महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें बना रही आत्मनिर्भर, अब तक 50 हज़ार से अधिक महिलाओं को कर चुकी हैं प्रशिक्षित

Anita Gupta | Training | Aatmnirbhar Women | Bihar

अनीता गुप्ता ने 50 हज़ार से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित कर स्वावलंबी बनने के लिए प्रेरित किया | साथ ही दस हजार महिलाओं को रोजगार भी उपलब्ध कराया है |

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अंतराष्ट्रीय महिला दिवस (8, मार्च 2022) के अवसर पर अनीता गुप्ता को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया | यह सम्मान वर्ष 2020 का था, पिछले साल ही मिलना था | कोरोना महामारी के कारण 2020 का नारी शक्ति पुरस्कार समारोह आयोजित नहीं हो पाया था |

10 साल की उम्र में घरेलू हिंसा देखने के बाद, उन्होंने अपने छोटे भाई के साथ ग्रामीण महिलाओं के लिए एनजीओ का गठन किया | इस एनजीओ के माध्यम ने उन्होंने 500 से अधिक स्वयं सहायता समूह की स्थापना की है |

 वह ग्रामीण महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं | साथ ही स्वास्थ्य जांच शिविर आयोजित करने, वयस्कों को शिक्षा प्रदान करने का कार्य भी बड़े जुनून के साथ करती है  | उन्होंने 50,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की है | 

 यह भी पढ़ें- हर महिला को सशक्त होने के लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है

 अब तक उन्होंने 50 हज़ार से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया है | बिहार और झारखंड में वह 3,000 से अधिक सिलाई स्कूल का संचालन कर रही हैं |

चलिए जानते है अनीता गुप्ता के बारे में…

 जीवन यात्रा

बिहार के आरा की रहने वाली अनीता गुप्ता जहां उन्होंने 50,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को हस्तशिल्प, क़सीदाकारी और आभूषणों में प्रशिक्षण की व्यवस्था की है |

अनीता गुप्ता एक गरीब परिवार से आती है | उन्होंने छोटी उम्र में ही देखा और समझा कि भारतीय समाज में महिलाएं कितनी कमजोर और उपभोजित होती है | 

जब वह बच्ची ही थी, तब उनके पिता का निधन हो गया था और वह अपनी माँ और छह भाई-बहनों के साथ अपने नाना-नानी के साथ रहने चली गई थी | उसके दादा के तीनों बेटों की मृत्यु होने के बाद, उनके दादा एक बेटे की चाह और उनकी जरूरतों का ख्याल रखने के लिए एक युवा लड़की को उसके माता-पिता से खरीद कर ले कर आए थे |

उन्होंने अपने दादा को उस लड़की को बेरहमी से पीटते हुए देखा जिसे वह अपने बच्चों को पालने के लिए ले कर आए थे | इस वाक्य से उनके मन में एक अमिट छाप छप गई थी | उनके मन में यह सवाल आने लगा कि अगर लड़की शिक्षित होती तो उसे उसके साथ हुए दुर्व्यवहार का विरोध करने का अधिकार मिल जाता |

1993 में मात्र 10 वर्षीय अनीता गुप्ता ने अपने छोटे भाई संतोष कुमार के साथ मिलकर ग्रामीण महिलाओं को शिक्षा और रोजगार प्रशिक्षण प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाने के अपने मिशन के लिए भोजपुर महिला कला केंद्र की स्थापना की | 

बहुत कम उम्र में अपने माता-पिता को खोने वाले भाई-बहनों ने फिर बिहार का चक्कर लगाया और गांवों में महिलाओं के बीच जागरूकता फैलाई |

महिलाओं को संगठन से जोड़ने के लिये उन्होंने महिलाओं को प्रोत्साहित किया और कहा अगर वह पैसा कमायेगीं तभी तो वे अपने बच्चों को स्कूल भेज सकती हैं |

 यह भी पढ़ें- उभरती महिला एंट्रेप्रेन्योर्स अपने बिज़नेस को बड़ा करने के लिए इन 7 सरकारी योजनाओं उठा सकती हैं लाभ

आरंभ में बहुत सी मुश्किलों का करना पड़ा सामना

एक ऐसा समय जब महिलाएं अपने घरों से बाहर निकलने को तैयार ही नहीं होती थीं | उनका जीवन केवल अपने घरेलू कर्तव्यों और अपने परिवार की देखभाल के इर्द-गिर्द ही घूमता था |

उस समय उन्हें एक गांव में महिलाओं से मिलने तक की अनुमति नहीं थी | उन्हें महिलाओं से बात करने के लिए परिवार के मुखिया की अनुमति लेनी पड़ती थी | वे लोग अधिकतर उन्हें बाहर निकलने के लिए कह देते थे | और एक मिनट के लिए भी महिलाओं से बात करने की अनुमति नहीं देते | वहाँ के पुरुष नहीं चाहते थे कि उनकी महिलाएं आजीविका कमाएं या अपनी खुद की पहचान बनाएं | वे उन्हें चेतावनी देते थे कि ‘हमारी औरतें घूंघट नहीं हटाएंगी’ |

