मथुरा की मालविका ने अपने हाथों की कला को बिजनेस आइडिया में बदल दिया, आज सेलिब्रिटी भी है इनके ग्राहक

शार्क टैंक सीजन-1 तो आपको याद ही होगा, बहुत से स्टार्टअप ने अपना बिजनेस आइडिया पिच किया और फंडिंग ली। शार्क टैंक में फंडिंग मिलने वालों में एक नाम मालविका सक्सेना का भी है, इन्हें 35 लाख रुपए की फंडिंग मिलीं थी । जो उन्हें अनुपम मित्तल और विनिता सिंह ने 24% की इक्विटी पर फंड दिया।

मालविका Quirky Naari की संस्थापक है, जो एक फैशन ब्रांड है। क्वर्की नारी एक परिधान और फैशन लाइफस्टाइल ब्रांड है, जो अपने ग्राहकों के लिए कस्टमाइज्ड जूते और कपड़े बनाते है।

एक छोटे-से कमरे से की थी शुरुआत। आज यह इकलौता ब्रांड है जो कस्टमाइज्ड ब्राइडल स्नीकर्स और कपड़े बनाता है। 

उन्होंने कई कलाकारों के साथ काम किया है और प्रियांक चोपड़ा जैसी बड़ी अदाकारा ने उन्हें शूटआउट दिया है। वे अपने उद्यम को विश्व स्तर पर ले जाने के लिए प्रयासरत हैं। वह अपने पोर्टफोलियो को कस्टमाइज्ड से मानकीकृत उत्पादों तक विस्तारित करना चाहती हैं।

क्वर्की नारी भारत का पहला हैंड-पेंटेड डेनिम ब्रांड है। यह ब्रांड फैशन ट्रेंड को ध्यान में रखते हुए हैंड पेंट्स ब्राइडल शूज, डेनिम जैकेट्स, फंकी शूज बनाता है।

उनके डिजाइन किए जूते रवीना टंडन, सनी लिओन, अदा शर्मा, अनीता हसनंदानी और रुबीना दिलेक तक पहन चुकीं हैं।

आइये जानते हैं मालविका सक्सेना का सफर…

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प्रारंभिक जीवन

मालविका का जन्‍म 12 अक्टूबर, 1990 को मथुरा के एक समृद्ध परिवार में हुआ। उनके पिता बिजनेसमैन है। और सामंती व्यवहार वाले पुरुष हैं। वे लड़कियों को स्‍कूल भेजने और पढ़ाने के विरोध में नहीं थे लेकिन अच्‍छे कॉलेज में प्रवेश के लिए लड़की को घर से दूर किसी बड़े शहर में पढ़ने भेजने के खिलाफ थे। 

मालविका को बचपन से आर्ट में रुचि थी कि लेकिन घरवालों का मानना था कि मेधावी बच्‍चे साइंस और कॉमर्स पढ़ते हैं। ये कला-वला तो पढ़ाई में फिसड्डी लोगों की चीज है। 

स्कूली शिक्षा के बाद वह फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करना चाहती थी लेकिन यहां भी घरवालों को समस्या थी। घरवालों के हिसाब से ये संस्‍कारी काम नहीं होता। 

और दूसरी बड़ी समस्या यह कि मथुरा में फैशन डिजाइनिंग का कोई कॉलेज नहीं था। तो उन्हें यह आदेश मिला कि, बिजनेस मैनेजमेंट पढ़ो।

जब परिवार की बात मानकर बिजनेस मैनेजमेंट पढ़ना स्वीकार किया तो उसमें भी यह शर्त थी कि मथुरा से बाहर जाकर नहीं पढ़ना। यही के काॅलेज से पढ़ाई करो । बाद में उन्होंने एमबीए भी मथुरा से ही की। 

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जब पिता ने मथुरा से बाहर जाने नहीं दिया

अति तो यह हो गई कि एमबीए पूरा होने के बाद जब कैंपस प्‍लेसमेंट की बारी आई तो घरवालों ने उसमें भी बैठने की अनुमति नहीं दी। कारण यहीं कि वहां आने वाली किसी कंपनी का ऑफिस मथुरा में नहीं था।

