Capitan Dr. Laxmi Sahgal महान स्वतंत्रता सेनानी और Indian National Army की अधिकारी

Capitan Dr. Laxmi Sahgal महान स्वतंत्रता सेनानी और Indian National Army कीअधिकारी

कैप्टन डॉ. लक्ष्मी सहगल महान स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज की अधिकारी थीं।

सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सेना में रहते हुए उन्होंने कई सराहनीय काम किए। उनको बेहद मुश्किल जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उनके कंधों पर जिम्मेदारी थी फौज में महिलाओं को भर्ती होने के लिए प्रेरित करना और उन्हें फौज में भर्ती कराना। लक्ष्मी ने इस जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम तक पहुंचाया। जिस जमाने में औरतों का घर से निकालना भी जुर्म समझा जाता था, उस समय उन्होंने 500 महिलाओं की एक फौज तैयार की जो एशिया में अपनी तरह की पहली विंग थी।

जीवन परिचय:

कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्तूबर 1914 को एक परंपरावादी तमिल परिवार में हुआ था। उनके पिता वकील डॉ0 स्वामिनाथन और मां समाज सेविका व स्वाधीनता सेनानी अम्मुकुट्टी थीं।

शिक्षा और आरंभिक जीवन:

कैप्‍टन सहगल ने 1932 में विज्ञान में स्नातक परीक्षा पास की। 1938 में उन्‍होंने मद्रास मेडिकल कालेज से एम.बी.बी.एस. किया और अगले वर्ष 1939 में वह महिला रोग विशेषज्ञ बनीं। कुछ दिन भारत में काम करने के बाद वह 1940 में सिंगापुर चली गयीं।
सिंगापुर में उन्होंने न केवल भारत से आए अप्रवासी मजदूरों के लिए नि:शुल्क चिकित्सालय खोला, बल्कि भारत स्वतंत्रता संघ की सक्रिय सदस्या भी बनीं। वर्ष 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब अंग्रेजों ने सिंगापुर को जापानियों को समर्पित कर दिया, तब उन्होंने घायल युद्धबंदियों के लिए काफी काम किया।
 

नेताजी से मुलाकात:


विदेश में मजदूरों की हालत और उनके ऊपर हो रहे जुल्मों को देखकर उनका दिल भर आया। उन्होंने निश्चय किया कि वह अपने देश की आजादी के लिए कुछ करेंगी। लक्ष्मी के दिल में आजादी की अलख जग चुकी थी,इसी दौरान देश की आजादी की मशाल लिए नेता जी सुभाष चंद्र बोस दो जुलाई, 1943 को सिंगापुर आए तो डॉ. लक्ष्मी भी उनके विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं और अंतत: करीब एक घंटे की मुलाकात के बीच लक्ष्मी ने यह इच्छा जता दी कि वह उनके साथ भारत की आजादी की लड़ाई में उतरना चाहती हैं। लक्ष्मी के भीतर आजादी का जज्बा देखने के बाद नेताजी ने उनके नेतृत्व में रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट बनाने की घोषणा कर दी, जिसमें वह वीर नारियां शामिल की गई जो देश के लिए अपनी जान दे सकती थीं। 22 अक्टूबर, 1943 में डॉ. लक्ष्मी ने रानी झांसी रेजीमेंट में कैप्टन पद पर कार्यभार संभाला। अपने साहस और अद्भुत कार्य की बदौलत बाद में उन्हें कर्नल का पद भी मिला, जो एशिया में किसी महिला को पहली बार मिला था। लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा। डॉ. लक्ष्मी अस्थाई आजाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं। वह आजाद हिंद फौज की अधिकारी तथा आाजाद हिंद सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं।
दितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने आज़ाद हिंद फ़ौज के सैनिकों की भी धरपकड़ की। सिंगापुर में पकड़े गये आज़ाद हिन्द सैनिकों में डॉ. लक्ष्मी भी थीं। जुलाई 1946 को भारत लाये जाने के बाद उन्हें बरी कर दिया गया।

विवाह:

डॉ. लक्ष्मी ने लाहौर में मार्च 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया |

राजनीति करियर:

पति की मौत के बाद कैप्टन लक्ष्मी कानपुर आकर रहने लगीं और बाद में कैप्टन सहगल सक्रिय राजनीति में भी आयीं। 1971 में वह मर्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी/ माकपा (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया/ सीपीआईएम) की सदस्यता ग्रहण की और राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। वे अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (ऑल इण्डिया डेमोक्रेटिक्स वोमेन्स एसोसिएशन) की संस्थापक सदस्यों में रहीं।

बांग्लादेश विवाद के समय उन्होंने कलकत्ता में बांग्लादेश से भारत आ रहे शरणार्थीयो के लिए बचाव कैंप और मेडिकल कैंप भी खोल रखे थे। 1981 में स्थापित ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन की वह संस्थापक सदस्या है और इसकी बहुत सी गतिविधियों और अभियानों में उन्होंने नेतृत्व भी किया है।

दिसम्बर 1984 में हुए भोपाल गैस कांड में वे अपने मेडिकल टीम के साथ पीडितो की सहायता के लिए भोपाल पहुची। 1984 में सिक्ख दंगो के समय कानपूर में शांति लाने का काम करने लगी और 1996 में बैंगलोर में मिस वर्ल्ड कॉम्पीटिशन के खिलाफ अभियान करने के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था।

उन्होंने महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता के लिए काफ़ी संघर्ष किया। वर्ष 2002 में 88 वर्ष की आयु में उनकी पार्टी (वाम दल) के लोगों के दबाव में उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के ख़िलाफ़ राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में भी उतरी लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आई।

सम्मान:

स्वतंत्रता आंदोलन में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान और संघर्ष को देखते हुए उन्हें 1998 में भारत के राष्ट्रपति के.आर.नारायणन द्वारा पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया था।

निधन:

कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का निधन 98 वर्ष की आयु में 23 जुलाई, 2012 की सुबह 11.20 बजे कानपुर के हैलेट अस्पताल में हुआ था। उन्हें 19 जुलाई को दिल का दौरा पड़ने के बाद भर्ती कराया गया था, जहां उन्हें बाद में ब्रेन हैमरेज हुआ। लेकिन दो दिन बाद ही वह कोमा में चली गई। करीब पांच दिन तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद आखिरकार कैप्टन सहगल अपनी अंतिम जंग हार गई। स्वतंत्रता सेनानी, डॉक्टर, सांसद, समाजसेवी के रूप में यह देश उन्हें सदैव याद रखेगा।
 
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