स्वतंत्र भारत की पहली मुख्यमंत्री : सुचेता कृपलानी

सुचेता कृपलानी एक स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थीं | स्वतंत्रता के बाद साल 1963 में वे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी |

सुचेता कृपलानी स्वतंत्र भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री हुईं | 

समय के साथ साथ भारत की राजनीति में महिलाओं की भूमिका और हिस्सेदारी बढ़ रही है | वर्तमान में भारत की वित्त मंत्री एक महिला हैं | 

यूपी की राज्यपाल एक महिला हैं, साथ ही वे गुजरात की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं | बंगाल की मुख्यमंत्री एक महिला हैं और यूपी के एक बड़े राजनीतिक दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष एक महिला हैं | 

इंदिरा गाँधी हमारे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं | प्रधानमंत्री पद के साथ-साथ महिला देश के सबसे बड़े पद यानी कि राष्ट्रपति तक की कुर्सी पर बैठ चुकी हैं | 

कुल मिलाकर भारत की राजनीति में महिलाएं हर बड़े पद पर हैं | 

लेकिन राजनीति में महिलाओं की सक्रियता आज से नही बल्कि महिलाएं स्वतंत्रता संग्राम से अपना सहयोग दे रही है | 

जिस आजाद भारत के पास नेहरू जी, राजेंद्र प्रसाद जी थे तो उसी देश के पास इंदिरा गांधी, सरोजिनी नायडू और सुचेता कृपलानी भी थीं | 

वे उन चंद महिलाओं में से एक है, जिन्होंने महात्मा गाँधी के साथ मिलकर देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया | वे गाँधी जी के साथ नोआखली यात्रा में शामिल थीं | 

आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा |

वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास विषय की प्रवक्ता (Lecturer) भी रहीं |

उन्होंने कांगेस के सहायता विभाग की सेक्रेटरी के रूप में भारत के विभाजन के समय शरणार्थियों के लिए पुनर्वासन का कार्य किया |

14 अगस्त 1947 को उन्होंने नेहरु जी के भाषण देने से पहले संसद में वन्दे मातरम गीत गाया | 

साथ ही वे 1940 में स्थापित ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की संस्थापिका थी |

साल 1946 में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं | साल 1948 से 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थीं |

साल 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वे लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गईं |

सुचेता कृपलानी 1963 से 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं |

सुचेता कृपलानी नम्र स्वाभाव की महिला थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं | 

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उनके मुख्यमंत्री काल के दौरान राज्य के कर्मचारियों ने एक सबसे लंबी, लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुईं, जब उनके व्यवहार में नरमी आई |

मुख्यमंत्री बनने से पहले सुचेता कृपलानी उन 15 भारतीय महिलाओं में से एक थीं जिन्हें संविधान सभा के लिए चुना गया था | और जिन्होंने मिलकर भारत के संविधान की रचना की | उन्होंने भारत के संविधान में महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी |

आइये जानते है देश की पहली महिला मुख्यमंत्री के बारे मे…..

जन्म और प्रारंभिक जीवन

सुचेता कृपलानी, मूल नाम सूचेता मजूमदार का जन्म 25 जून, 1908 को भारत के हरियाणा राज्य के अम्बाला शहर में एक सम्पन्न बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था |

पिता का नाम एस.एन. मजूमदार था, जो ब्रिटिश सरकार के अधीन एक डॉक्टर थे | हालांकि इसके बावजूद वह एक राष्ट्रवादी व्यक्ति थे |

उनके पिता सरकारी चिकित्सक थे जिसके कारण उनकी प्रारंभिक शिक्षा कई स्कूलों में पूरी हुई क्योंकि लगभग हर दो-तीन सालो बाद उनके पिता का स्थानांतरण होता रहता था | 

स्नातक की पढ़ाई के लिए उन्हें दिल्ली भेज दिया गया | दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से उन्होंने इतिहास विषय से स्नातक की डिग्री ली |

इसके बाद उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रवक्ता के पद पर कार्य किया |