यानी नौकरी करने के लिए दिल्‍ली-मुंबई-गुड़गांव जाना पड़ता।

अब उनके साथ के सब लोग जीवन में आगे बढ़ गए और मालविका मथुरा में ही रह गई। इस बंदिश और बिना मतलब की माता-पिता की ज़िद के कारण वह गहरे अवसाद और अकेलेपन से जूझ रही थीं। 

एक ओर उनके एमबीए में साथ पढ़े सारे दोस्‍त दिल्‍ली-मुंबई में अच्‍छे पैकेज पर नौकरियां कर रहे थे, नए दोस्‍त बना रहे थे, दुनिया घूम रहे थे और अपनी जिंदगी अपने अनुसार जी रहे थे। और वह एक ही जगह अटकी पड़ी थी। उनका जीवन मानो थम-सा गया और जैसे कोई आशा ही शेष न बची ।   

जितनी जिद पिता ने ठान रखी थी कि वे मालविका को मथुरा से बाहर नहीं भेजेंगे, उतनी ही जिद अब उन्होंने भी ठान ली थी कि उनकी मर्जी से शादी तो नहीं करेंगी। 

फिर पिता और बेटी ने आपस में बातचीत बंद कर दी। मालविका पूरे दिन अकेले अपने कमरे में बंद रहतीं और एक दिन यहां ये उड़ जाने के सपने देखती।

मालविका के अनुसार उन्हें जितनी बंदिशों और नियंत्रण में पाला गया था, उनके भीतर आजाद होने की इच्‍छा भी उतनी ही तेज हो गई थी। 

लेकिन वह व्यावहारिक रूप से विद्रोही नहीं थी। वह मानों अंदर से डरी हुई थी। लेकिन थोड़ा विद्रोह तो जरूरी है। 

बेसक हमारे अभिभावकों ने हमसे ज्यादा जीवन देखा है और परिस्थितियों को समझा है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि वे हमेशा सही ही हो। हर वक्त भावनाओं में फंस कर रह जाना गलत है। 

शिक्षा और करियर का चुनाव करने का अधिकार तो बच्चों का ही होना चाहिए। बिना बात की ज़िद तो गलत है। 

मालविका बेसक अपने लिए चुप रही पर बहन के लिए लड़ी। उन्होंने जो चुप्पी अपने लिए साध रखी थी, वह आवाज अपनी छोटी बहन अंबिका के लिए उठाईं। 

जब उनकी बहन की दिल्‍ली जाकर रहने और पढ़ने की बारी आई तो मालविका मां-पिता के सामने बहन की ढाल बनकर खड़ी हो गई। बहन को आखिरकार दिल्‍ली जाकर पढ़ने और फिर नौकरी करने की हामी मिल ही गई। 

मां-पिता से आवश्यक बातों के लिए तो विद्रोह कर देना चाहिए। वो सिर्फ और सिर्फ अपने अहंकार में लड़कियों को बांधकर रखना चाहते हैं।

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क्वर्की नारी से पहले करियर

लेकिन कहते हैं न कि सब्र और सहनशक्ति का बांध कितना भी ऊंचा क्‍यों न हो, एक दिन टूट ही जाता है। मालविका का बांध भी एक दिन टूट ही गया। चुपके से घरवालों को बिना बताए दिल्‍ली में एक जॉब के लिए आवेदन किया और नौकरी मिल भी गई। 

अब मालविका ने दिल्‍ली जाकर एक नई जिंदगी शुरू की। पिता अब पहले से ज्‍यादा नाराज हो चुके थे। उनसे संवाद पूरी तरह खत्‍म हो गया।

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कैसे आया क्वर्की नारी का आइडिया

एक दिन मालविका अपनी पुरानी अलमारी की सफाई कर रही थी। अलमारी में कुछ पुराने जूते पड़े थे। वो उन्‍हें फेंकने की सोच रही थी कि बहन ने कहा, फेंक क्‍यों रही हो। तुम तो इतनी अच्‍छी पेंटिंग करती हो। इन्‍हें पेंट कर डालो। 

