राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनीं पहली आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू

पहले अध्यापिका और फिर ओडिशा के सिंचाई विभाग में क्लर्क, फिर झारखंड की राज्यपाल और अब अगर  द्रौपदी मुर्मू इस बार होने वाले राष्ट्रपति चुनाव जीत जाती हैं, तो वह देश के शीर्ष संवैधानिक पद पर पहुँचने वाली पहली आदिवासी महिला बन जाएंगी |

द्रौपदी मुर्मू को भाजपा नीति राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की तरफ से इस बार होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया गया है |

उन्होंने अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष और मयूरभंज जिले की रायरंगपुर सीट के भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में कार्य किया है |

वर्ष 2007 में उन्हें ओडिशा विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक होने के लिए “नीलकंठ पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था | मई 2015 में, भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें झारखंड के राज्यपाल के रूप में चुना | 

द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली महिला और आदिवासी नेता भी हैं, जिन्हें ओडिशा राज्य में राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था |

ओडिशा के अत्यंत पिछड़े इलाके से आगे बढ़कर वह यहाँ तक पहुँची हैं | उनका जीवन संघर्ष से लबालब है | साथ ही प्रकृति ने भी उनके साथ क्रूर मजाक किया | 

आइये जानते है, राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का अब तक का सफर…

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प्रारंभिक जीवन

द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में 20 जून 1958 को एक आदिवासी संथाल परिवार में हुआ था | 

उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू है, जो अपनी परंपराओं के अनुसार, गांव और समाज के मुखिया थे |

उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे |

मयूरभंज जिले के कुसुमी ब्लॉक के उपरबेड़ा गांव में उनका लालन-पालन हुआ |

उनका बचपन अभावों और गरीबी में बीता | उन्होंने अपनी स्थितियों को कभी आड़े नही आने दिया और अपनी मेहनत और लगन से आगे बढ़ती रहीं |

द्रौपदी मुर्मू ने अपने गृह जनपद से शुरुआती शिक्षा पूरी की | फिर भुवनेश्वर के रामादेवी महिला महाविद्यालय से बी.ए. से स्नातक की डिग्री प्राप्त की | 

शिक्षा पूरी कर उन्होंने एक शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की और कुछ समय तक इस क्षेत्र में काम किया |

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जीवन संघर्ष

द्रौपदी मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ, जिनसे उनके दो बेटे और एक बेटी हुई | बाद में उनके दोनों बेटों का निधन हो गया और पति भी छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो गए | 

उनकी एक बेटी है जिसका नाम इतिश्री मुर्मू है | उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहतीं हैं | 

बड़े बेटे की मौत के एक साल और कुछ महिनों बाद वर्ष 2009 में उनके छोटे बेटे की मौत ने उनको अंदर तक तोड़ दिया था | वह पूरी तरह निराश हो चुकीं थीं | और फिर एक साल बाद, उनके पति की हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई |

जीवन की कठिनाइयों ने उनसे सबकुछ छीन लिया | द्रौपदी मुर्मू का छोटा बेटा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था और उसी वक्त रहस्यमय परिस्थितियों में उसकी मौत हो गई |

बच्चों और पति का साथ छूटना द्रौपदी मुर्मू के लिए कठिन दौर था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी |

द्रौपदी मुर्मू मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में ध्यान और आध्यात्म की तरफ बढ़ी |

योग और ध्यान की सहायता से चित शांत हुआ और जीवन की कटु सच्चाई को समझ उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज और देश को समर्पित कर दिया |

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करियर

द्रौपदी मुर्मू ने एक अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया | उन्होंने श्री अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक के तौर पर सेवा दी | और उसके बाद राजनीति की ओर अग्रसर हुईं |

उन्होंने 1997 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की | 

उन्होंने 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्‍टेंट के रूप में भी कार्य किया |

उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत ओडिशी से भाजपा के साथ की | उन्होंने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में हिस्सा लिया और जीत दर्ज कराई | इसके बाद बीजेपी की ओडिशा ईकाई की अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष बनी |

इसके बाद वह ओडिशा में भाजपा और बीजू जनता दल की गठबंधन की सरकार में वर्ष 2000 से 2002 तक वाणिज्य और परिवहन स्वतंत्र प्रभार मंत्री रहीं | 

उन्होंने वर्ष 2002 से 2004 तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री के तौर पर काम किया | वर्ष 2002 से 2009 तक ओडिशा के मयूरभंज के भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया है |

उन्हें फिर से वर्ष 2013 में मयूरभंज जिले के लिए पार्टी का जिलाध्यक्ष पद के लिए पदोन्नत किया गया |

द्रौपदी मुर्मू वर्ष 2015 से 2021 तक झारखंड की राज्यपाल भी नियुक्त हुईं | वह ओडिशा राज्य की पहली महिला गवर्नर बनीं |

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झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनने वाली द्रौपदी मुर्मू का झारखंड में छह साल एक माह अठारह दिनों का कार्यकाल रहा | वह इस दाैरान विवादों से बिल्कुल दूर रहीं | 

उन्होंने अपने कार्यकाल में झारखंड के विश्वविद्यालयों के लिए चांसलर पोर्टल शुरू कराया | जिसकी सहायता से सभी विश्वविद्यालयों के कॉलेजों के लिए एक साथ छात्रों का ऑनलाइन नामांकन शुरू कराया | 

विश्वविद्यालयों में यह नया और पहला प्रयास था, जिसका लाभ सीधे विद्यार्थियों को मिला | उन्होंने राज्‍य सरकार के कई विधेयकों को लौटाने का साहसिक निर्णय भी लिया |

भाजपा की रघुवर दास सरकार में द्रौपदी मूर्मू ने सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक सहित कई विधेयकों को सरकार को वापस लौटाने का कड़ा कदम उठाया | 

हेमंत सोरेन की सरकार में भी द्रौपदी मूर्मू ने कई आपत्तियों के साथ जनजातीय परामर्शदातृ समिति के गठन से संबंधित फाइल लौटाई |

उन्होंने अबतक के जीवन में कई श्रेष्ठ कार्य किये है | जिसका परिणाम ही है कि उनको साल 2022 में भारत का एक सम्मानित पद राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के लिए चुना गया है |

देश के अगले राष्ट्रपति को चुनने के लिए मतदान 18 जुलाई को होगे | वहीं वोटों की गिनती 21 जुलाई को होगी | देश के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को पूरा हो रहा है |

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अगर द्रौपदी मूर्मू जीत दर्ज कराती है तो वह देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति और पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन कर नए इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अंकित हो जाएंगीं |

जगदिशा की ओर से द्रौपदी मूर्मू को यहाँ तक के सफर के लिए ढ़ेरों शुभकामनाएं और आप यह चुनाव जीत देश की प्रगति में अपना सहयोग दें, ऐसी कामना करते है |

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