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छोटी उम्र से ही था राजनीति में रूझान

सुचेता कृपलानी की आत्मकथा “एन अनफ़िनिश्ड बायोग्राफ़ि” (An Unfinished Biography) में उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख है और उनके आरंभिक दिनों की झलक मिलती है |

छोटी उम्र से ही उनका राजनीत‍ि की ओर रुझान था | An Unfinished Biography में वे लिखती हैं, “जालियावाला बाग हत्याकांड के बाद मैं अंग्रेजों के खिलाफ गुस्‍से से भर गयी थी | मेरी समझ इतनी हो गयी थी कि मैं अंग्रेजों के प्रति गुस्से को महसूस कर सकती थी | मैंने अपनी बहन सुलेखा के साथ खेल रहे एंग्लो इंडियन बच्चों के ऊपर गुस्‍सा निकाला था |”

सुचेता कृपलानी व उनकी बहन सुलेखा मजुमदार, दोनों ही स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए अपना-अपना योगदान देने को आतुर थीं | 

अपनी किताब में वे एक घटना का वर्णन भी करतीं हैं | जालियावाला बाग हत्याकांड के बाद प्रिंस ऑफ वेल्स दिल्ली आए थे | 

उनके विद्यालय से लड़कियों को प्रिंस के सम्मान में खड़े होने के लिए कुदसिया बाग के बाहर ले जाया गया था | चाह कर भी वे दोनों बहने इसका विरोध नहीं कर पायीं और इस घटना के बाद खुद की कायरता पर उन्हें बहुत आक्रोश था |

उन्होंने लिखा है, “इससे हमारा खुद पर शर्मिंदा होना बंद नहीं हुआ | हम दोनों अपनी कायरता के कारण खुद की नज़रों में छोटे हो गए थे |”

कॉलेज से निकलने के बाद, 21 वर्ष की उम्र में ही ये स्वतंत्रता संग्राम में कूदना चाहती थीं | पर दुर्भाग्यवश वह ऐसा कर नहीं पाईं | 

साल 1929 में उनके पिता और बहन की मृत्यु हो गयी और परिवार को संभालने की जिम्मदारी सुचेता कृपलानी पर आ गयी |

तब उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर के रूप में नौकरी करना चुना |

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20 साल बड़े आचार्य से की शादी, महात्मा गाँधी जी ने किया था विरोध

ऐतिहासिक स्त्रोतों से पता चलता है कि सुचेता कृपलानी पढ़ाते समय अपने विद्यार्थियों को स्वतंत्रता का महत्व समझाया करती थीं | 

पढ़ाने के अलावा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय स्वतंत्रता आंदोलन के सैनिकों का गढ़ भी था | आचार्य कृपलानी अक्सर ऐसे स्वयंसेवकों को ढूँढने वहाँ आया करते थे |

हिंदू विश्वविद्यालय में ही वे आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी से मिली | आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी स्वतंत्रता आंदोलन के जाने-माने नेता थे |

साल 1934 के बिहार भूकंप के दौरान चलाय गए राहत शिविर में सुचेता कृपलानी भी शामिल थीं | यहाँ पर दोनों के बीच मेल बढ़ा |

1938 में जब 28 वर्षीय सुचेता कृपलानी ने आचार्य कृपलानी से शादी करने का फैसला किया तब परिवार व महात्मा गाँधी जी, दोनों ओर से उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा | 

वे गाँधीजी का सम्मान करती थीं लेकिन अपने से 20 साल बड़े आचार्य से शादी करने के फैसले पर अडिग रही |

गाँधीजी को डर था कि इस शादी के कारण आचार्य कृपलानी जो स्वतंत्रा के लिए सक्रिय योगदान दे रहे थे, कही स्वतंत्रता की अपनी लड़ाई से पीछे न हट जाये |

जब गाँधीजी ने सुचेता को किसी और से शादी करने कि सलाह दी तब सुचेता कृपलानी ने जवाब में कहा कि अगर वह ऐसा करती हैं, तो “अनैतिक और बाईमानी” होगी | और इस शादी से गाँधीजी को स्वतंत्रता संग्राम के लिए दो कार्यकर्ता मिल जाएँगे |

अपने अडिग फैसले के साथ दोनों शादी के बंधन में बंध गए |

जिसके बाद वे स्वतंत्रता की लड़ाई की ओर पूरी तरह से सक्रिय हो गईं | और वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गईं |

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क्यों नही हुईं थी, वर्धा आश्रम में शामिल?

