पद्मश्री सम्मान : साहित्यकार डॉ. उषा यादव कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक और जीवनी की 100 से ज्यादा किताबें लिख चुकी हैं

सर्वोत्तम व्‍यक्ति वे नहीं हैं जिन्‍होंने अवसरों का इंतज़ार किया बल्कि वे हैं जिन्‍होंने अवसरों को अपनाया जीता है और सफल बनाया! – ए पी जे अब्दुल कलाम

सफलता कभी एक मिनट में नही प्राप्त होती उसके लिए निरंतर प्रयास करने होते है, जिद्दी बन कर डटे रहना होता है|
निरंतर साधना की ऐसी ही एक कहानी हैं, आगरा की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. ऊषा यादव. की|
 
उषा जी ने 9 वर्ष की आयु से कविताएं लिखना शुरू कर दिया था| जब वह कक्षा नौ में थीं, तब उनकी पहली कविता स्कूल की पत्रिका (Magazine) में छपी थीं| और तब से अब तक वे बिना रूके निरंतर लेखन करती आ रही हैं| और साहित्य और कहानियों की रचनाओं की ओर आगे बढ़ती रहीं|
 
उषा जी को उनकी इसी साधना के फलस्वरुप, उनकी साहित्यिक कला के लिए 2021 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया हैं|
 
उषा जी कहानी संग्रह ‘टुकड़े-टुकड़े सुख’, ‘सपनों के इंद्रधनुष’ और उपन्यास ‘प्रकाश की ओर’ व ‘आंखों का आकाश’ सहित 100 से ज्यादा किताबें लिख चुकी हैं। उन्हें सबसे ज्यादा सराहना बाल साहित्य पर लिखी किताबों के लिए मिली।
उषा जी का जन्म 1948 में कानपुर में हुआ| उनके पिता चंद्रपाल सिंह मयंक बाल साहित्यकार थे। साथ ही वे अधिवक्ता भी थें। उनकी बहुत सी किताबें और कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। वह पेशे से वकील थें| उनके पिता न्यायिक क्षेत्र से जुड़े होने के कारण उन्हें जज बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी रुचि हमेशा से शिक्षण और लेखन में रही।
 
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कानपुर में प्राप्त की| 9 वर्ष की आयु से ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था| उनकी पहली कविता जब वह कक्षा 9वीं में थीं, तब स्कूल की पत्रिका में छपी थी| बचपन से ही उनका पढा़ई के प्रति विशेष रूझान था| 12 वर्ष की आयु में उन्होंने हाई स्कूल (10वीं) पास कर लिया था|
 
उन्होंने हिंदी और इतिहास में एम.ए. में अपनी स्नातकोत्तर शिक्षा ग्रहण की हैं| कानपुर विश्वविद्यालय (अब छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय) से पी.एच.डी. की हैं|
 
कानपुर के साहित्यिक वातावरण वाले शहर ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया| वहां के साहित्यिक वातावरण ने उनके लेखन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| वहां के लोगों की बोलचाल की भाषा में भी मुहावरे और लोकोक्तियां रहती हैं| जिसका लाभ उन्होंने बखूबी उठाया|
 
1966 में उनका विवाह राज किशोर सिंह के साथ हो गया| शादी के बाद भी वे कानपुर में पढ़ाती रही| थोडे समय बाद ही वह आगरा आ गईं |
शादी के बाद जब वे आगरा आईं तो छुप छुपकर लिखा करती थीं और फिर चुपके से जला देती थीं| उनके मन में आशंका थीं कि उनके पति उन्हें समझेंगे नहीं| एक दिन उनके पति ने उनकी कुछ रचाएं देख लीं| उसके बाद पति ने उन्हें लेखन के लिए प्रेरित किया, इसके बाद तो उषा जी की कलम जब गतिमान हुई तो आज तक नही रुकी|
 