धीरे-धीरे, दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास से भरी अनीता गुप्ता प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान करने के लिए महिलाओं का एक समूह बनाने में सक्षम हो गई | आज उनसे प्रशिक्षण प्राप्त ये महिलाएं अपने जीवन को बेहतर कर पा रही हैं | कुछ महिलाओं ने अपना बुटीक खोला तो कुछ ने अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए स्कूलों से जुड़ी है | कुछ महिलाओं ने आपस में सहयोग कर मशरूम की खेती के लिए समूह भी बनाए हैं और उन्हें बाजार में बेचती हैं |

अनीता का प्राथमिक लक्ष्य सबसे पहले अपने क्षेत्र की महिलाओं और फिर आसपास के गांवों में अन्य लोगों को शिक्षित करना और कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करना था | महिलाओं को सशक्तिकरण में लाना कोई आसान काम नहीं है, वह भी बिहार जैसे राज्य में व्याप्त पितृसत्ता की सीमा का सामना करना |

ग्रामीणों द्वारा उनकी अवहेलना की गई, लेकिन उन्होंने अपनी यात्रा को नहीं रोका | 

साल 2000 में, एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, अमिताभ वर्मा, जिन्होंने महिलाओं के उत्थान के लिए उनके संघर्षों को देखा, ने उन्हें सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए भोजपुर महिला कला केंद्र को पंजीकृत करने में सहायता की |

संस्था के रूप में पंजीकृत होने पर संगठन को बदल दिया गया ताकि सरकार से आर्थिक सहायता मिल सके | 

उनके संगठन ने तब टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS) और DC हस्तशिल्प भारत सरकार को साझेदार के रूप में प्राप्त किया |

धीरे-धीरे, भोजपुर महिला कला केंद्र ने ग्रामीण महिलाओं को हस्तशिल्प प्रशिक्षण शुरू करने के लिए सरकार से मदद मांगी | वर्तमान में, ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए गए आभूषण विभिन्न सरकारी मेलों में बेचे जाते हैं | साथ ही महिलाओं के द्वारा तैयार उत्पाद की आपूर्ति दिल्ली, पुणे, मुंबई और अन्य शहरों में स्थित विभिन्न दुकानों पर भी की जाती है |

यह संगठन आरा में स्थित है | इसके अंतर्गत 10,000 महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों का सृजन किया गया है |

उन्होंने स्वास्थ्य जांच शिविर आयोजित करने, वयस्क शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने और पानी के उपयोग और स्वच्छता पर जागरूकता कार्यक्रम बनाने के लिए 500 से अधिक स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की स्थापना की | 

वह बिहार और झारखंड में उषा सिलाई स्कूल की सदस्य भी हैं, जहां वह सिलाई मशीनों का प्रशिक्षण देती हैं |

 यह भी पढ़ें- 1 लाख से अधिक पेड़ लगा चुकीं तुलसी गौड़ा की जा चुकी हैं पद्म श्री से सम्मानित

पुरस्कार

  • 2008 में, अनीता गुप्ता को महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए बिहार सरकार द्वारा सम्मानित किया गया था |
  • 2017 में उन्हें नीति आयोग, सार्वजनिक नीति थिंक टैंक, ने “वीमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवार्ड”  से सम्मानित किया |
  • 2019 में वह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा ब्रांड्स ऑफ इंडिया अवार्ड से सम्मानित हुईं |
  • उन्हें इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति द्वारा हरस्टोरी विमेन ऑन अ मिशन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था |
  • उन्हें अपने क्षेत्र में महिला समुदाय के उत्थान में उनके योगदान के लिए, शिवाजी कॉलेज द्वारा जनवरी 2020 में जीजाबाई पुरस्कार से सम्मानित किया गया था |
  • अनीता गुप्ता को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार 2020 के लिए सम्मानित किया गया |
 

भविष्य में, अनीता गुप्ता हस्तशिल्प वस्तुओं के लिए एक स्थायी स्टोर खोलने के लिए सरकार से मदद लेना चाहती है जो ग्रामीण महिलाओं के लिए आय का एक नियमित स्रोत उत्पन्न कर सके |

हौसलों की डोर अगर मजबूत हो तो हर राह आसान होती चली जाती है | बस शर्त है कि आरंभ में आती हुई कठिनाइयों से आप किस तरह मुकाबला करते है | जब तक इरादों में दृढ़ता नही होती, तब तक सफलता असम्भव ही है | 

“तू कर बूलंद हौसले,

पथ से न डर,

आएँगी मुश्किलें हजार,

बस बढ़ और बढ़ती चल |”

Jagdisha आपकी सोच और महिला उत्थान के कार्यों के प्रति अपके समर्पण और मजबूत हौसले को सलाम करते है | हम कामना करते है कि आप दिन प्रतिदिन अपने कार्य क्षेत्र में प्रगति और ख्याति प्राप्त करती रहे व भविष्य में अपने सभी उद्देश्यों को सहजता से पार करती जाएं |

 

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