1934 में जमनालाल बजाज ने सुचेता कृपलानी को वर्धा आश्रम में शामिल होने का आमंत्रण दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने को कहा |

उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा हैं, “मुझे लगता है विनोबा भावे, जो बोर्ड के अध्यक्ष थे, मुझे स्वीकृति देने वाले थे | जब मैं उनसे मिलने गयी, तब आश्रम में दो युवाओं के प्रेम प्रसंग के उजागर होने के कारण वे उस पाप को धोने के लिए उपवास पर थे | वह युगल आश्रम में मुंह छुपाए घूम रहा था | यह सब मुझे ठीक नहीं लगा | विनोबा का कठोर रवैया और अति आत्म-मुक्ति के भाव ने मुझे इस आश्रम से जुडने से रोक लिया |”

कैसे की अखिल भारतीय महिला काँग्रेस की स्थापना

1940 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की महिला शाखा, ‘अखिल भारतीय महिला काँग्रेस’ की स्थापना की | 

साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अरुणा आसफ अली और अन्य महिला नेताओं के साथ उन्होंने आगे आकर मोर्चा संभाला | वे कांग्रेस पार्टी की महिला मोर्चा की पहली अध्यक्ष बन गईं |

भारत छोड़ो आंदोलन में जब सारे पुरुष नेता जेल चले गए तो सुचेता कृपलानी ने अलग राह बनाईं |

वे जानती थी कि ‘बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढ़ाएगा |’ 

वह भूमिगत हो गईं | उस दौरान उन्होंने कांग्रेस का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छुपते-छुपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया | 

इसके लिए उन्होंने अंडरग्राउण्ड वालंटियर सेना बनाई। साथ ही उन्होंने लड़कियों को ड्रिल और लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और संकट में घिर जाने पर आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया | 

वे कदम-कदम पर राजनीतिक कैदियों के परिवार को राहत देने का जिम्मा भी उठाती रहीं | 

भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय होने के कारण उन्हें एक साल के लिए जेल जाना पड़ा | सत्याग्रह आंदोलन के दौरान वह गाँधीजी की नजदीकी सहयोगी थीं |

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क्यों रखती थीं साइनाइड का कैप्सूल अपने साथ?

सुचेता कृपलानी के राजनीतिक समर्पण को देखते हुए गांधीजी उनसे काफी प्रभावित थे | उनके समर्पण को देखते हुए गांधीजी ने 1946 में कस्तूरबा गांधी नैशनल मेमोरियल ट्रस्ट की आयोजक सचिव नियुक्त होने में उनकी मदद की |

अगस्त 1947 में जब हमारा देश स्वतंत्रत हुआ, तब गाँधीजी ने सुचेता कृपलानी व उनके पति दोनों को बँटवारे के बाद राहत प्रयासों को लोगों तक पहुंचाने के लिए चुना | 

वह नोआखली के कैंप में राहत सामाग्री बांटने गईं जहां बँटवारे के समय दंगों में सबसे अधिक रक्तपात हुआ था | यहाँ उन्होंने गाँधीजी से एक महत्वपूर्ण सीख ली |

गाँधीजी ने उन्हें कहा था,“ शरणार्थियों का आत्मसमान नहीं छीनना, उनको भिखारी नहीं बनाना है” | 

दूसरे शब्दों में समझे तो शरणार्थियों को काम के बदले मदद देना |

उन्होंने वहां नरसंहार पीड़ितों की सेवा की | कहा जाता है कि इस दौरान यहाँ पर महिलाओं के साथ बहुत अत्याचार होते थे | 