आगरा विश्वविद्यालय से डी लिट किया| फिर एक वर्ष तक रतनमुनि जैन इंटर कालेज में पढ़ाया| इसके बाद केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा, डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी विद्यापीठ में प्राध्यापक नियुक्त हुईं और वहीं से प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत हैं|
 
पति राज किशोर सिंह आगरा कॉलेज से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हैं| वह मथुरा में केएल कॉलेज में प्राचार्य भी रहे| वह उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग के पूर्व सदस्य भी रह चुके हैं| उषा जी के दो बेटे और एक बेटी है| तीनों की शादी हो चुकी है|
उषा जी आगरा के नॉर्थ ईदगाह में पति डॉ. राज किशोर सिंह और अन्य परिजनों के संग रह रही हैं| उनके पसंदीदा साहित्यकार प्रेमचंद और शरद जोशी हैं|
 
उषा जी सांस्कृति संस्था इंद्रधनुष की अध्यक्ष, प्राच्य शोध संस्थान की सचिव हैं| वे महिला भ्रूण एवं नवजात शिशु संरक्षण संस्थान’ की सदस्य हैं| साथ ही वे आराधना महिला लेखन मंच, व साहित्य साधिका समिति की संरक्षक हैं|
 
उषा जी ने केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के प्रकाशन ‘संस्थान समाचार’ का वर्ष 2001-02 में सम्पादन किया|
 
उषा जी कभी मंच के लिए कही बाहर नहीं गईं। उन्हें लेखन और साहित्य सृजन ही पसंद है। वे आगरा में कवि गोष्ठियों में अवश्य शामिल हो कर कविताओं की प्रस्तुति देती रही हैं|
 
 
उषा जी उनके साहित्य और कहानी संग्रह महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के ऊपर लिखती हैं| उन्होंने 100 से अधिक किताबे इन्हीं विषयो पर लिखी हैं| वर्तमान में बच्चों का बचपन संकटग्रस्त है| बच्चा अगर अच्छे खासे घर का है तो उसके पास सब कुछ है, सिवाय माता-पिता के समय के| वह अकेला और उदास रहता है|
 
मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों पर माता-पिता की आशाओं का दबाव है। उन पर हमेशा थोपा जाता है कि उन्हें यह करना है, वह नहीं करना है| निर्धन वर्ग के बच्चे पर रोटी और पेट भरने का संकट है| उसका बचपन उसी की पूर्ति में बीतता चला जाता है| इसी तरह महिलाओं और बच्चियों पर असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है| वह बाहर निकलने में सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं|
 
वागर्थ, कादम्बिनी, नवनीत, आजकल, हंस, अक्षरा, साक्षात्कार, साहित्य- अमृत, बालभारती, बालहंस, बाल-साहित्य समीक्षा, सुमनसौरभ, देवपुत्र, अभिनव-प्रसंगवश और स्नेह आदि पत्र-पत्रिकाओं में उनकी पांच सौ से अधिक रचनाएँ प्रकाशित हुईं हैं|
 
आकाशवाणी के आगरा, मथुरा एवं लखनऊ केन्द्रों से अनेक कहानी, नाटक एवं झलकियाँ आदि प्रसारित हुईं, व दूरदर्शन पर भी प्रस्तुति हुईं हैं|
 
उपन्यास और किताबे
कहानी संग्रह में ‘टुकड़े टुकड़े सुख’, ‘सपनों का इन्द्रधनुष’, ‘जाने कितने कैक्टस’, ‘चाँदी की हंसली’, ‘सुनो जयन्ती’, ‘प्रकाश की ओर ‘, ‘एक और अहल्या’, ‘धूप का टुकड़ा’, ‘आँखों का आका’, ‘कितने नीलकंठ’, ‘अमावस की रात’, ‘काहे री नलि’, ‘नन्ही लाल चुन्नी’, ‘दीप अकेला’, ‘अंजुरी भर चांदनी’, ‘उसके हिस्से की धूप’ आदि रचनायें शामिल हैं|
 
