पद्म विभूषण सम्मानित और सामाजिक कार्यकर्ता इला भट्ट जिन्होंने भारत की महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में सशक्त करने में अहम भूमिका निभाई

पद्म विभूषण सम्मानित और सामाजिक कार्यकर्ता इला भट्ट जिन्होंने भारत की महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में सशक्त करने में अहम भूमिका निभाई

भारत की एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, जिन्होंने भारत की महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने महिलाओं को सशक्त करने में अहम भूमिका निभाई थी। 

उन्होंने महिला श्रमिकों के अधिकारों को लेकर एक अग्रणी भूमिका निभाई है। साथ ही उन्होंने कई मुहिम के जरिए महिला अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।

हम बात कर रहे हैं, पद्म भूषण विजेता और सामाजिक कार्यकर्ता इला भट्ट की। 

2 नवंबर 2022 को, 89 साल की उम्र में उन्होंने अहमदाबाद के अस्पताल में अंतिम सांसें लीं। और एक महान आत्मा परमात्मा में विलीन हो गईं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार (2 नवंबर 2022) को महिला अधिकार कार्यकर्ता के निधन पर शोक व्यक्त किया। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने भी उनके निधन पर दुख व्यक्त किया।

इला भट्ट ने 1972 में सेल्फ-एम्पलॉयड वीमन एसोसिएशन (सेवा) नामक महिला व्यापार संघ की स्थापना की थी। 12 लाख से अधिक महिलाएं इसकी सदस्य हैं। उन्होंने 1974 में सेवा को-ऑपरेटिव बैंक की स्थापना की थी। 

इला भट्ट को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 1977 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला था। 

1986 में उन्हें राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 

आइये जानते हैं, इला भट्ट की जीवन यात्रा…

प्रारंभिक जीवन

इला भट्ट का जन्म 7 सितम्बर, 1933 को अहमदाबाद में हुआ था। उनके पिता का नाम सुमंतराय भट्ट था, जो एक सफल वकील थे। माता वानालीला व्यास महिला आंदोलनों में सक्रिय थीं।

भारत के स्वाधीनता संग्राम में इला भट्ट के परिवार के सदस्यों ने भी भाग लिया था। उनके नाना महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह में शामिल थे और इसके लिए जेल भी गये थे।

उनका अधिकांश बचपन सूरत में व्यतीत हुआ। उन्होंने 1940 से 1948 तक ‘सार्वजनिक गर्ल्स हाई स्कूल, सूरत से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। 

1952 में उन्होंने अपनी स्नातक की डिग्री एम.टी.बी. कॉलेज, सूरत से प्राप्त की। 

इसके बाद इला भट्ट ने अहमदाबाद के ‘सर एल.ए. शाह लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया और वहाँ से 1954 में अपनी कानून की डिग्री प्राप्त की। 

हिन्दू कानून पर किये गए उनके सराहनीय कार्य के लिए उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया गया था।

करियर और समाज सेवा

इला भट्ट गाँधी जी के विचारों से बेहद प्रभावित थीं। वह कुछ समय श्रीमती नाथी बाई दामोदर ठाकरे वुमन यूनीवर्सिटी में अंग्रेज़ी पढ़ाने के बाद 1955 में अहमदाबाद की एक इकाई की ‘टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन’ के लॉ विभाग में कार्यरत हो गईं। 

भारत के श्रमिक आंदोलन और मज़दूर संघों पर आज पुरुषों का एकाधिकार बना हुआ है। लेकिन भारत में पहला मज़दूर संघ स्थापित करने वाली भी एक महिला अनसुइया साराभाई थीं। इसी कपड़ा कामगार संघ के 1954 में स्थापित महिला प्रकोष्ठ का नेतृत्व 1968 में इला भट्ट ने सँभाला।

वहीं उन्हें कामकाजी महिलाओं के हित में कार्य करने की प्ररेणा मिली और उन्हें आत्मनिर्भरता देने के लिए वह दृढ़ संकल्प के साथ अग्रसर रहीं।

स्त्रियों की आत्मनिर्भरता के हित में उन्होंने अपना ध्यान केन्द्रित कर दिया। उन्होंने ‘सेल्फ इम्प्लाएड वुमन एसोसिएशन’ (सेवा) का गठन किया। जहां वह स्वरोजगारी महिलाओं को परामर्श तथा जानकारी प्रदान करती।  

उन्होंने सेवा संस्थान की स्थापना केवल सात सदस्यों के साथ की थी। आज इसके साथ तेरह लाख से ज़्यादा स्त्रियाँ जुड़ी हैं। 

1971 में अहमदाबाद की बाज़ार हाथगाड़ी खींचने वाली और सर पर बोझा ढोने वाली प्रवासी महिला कुलियों ने अपने सिर पर छत की तलाश में इला भट्ट से मदद माँगी। 

इला भट्ट ने देखा कि ये सारी महिलाएँ खुली सड़क पर रहने को मजबूर हैं और इनकी मज़दूरी बेहद कम है। उन्होंने इस विषय पर स्थानीय अख़बारों में लिखा। कपड़ा व्यापारियों ने जवाबी लेख प्रकाशित करके इला भट्ट के सारे आरोपों को ख़ारिज कर दिया। 