ऐसे में सुचेता कृपलानी अपने साथ साइनाइड कैप्सूल लेकर चलती थीं | वे सीएम पद पर कार्यरत रहते समय भी जब यहां आईं तो भी हमेशा अपने साथ साइनाइड रखती थीं |

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स्वतंत्रता के बाद राजनीति में योगदान

स्वतंत्रता के बाद, वह भारतीय राजनीति में पूर्ण रूप से सक्रिय हो गईं |

साल 1949 में सुचेता कृपलाणी को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रतिनिधि के तौर पर चुना गया | कुछ सालों बाद आचार्य कृपलाणी का पंडित नेहरू जी से किसी बात को लेकर मनमुटाव हो गया | 

उनके पति व्यक्तिगत व राजनीतिक मतभेदों के कारण जवाहरलाल नेहरू से अलग हो गए |

उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अपना नाता तोड दिया और एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन किया | पार्टी का नाम कृषक मजदूर प्रजा पार्टी रखा | 

सुचेता कृपलानी कुछ समय के लिए इस पार्टी में शामिल हुईं और फिर वापस कांग्रेस पार्टी में ही चली गईं |

1952 में सुचेता कृपलानी ने किसान मजदूर पार्टी की ओर से नई दिल्ली से चुनाव लड़ा और वे जीती भी | लेकिन जल्द ही राजनैतिक मतभेदों के कारण वह काँग्रेस पार्टी में लौट आयीं | 

1957 में काँग्रेस की ओर से इसी सीट से वे दुबारा चुनाव जीती | नई दिल्ली विधानसभा का सदस्य बनाकर लघु उद्योग मंत्रालय का कार्यभार संभाला |

इसके बाद 1962 में वह कानपुर से उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य चुनी गईं | एक साल बाद साल 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी | ये पहली बार था जब भारत में कोई महिला मुख्यमंत्री बनी |

1963 से 1967 तक सुचेता कृपलानी भारत के सबसे बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं | इस दौरान उन्होंने इस राज्य के घटते आर्थिक आंकड़ो पर लगाम कसी और साथ ही सुनिश्चित किया कि प्रशासनिक कार्यों मे पारदर्शिता बनी रहे |

2 अक्टूबर 1963 से लेकर 14 मार्च 1967 तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं |

इसके बाद वे उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले की लोकसभा सदस्य रहीं | 

1971 में उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया | राजनीति से सन्यास लेने के बाद वे अपने पति के साथ दिल्ली में बस गयीं | निःसन्तान होने के कारण उन्होंने अपनी सारी संपत्ति लोक कल्याण समिति को दान कर दी | 

इसी समय, उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘एन अनफिनिश्ड ऑटोबायोग्राफी’ लिखनी शुरू की, जो तीन भागों में में प्रकाशित हुई | धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरता गया और 1 दिसम्बर 1974 को हृदय गति रूक जाने से उनका निधन हो गया |

स्वतंत्रता आंदोलन में वह भले ही आचार्य कृपलानी व महात्मा गाँधी जी की सहयोगी बन कर रहीं पर वास्तविकता में वह स्वयं में एक स्वतंत्र व्यक्तित्व वाली महिला थीं जो अपने निर्णय खुद लेने में विश्वास रखती थीं |

माना जाता है स्वतंत्र सोच वाले व्यक्ति भीड़ से अलग हो जाते हैं | लेकिन सुचेता कृपलानी ने यह सिद्ध किया कि स्वतंत्र व्यक्तित्व हो कर भी एक सामूहिक आंदोलन का हिस्सा बना जा सकता है |

सूझ-बूझ और कार्य प्रणाली एक प्रभावी नेता का सही गुण होता हैं | सुचेता कृपलानी भी कुछ ऐसी ही स्वतंत्र सोच के साथ सामूहिक दलो का नेतृत्व करने वाली महिला थी |

कैसी लगी आपको पहली महिला मुख्य मंत्री की कहानी? हमें कमेंट बॉक्स में बताना न भूले |

Jagdisha का सुचेता कृपलानी को सहृदय नमन |

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