिस्पर्धा में रुझान बढता गया| सुमति जी ने 10 वर्ष की आयु में पुष्पणकाल की तरह खिला हुआ अद्भुत परिपक्वता का प्रदर्शन किया|

1964 में, उन्होंने मृदंग वादन में प्रमाणपत्र (Certificate) और पदवीदायक पत्र (Diploma) पाठ्यक्रम पूरा किया| फिर उन्होंने प्रसिद्ध मृदंग विद्वान श्री दंडामुदी राम मोहन राव के संरक्षण में प्रवेश प्राप्त किया|

श्री दंडामुदी राम मोहन राव “पुदुक्कोट्टई सम्प्रदाय” में ऑल इंडिया रेडियो के सर्वश्रेष्ठ कलाकार के रूप में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त श्रेष्ठ श्रेणी के मृदंग विद्वान थे|

सुमति जी ने अपने गुरु से कई जटिल शैली को सीखा और भारत की कई प्रतिष्ठित सभाओं में प्रदर्शन करना शुरू किया| बाद में उन्होंने अपने गुरु श्री दंडामुदी राम मोहन राव से शादी कर ली|

2003 में, वह आकाशवाणी की “ए-टॉप” श्रेणी (Grade) की कलाकार बन गई। इस श्रेणी को प्राप्त करने वाली वह पहली महिला मृदंग वादक थीं। इसलिए वे भारत की एकमात्र ए-टॉप ग्रेड मृदंग जोड़ी बन गईं और उन्होंने भारत और विदेश में अलग पहचान के साथ मंच पर लया विन्यासम संगीत प्रदर्शन शुरू कर दिया|


कड़ी मेहनत के निरंतर प्रदर्शन के फलस्वरुप सुमति जी श्रेष्ठ कलाकार के रूप में प्रतिष्ठित हो गईं| उनके गुरु बने पति के साथ दिए गए उनके कई कार्यक्रमों का प्रसारण हुआ| एक साथ एक दूसरे के बाएं और दाएं होते हुए वे श्रुति और लया में उत्कृष्ट संतुलन के साथ मधुर स्वर में मृदंग वादन करते थे|

उनके साथ एम.एस.सुब्बालक्ष्मी, चित्तूर सुब्रमण्यम पिल्लई, वोलेटि वेंकटेश्वरलु, डॉ.एम.बल्मुरली कृष्णा, पं.भीमसेन जोशी, एम. चंद्रासेकरन, ई.संकरा शास्त्री, चिट्टी बाबू, एन.रमानी, मांडोलिन यू.श्रीनिवास जैसे कई प्रतिष्ठित कलाकार थे|

2000 में, उन्होंने आघात-वाद्ययंत्र (Percussion) उपकरण मृदंग को बढ़ावा देने के लिए “लया वेदिका” नाम की एक संस्था की स्थापना की और छात्रों के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन किया और “लया प्रवीण” शीर्षक के साथ कई प्रसिद्ध विद्वानो को प्रदान किया|

उन्हें कई पुरस्कार मिले और कई प्रतिष्ठित सभाओं में उन्हें सम्मानित किया गया।

सुमती जी को 2010 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा “केंद्र संगीत नाटक अकादमी” पुरस्कार से सम्मानित किया गया और इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को प्राप्त करने वाली वह एकमात्र महिला मृदंग कलाकार बनीं|

उन्हें 2015 में आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से “उगादि पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था|

दो बार 1974,1976 में मद्रास संगीत अकादमी से सर्वश्रेष्ठ मृदंगवादी पुरस्कार, 1985 में संगीत अकादमी से पलानी सुब्रमनिया पिल्लई मेमोरियल पुरस्कार, 2005 में इंडियन फाइन आर्ट्स सोसाइटी, चेन्नई से सर्वश्रेष्ठ मृदंगवादी पुरस्कार, 2008 में इंटरनेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली से भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक का पुरस्कार, 2013 में गुरुवायुर दोराई ट्रस्ट, गुरुवयूर दोराई ट्रस्ट, चेन्नई से पुरस्कार, 2016 में पलानी सुब्रमण्य पिल्लई मेमोरियल, बैंगलोर पर्क्युसिव आर्ट्स सेंटर पुरस्कार से सम्मानित हैं|

Jagdisha का अपने पाठकों को संदेश : कोहरे से एक अच्छी बात सीखने को मिलती है, कि जब जीवन में कोई रास्ता न दिखाई दे तो बहुत दूर तक देखने की कोशिश व्यर्थ है| अतः धीरे-धीरे, एक एक कदम चलते चलो, रास्ता अपने आप दिखाई देने लगता हैं|

Jagdisha की ओर से मृदंग महारानी को प्रणाम और अनेकानेक शुभकामनाएं

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