व्यापारियों ने महिला कुलियों को उचित मज़दूरी देने का दावा किया। इला भट्ट ने व्यापारियों वाले लेख की अनेक प्रतियाँ बनवायीं और महिला कुलियों में बाँट दीं ताकि वे व्यापारियों से अख़बार में छपी मज़दूरी की ही माँग करें। इला भट्ट की इस युक्ति से कपड़ा व्यापारियों की सारी ऐंठ बाहर निकल गयी। 

उन्होंने इला भट्ट से वार्ता की पेशकश की। दिसम्बर, 1971 में इसी बैठक के लिए सौ महिला मज़दूर जुटीं और सेवा संगठन (सेल्फ़ एम्प्लॉयड वुमॅन एसोसिएशन) का जन्म हुआ।

सेवा संस्थान नारी आंदोलन, मज़दूर आंदोलन व सहकारिता आंदोलन का संगम बना।

सेवा संस्थान 1972 में पंजीकृत सबसे बड़ी महिला सहकारी समितियों और राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों में से एक है।

इला भट्ट के संगठन सेवा का मुख्य लक्ष्य महिलाओं को सम्पूर्ण रोजगार से जोड़ना है। सम्पूर्ण रोजगार का मतलब केवल नौकरी नहीं; बल्कि नौकरी के साथ खाद्य-सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा भी है। 

1979 में उन्होंने ‘वुमन वर्ल्ड बैंकिंग’ की स्थापना की। इस सहकारी बैंक का उद्देश्य महिलाओं को छोटे ऋण प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना रहा। 

डब्ल्यूडब्ल्यूबी जो माइक्रोफाइनेंस संगठनों का एक वैश्विक नेटवर्क है, उसमें इला भट्ट 1984-1988 तक अध्यक्ष रहीं।

उन्हें राज्यसभा सांसद नियुक्त किया गया था जहां उन्होंने 1989 तक सेवा दी। वह विश्व बैंक जैसे संगठनों की सलाहकार भी थीं। 

2007 में वह एल्डर्स में शामिल हो गईं। एल्डर्स मानव अधिकारों और शांति को बढ़ावा देने के लिए नेल्सन मंडेला द्वारा स्थापित विश्व नेताओं का एक समूह है। हाल ही में उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय गुजरात विद्यापीठ के कुलपति के पद से इस्तीफा दे दिया था।

व्यक्तिगत जीवन

अपनी स्नातक उपाधि की पढ़ाई के दौरान इला भट्ट की भेंट एक निडर छात्र नेता रमेश भट्ट से हुई। 1951 में भारत की पहली जनगणना के दौरान मैली-कुचैली बस्तियों में रहने वाले परिवारों का विवरण दर्ज करने के लिए रमेश भट्ट ने इला को अपने साथ काम करने के लिए आमंत्रित किया तो वह बड़े संकोच से इसके लिए सहमत हुईं। 

इला भट्ट को पता था कि उनके माता-पिता अपनी बेटी को एक अनजान युवक के साथ गंदी बस्तियों में भटकते देखना बिल्कुल पसंद नहीं करेंगे। बाद में जब इला ने रमेश भट्ट से शादी करने का निश्चय किया तो माता-पिता ने विरोध किया। उन्हें डर था कि उनकी बेटी आजीवन ग़रीबी में ही रहेगी। लेकिन विरोध के बावजूद उन्होंने साल 1955 में रमेश भट्ट के साथ विवाह किया।

उनके दो बच्चे हैं-अमीमयी और मिहिर। उनका पूरा परिवार अहमदाबाद में ही रहता है।

पुरस्कार व सम्मान

1977 में इला भट्ट को सामुदायिक नेतृत्व श्रेणी में ‘मेग्सेसे पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। 

1984 में उन्हें स्वीडिश पार्लियामेंट द्वारा ‘राइट लिवलीहुड’ अवार्ड मिला। 

इला भट्ट को भारत सरकार द्वारा 1985 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। अगले ही वर्ष 1986 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ सम्मान दिया गया। 

जून, 2001 में हावर्ड यूनीवर्सिटी ने उन्हें ‘आनरेरी डॉक्टरेट’ की डिग्री प्रदान की।

इला भट्ट को वर्ष 2010 में जापान के प्रतिष्ठित ‘निवानो शांति पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया है। उन्हें यह पुरस्कार भारत में 30 वर्षों से अधिक समय से गरीब महिलाओं के विकास और उत्थान के कार्यों व महात्मा गाँधी की शिक्षाओं का पालन करने के लिए दिया गया।

2011 में उन्हें गांधी पीस प्राइज भी दिया गया था।

उन्हें कई दूसरे अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था। इसमें ग्लोबल फेयरनेस अवार्ड, रैडक्लिफ मेडल, राइट लाइवलीहुड अवार्ड शामिल हैं।

इला भट्ट को महिला सशक्तिकरण, समाज सेवा और शिक्षा को बढ़ावा देने के उनके कार्यों के लिए हमेशा याद किया जाएगा। महिला उत्थान के लिए उनके उत्कृष्ट योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

Jagdisha प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और महिला उत्थान में अपना जीवन न्यौछावर करने वाली महान आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि! 🙏

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