रोज-रोज की मारपीट और प्रताड़ना के बाद बच्चों के भविष्य के लिए किया कुछ ऐसा कि आज हैं करोड़ों की मालकिन

पता नहीं क्यों हमारा समाज और भारतीय माता-पिता अपने बच्चों की शादी करना अपना आखिरी कर्त्तव्य समझते हैं। शादी के बाद उनकी बेटी या बेटा खुश रहेंगे। लेकिन वे किस आधार पर यह सोचते हैं यह समझ नहीं आता।

खासकर बेटी की शादी तो पिता का बहुत बड़ा सपना होता है। परंतु क्यों? बेटी हो या बेटा वह अपने जीवन को आत्मसम्मान और स्वतंत्रता से जी सकें उसके लिए पहले आर्थिक रूप से मजबूत होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। 

लेकिन नहीं जी बेटी की शादी हो जायेगी तो वह अपने घर की हों जायेगी फिर चाहे कुछ भी करें। बेटी की शादी में तो पिता लाखों खर्च कर देते हैं। लेकिन क्या ये लाखों रुपए उसके सपनों को पूरा करने में नहीं लगा सकते?

क्या खुशी का आधार बस शादी ही है? आखिर क्यों इस सोच ने ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवार के माता-पिता को जकड़ रखा है?

अगर आप अपनी पूर्ण शक्ति का संचार कर लें तो कुछ भी कर जाना संभव है। आत्मसाहस वह ताकत है जो बुरे समय में भी आपको उम्मीद दे और जो नई उर्जा प्रदान करता है।

एक महिला जिसे उसके पति द्वारा बेरहमी से पीटे जाने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह अपने बच्चों के लिए प्यार के बल पर अपना जीवन व्यतीत कर रहीं थीं। उम्मीद की एक छोटी सी किरण से उन्हें साहस मिला। 

हम बात कर रहे हैं भारत की सुमेरिया की, जो आज करोड़ों रुपये का साम्राज्य संभालती हैं और निडर जीवन जी रही हैं ।

आइये जानते हैं इस महिला उद्यमी के घरेलू प्रताड़ना से निकल करोड़ों के टर्नओवर तक का सफर..

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परिचय

भारती सुमेरिया का जन्म मुम्बई के भिवांडी के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। दसवीं के बाद पिता ने उन्हें आगे नहीं पढ़ाया। अपनी रूढ़िवादी सोच के चलते उन्होंने कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी ताकि वह ख़ुशी से रह सकें।

लेकिन उनके पिता को यह कहां पता था कि बेटी खुश रहेंगी इस आशा से जिस व्यक्ति को उसके लिए चुना है वह उसके लिए एक बुरे सपने जैसा होगा।

शादी के कुछ ही समय बाद भारती ने एक बेटी को जन्म दिया और कुछ सालों बाद उनके दो जुड़वां बेटे हुए। 

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सहती रही पति का हिंसक रूप

उनका पति बेरोजगार था और अपने पिता की संपत्ति किराये के भुगतान में नष्ट करने लग रहा था।

घर में हर दिन पति पत्नी के बीच विवाद होता रहता है लेकिन कभी-कभी यह छोटा विवाद विकराल रूप ले लेता है। 

यह छोटा विवाद भी घरेलु हिंसा में बदल जाता है। घरेलु हिंसा में आम तौर पर महिलाएं ही पिसती हैं। उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की प्रताड़ना दी जाती है।

भारती के पति संजय, उन्हें पीटा करते थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया वह और क्रूरता दिखाता गया। वह अधिक वहशी बन गया। भारती इस शारीरिक और मानसिक हिंसा को सहती रही। 

शायद अगर वे आरंभ से ही अपने पति द्वारा की जाने वाली क्रूरता का विरोध करती और जब पहली बार उस व्यक्ति ने उन पर हाथ उठाया था उस समय चुप्पी न साधती तो प्रताड़ना कि इस पीड़ा से स्वयं की रक्षा जल्दी ही कर पाती।

जाने क्यों महिलाएं इस तरह की घटना को बर्दाश्त कर जाती है और समय रहते विरोध नहीं करती?