घर और जिंदगी से असहाय मालविका को इतने साल अगर किसी चीज ने बचाए रखा था तो वो रंग और ब्रश ही थे। अपने कमरे में अकेले बंद वो घंटों पेंटिंग बनाती रहती।

जिन रंगों से मालविका ने दुख के दिनों में धैर्य पाया, सोचा नहीं था कि वो रंग और हुनर ही एक दिन दुनिया में उनकी पहचान बन जाएंगे। 

मालविका ने उन पुराने जूतों को साफ किया, रंग और ब्रश निकाला और देखते ही देखते वो बदरंग पुराने जूते पीले-गुलाबी सुंदर जूतों में बदल गए। हर कोई उन्‍हें लालसा से देखते हुए पूछता, “अरे, बड़े सुंदर जूते हैं। कहां से खरीदे?”

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क्‍वर्की नारी की शुरुआत 

जब मालविका मथुरा में एमबीए कर रही थीं तो कॉलेज में उन्‍होंने एक बिजनेस प्‍लान कॉम्‍पटीशन भी जीता था। वो बिजनेस प्‍लान भी दरअसल स्‍क्रैप से सस्‍टेनेबल फैशन एसेसरीज बनाने का ही आइडिया था। प्रोफेसरों ने भविष्‍यवाणी की थी कि एक दिन तुम जरूर आंत्रप्रेन्‍योर बनोगी। 

मालविका ने तब उस बात को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन सालों बाद वो भविष्‍यवाणी अब सच होने जा रही थी। मालविका ने अपनी बहन के बार-बार प्रेरित करने के बाद इंस्‍टाग्राम पर एक पेज बनाया और नाम रखा- ‘द क्‍वर्की नारी’ (The Quirky Naari)। 

वहां उन्‍होंने अपने हैंडपेंटड जूतों, कपड़ों और पर्स की तस्‍वीरें पोस्‍ट करनी शुरू कीं। धीरे-धीरे बात फैली और मालविका के पास ऑर्डर आने लगे। उनके पास इंवेस्‍ट करने के लिए ज्‍यादा पैसे नहीं थे।

पिता से आर्थिक मदद मिलने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। सो उन्‍होंने एक आइडिया निकाला। हैंडपेंटड जूतों का ऑर्डर देने वालों से आधा पैसा एडवांस में और आधा प्रोडक्‍ट डिलिवर होने के बाद देने की बात कही। 

भाग्यवश लोग राजी भी हो गए। इस तरह उन्‍होंने 20-25 जूतों के ऑर्डर पूरे किए। धीरे-धीरे डिमांड बढ़ने लगी। प्रोडक्‍ट इतना यूनीक और आकर्षक था कि जो भी देखता, थोड़ी देर के लिए ठिठक जाता। लोगों को प्रोडक्‍ट पसंद आये। 

उन्‍होंने बहुत सुंदर पॉजिटिव फीडबैक दिए। अब मालविका ने नौकरी छोड़कर फुल टाइम यही काम करना शुरू कर दिया। पिता अब भी नाराज तो थे, लेकिन अब ज्‍यादा हस्‍तक्षेप नहीं करते थे। 

मालविका मथुरा लौट आईं और वहीं अपने कमरे को एक छोटे से स्‍टूडियो में बदल लिया। दिल्‍ली से थोक में जूते खरीदकर मथुरा आते और यहां उनकी हैंडपेंटिंग का काम होता। 

मालविका सारे काम खुद ही करती थीं। ऑर्डर रिसीव करने से लेकर उसे पैक करके कूरियर करने तक। 

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जब सेलिब्रिटीज ने मालविका के जूते पहने

ब्रांड और मालविका को मिली पहचान से धीरे-धीरे उनका आत्‍मविश्‍वास लौट रहा था। अब उन्‍होंने सेलिब्रिटीज से संपर्क करना शुरू किया। काफी कोशिशों के बाद उन्‍हें दीपिका कक्‍कर से पेंटेड स्‍नीकर्स का एक ऑर्डर मिला, जो उन्‍होंने बिग बॉस में पहना। 