उपन्यास संग्रह में ‘पारस पत्थर’, ‘नन्हा दधीचि’, ‘हीरे का मोल’, ‘सोना की आँखें’, ‘सबक’, ‘फिर से हंसो धरती मां’, ‘नाचें फिर जंगल में मोर’, ‘किले का रहस्य’, ‘एक और सिंदबाद’ आदि रचनायें शामिल हैं|
बाल साहित्य कहानी संग्रह में ‘सपने सच हुए’, ‘राजा मुन्ना’, ‘अनोखा उपहार’, ‘कांटा निकल गया’, ‘लाख टके की बात’, ‘जन्मदिन का उपहार’, ‘दूसरी तस्वीर’, ‘दोस्ती का हाथ’, ‘मेवे की खीर’, ‘खुशबू का रहस्य’, ‘बजी बांसुरी’, ‘दीप से दीप जले’, ‘परी कथाएँ’, ‘झोले में चांद’, ‘दादी अम्मा का खजाना’ आदि रचनायें शामिल हैं|
 
कविता संग्रह में ‘राधा का सपना’, ‘भारी बस्ता’, ‘खेल-खिलौनों का संसार’, ‘गाडियों का संसार’, ‘इक्यावन बाल कविताएँ’ आदि रचनायें शामिल हैं|
 
जीवनी संग्रह में सुनो कहानी नानक बानी शामिल हैं|
 
नाटक संग्रह में सागर मन्थन शामिल हैं|
 
उषा जी को 10 से अधिक सम्मान मिल चुके हैं
 
• “पारस पत्थर”- चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट दिल्ली द्वारा आयोजित अखिल भारतीय बाल साहित्य प्रतियोगिता में सम्मान (1987)
• “लाखों में एक”- उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सम्मान (1994)
• शकुंतला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार (1997)
• उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य भारती पुरस्कार (1998)
• बाल कल्याण के लिए समर्पित साहित्यिक सेवाओं हेतु ‘नागरी बाल साहित्य संस्थान’ बलिया द्वारा सम्मान (1998)
• पुस्तक “किले का रहस्य” – भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार- भारत सरकार द्वारा प्रथम पुरस्कार (2003)
• पुस्तक “काहे री नलिनी” – अखिल भारतीय वीर सिंह देव प्रथम पुरस्कार- 2008 के लिए, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल (2011)
• उसके हिस्से की धूप उपन्यास के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकारी आयोग द्वारा महात्मा गांधी द्विवार्षिक हिंदी लेखन पुरस्कार (2014-15)
• अखिल भारतीय महिला परिषद आगरा द्वारा साहित्यिक सेवाओं के लिए “नारी भूषण” उपाधि से विभूषित
• इलाहाबाद में मीरा फाउंडेशन द्वारा मीरा स्मृति सम्मान|
• नागरी प्रचारिणी सभा आगरा द्वारा हिंदी गौरव सम्मान (2010)
• पंडित हर प्रसाद पाठक स्मृति बाल साहित्य पुरस्कार (2001)
• नागरी प्रचारिणी सभा आगरा द्वारा हिंदी गौरव सम्मान (2010)
• मीरा फाउंडेशन इलाहाबाद द्वारा मीरा स्मृति सम्मान (2011)
• डॉक्टर प्रतीक मिश्र स्मृति शोध संस्थान कानपुर द्वारा सम्मानित (2013)
• बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल द्वारा सम्मानित (2016)
• राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी, नैनीताल में डॉ राष्ट्रबंधु बाल साहित्य सम्मान (2019)
• पद्मश्री सम्मान, साहित्य (2021)
 
ऊषा जी मानती हैं, कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता| धीरे धीरे कार्य निरंतर करते रहने से सफलता अपने आप मिल जाती है|
 
Jagdisha की ओर से इस प्रेरणा पुंज महिला शक्ति को नमन और अनेकानेक शुभकामनाएं |

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