हर महिला के लिए उसके डर से निकलना बहुत जरूरी है। 

मारपीट का यह सिलसिला रोज होने वाली घटना बन गई। इस कारण भारती को कई बार हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया।

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आ गई माता-पिता के घर

भारती इस भयानक जीवन से तंग आ अपने माता-पिता के घर चली आईं। यहां भी उनका हर एक पल पति के डर के साये में ही बीतता था। एक महीने तक वह घर से बाहर भी नहीं निकली थी और ना ही किसी से ज्यादा बात किया करतीं थीं। 

इस अंधेरे जीवन में सिर्फ उनके बच्चे ही उनकी आशा की किरण थे। बच्चे हमेशा उनका हौसला बढ़ाते थे। उनके बच्चे उन्हें हमेशा कुछ नया सीखने, स्थानीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने और अपनी मां को डिप्रेशन से बाहर आने के लिए प्रोत्साहित करते थे। 

उनके भाई ने उन्हें बच्चों के भविष्य को सुधारने के लिए नौकरी करने की सलाह दी।

भारती ने 2005 में एक छोटी सी फैक्ट्री खोली जिसमें टूथब्रश, बॉक्सेस, टिफ़िन बॉक्सेस आदि छोटी वस्तुओं का निर्माण किया जाता था। 

उनकी मदद के लिए उनके पिता ने छः लाख का लोन लिया और दो कर्मचारियों की भर्ती भी की गयी। इस तरह उन्होंने मुलुंड में दो कर्मचारियों के साथ काम करना शुरू कर दिया। अब काम में व्यस्तता के कारण उनका डिप्रेशन खत्म होता चला गया। 

अभी भी उनका पति उन्हें घर में और सार्वजनिक रूप से मारता-पीटता था। एक साक्षात्कार में, भारती ने कहा, “यहां तक ​​कि जब मैं पुलिस के पास गई, तो उन्होंने मदद नहीं की क्योंकि मेरे पति पुलिस विभाग के लोगों को जानते थे।”

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4 करोड़ के टर्नओवर का सफर

तीन-चार साल बाद भारती ने एक पीईटी नामक फैक्ट्री खोली जिसमें प्लास्टिक बॉटल्स बनाये जाते हैं। वह खुद ही सामान की गुणवत्ता की जांच करती थी। समय के साथ-साथ उन्हें जल्द ही सिप्ला, बिसलेरी जैसे बड़े ब्रांड से भी आर्डर मिलने लगे। 

2014 में उनके पति संजय ने फिर से उन पर हाथ उठाया। इस बार उसने फैक्ट्री के कर्मचारियों के सामने ही भारती को मारा। उनके बच्चों के लिए यह सब अब बर्दाश्त के बाहर था। बच्चों ने पिता से कह दिया कि वह वापस कभी लौटकर उनकी मां के पास न आये। 

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आज भारती ने अपना बिज़नेस बढ़ाकर चार फैक्ट्री के रूप में परिवर्तित कर दिया है जिसका वार्षिक टर्न-ओवर लगभग चार करोड़ है।

इस प्रकार भारती ने अपने अंधकारमय जीवन को अपनी हिम्मत और लगन के बल पर रोशनी से भर दिया। 

एक महिला चाहे तो क्या नहीं कर सकती बस उन्हें अपने अंदर छुपी शक्ति को पहचानने भर की आवश्यकता है।

Jagdisha भारती आप स्वयं को डर और हिंसा के साये से निकाल स्वछंद जीवन की ओर बढ़ पाईं, आप हर उस महिला के लिए प्रेरणा हैं जो कभी इस प्रताड़ना से खुद को निकाल ही नहीं पाती।

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