एक बार बिग बॉस में आने के बाद प्रोडक्‍ट की डिमांड और बढ़ गई। 

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शार्क टैंक में मिली फंडिंग

शार्क टैंक में 35 लाख की फंडिंग मिलने के बाद ‘द क्‍वर्की नारी’ को ओर पहचान मिली। रातोंरात उनके इंस्‍टाग्राम पेज पर आने वाले ऑर्डर्स की संख्‍या 10 गुना बढ़ गई।  

मालविका ने अब तक मार्केटिंग पर एक भी पैसे खर्च नहीं किए। लोगों ने इस ब्रांड को पसंद किया। साथ ही सेलिब्रिटीज ने कोलैबोरेट किया है क्‍योंकि यह इतना खूबसूरत और यूनीक है। 

रवीना टंडन, सनी लिओन, अदा शर्मा, रणविजय सिंघ, रुबीना दिलेक, असिम रियाज, पारस छाबड़ा, अनिता हसनदानी जैसे फिल्‍म और टीवी के जाने-माने सेलिब्रिटी द क्‍वर्की नारी के प्रोडक्‍ट प्रयोग कर चुके हैं।   

मालविका मानती है कि फैशन, स्‍टाइल और खूबसूरत दिखने की चाह बहुत सहज है, लेकिन वो फैशन ऐसा होना चाहिए, जो आपकी सोच और व्‍यक्तित्‍व को भी दर्शाता हो। एक बुद्धिमान और समझदार लड़की, जिसके जीवन का मकसद सिर्फ सुंदर दिखना और आकर्षक होना भर नहीं है, जो दिन भर अपनी 32 सेल्‍फी खींचकर सोशल मीडिया पर पोस्‍ट नहीं करती। उस लड़की के व्‍यक्तित्‍व से मैच करने वाला फैशन कैसा हो।

मालविका के डिजाइन किए प्रोडक्‍ट ऐसे ही हैं, जो सुंदर होने के साथ-साथ कंफर्टेबल भी हैं और एक आजाद व्‍यक्तित्‍व और सोच को दिखाते हैं। 

लड़कियों और महिलाओं को अपने डर को पीछे छोड़ना ही होगा। केवल ग्‍लैमर की दुकान बनकर जीवन को परिभाषित नहीं किया जा सकता। स्टाइलिश और अच्छा दिखना, इसमें कुछ ग‌‌‌लत नहीं है। लेकिन आपके जीवन का उद्देश्य भी होना चाहिए। हर महिला का आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए अपनी पूरी क्षमता व दृढ़ता से अपने जीवन के उत्थान के लिए आगे बढ़िये । 

उन सभी रूढ़िवादी विचार धाराओं की जंजीरों को खोखला कर दीजिए जो आपकी सफलता में बाधा बन रही है। माता-पिता सम्माननीय है, लेकिन अगर वो भी इस विचारधारा के अंतर्गत फंसे पड़े हैं कि बेटियों को ज्यादा पढ़ लिख कर क्या करना है? और सिर्फ उनकी शादी करना ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य है तो उनकी उस सोच से विद्रोह करना बहुत जरूरी है। 

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और माता-पिता अगर ये सोचते हैं कि बेटियों का बाहर समाज में निकलकर अपने आप को आगे बढ़ाना गलत है तो उनका विद्रोह करना भी आवश्यक है। माता-पिता हर समय तो अपनी बेटियों के साथ नहीं रह सकते न तो उनके जीवन को सफल और आर्थिक मजबूत बनाने में उन्हें अपनी बेटी की मदद करनी चाहिए न कि स्वयं ही बाधा बन खड़ा हो जाना चाहिए।

Jagdisha मालविका आप भविष्य में दिन दुगनी और रात चौगुनी तरक्की करें। आप हर युवा लड़की के लिए प्रेरणा है।

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