ई-रिक्शा चला घर संभालने के साथ -साथ महिलाऐं आर्थिक रूप से भी बन रहीं हैं सशक्त | Women in Gujarat becoming financially empowered by driving E-Rikshaw

हमारे देश की कुल जनसंख्या का आधा या 50% भाग महिलायें है | तो क्या सभी महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त नही | जी बिल्कुल नही, महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में भारत देश का नाम 190 देशो में 117वें स्थान पर है |

लोगों की दैनिक या समय के उपयोग को लेकर भारत में पहली बार किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, 15-59 साल के बीच की सिर्फ़ 20.6 प्रतिशत महिलाएं ही ऐसे कामों में आसक्त हैं जिनके बदले उन्हें किसी प्रकार के वेतन का भुगतान किया जाता है |

गुजरात में नर्मदा जिले के केवड़िया में दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (Statue of Unity, Sardar Vallabhbhai Patel) स्थापित होने के बाद वहाँ के पूरे इलाके का परिदृश्य ही बदल गया है | स्थानीय स्तर पर रोजगार के साधन बढ़े हैं | जिसके साथ ही केवड़िया की स्थानीय आदिवासी महिलाएं आत्मनिर्भर हुई हैं |  यहां की लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं ई-रिक्शा (E-Rickshaw) चलाती हैं, और रोजाना 1,100 से 1,400 रुपये तक कमा लेती हैं |

 

यह भी पढ़ें- हर महिला को सशक्त होने के लिए ये जानना बहुत जरूरी है

केवड़िया की आदिवासी महिलाएं, अब आत्मनिर्भर बन रही हैं | वे सभी महिलाएं ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं हैं, मुश्किल से सिर्फ अपना नाम लिख पाती हैं |

गुजरात के केवड़िया की रहने वाली 35 साल की ज्योति कुमारी तरवी एक आदिवासी महिला हैं, जो ई-रिक्शा चलाती हैं | ज्योति की ही तरह लगभग 60 महिलाएं देश के पहले हरित ऊर्जा प्रमाणित एकतानगर रेलवे स्टेशन के पास ई-रिक्शा चलाती हैं | ये सभी केवड़िया और उसके आस-पास मे रहने वाली महिलाएं हैं | अब ये महिलाएं ई-रिक्शा और घर दोनों चलाती है |

आपको बता दे, कि एकतानगर रेलवे स्टेशन का नाम पहले केवड़िया रेलवे स्टेशन था | सरदार वल्लभ भाई पटेल की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बनने के बाद इस स्टेशन का नाम बदल दिया गया |

 

 

आत्मनिर्भर बन जी रही हैं सम्मानित जीवन !!

अगर आप ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ जाने के लिए एकतानगर रेलवे स्टेशन पर उतरते हैं, तो आपको स्टेशन परिसर में ये सभी महिलाएं अपने ई-रिक्शा के साथ खडी अवश्य दिख जाएंगी |

आप इनके रिक्शा में बैठकर दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा को देखने के लिए जा सकते हैं | ज्योति कुमारी की ही तरह 25 साल की प्रतिमा कुमारी भी केवड़िया गांव की एक आदिवासी लड़की हैं, जो ई-रिक्शा चलाती हैं | ये आदिवासी महिलाएं 2021 से पहले अपमानित जीवन जी रही थीं | लेकिन अब एक नई शुरुआत हो गई है | इस पहल ने उन्हें सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया है | अब उन्हें पैसों की तंगी नही झेलनी पड़ती | उनके परिवार के किसी भी सदस्य को भूखे पेट नही सोना पड़ता | साथ ही अपने बच्चों के भविष्य को उन्नत बनाने के लिए, उन्हें शिक्षा दिलाने में सक्षम है |

ये महिलाएं एक दिन में 1,000 से लेकर 1,400 रुपये तक कमा लेती हैं | ई-रिक्शा का किराया देने के बाद इनके पास 700 से 1100 रुपये तक बच जाते है, जो उनकी रोज की कमाई है |

जब हम किसी और पर निर्भर होते है या यू कहे कि हम अपनी आवश्यकताओं के लिए जब किसी ओर पर आश्रित होते है, तब कई बार अपमान के घूँट पीने पड़ते हैं |

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी प्रबंधन के प्रवक्ता राहुल पटेल का कहना है, कि आसपास के गांवों की ये महिलाएं, सरकार द्वारा संचालित एकतानगर कौशल विकास केंद्र में प्रशिक्षित होने के बाद ई-रिक्शा चलाकर कमा रही हैं | 

ये सभी बहुत गरीब परिवारों की महिलाएं हैं | 260 से अधिक आदिवासी महिलाओं को औपचारिक तौर पर ड्राइविंग का प्रशिक्षण देने की योजना है | ये महिलाएं न सिर्फ यात्रियों को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के दर्शन करवाती हैं, साथ ही साथ आस-पास की अन्य महत्वपूर्ण जगहों की जानकारी भी देती हैं |

 

यह भी पढ़ें- वकालत को नही चुना व ट्रक का स्टीयरिंग संभाल बन गई भारत की पहली महिला Truck Driver

साथ ही राहुल पटेल के अनुसार 31 अक्टूबर 2018 से अब तक विदेशी सहित 75 लाख से अधिक पर्यटक यहां आ चुके हैं | इनमें से अधिकतर पर्यटकों ने महिलाओं द्वारा चलाई जाने वाले इन ई-रिक्शा पर सफर का आनंद उठाया है | स्टैच्यू ऑफ यूनिटी स्थापित होने के बाद इलाके का पूरा परिदृश्य ही बिल्कुल बदल गया है |

आप महिला है, इसलिए घर की चार दिवारी के लिए बनी है | इस तरह की सोच का अब कोई मतलब ही नही निकलता | हर महिला को आर्थिक रूप से मजबूत बनना चाहिए | आपका अपना बैंक अकाउंट होना चाहिए, जिसमें आप अपनी कमाई जमा करे | महिलाओं को शिक्षा और रोजगार दोनों की ओर अग्रसर होना होगा, तभी उनकी स्थिती मजबूत हो सकती है |

अब यह समय है, जब घर और बाहर दोनों जगह स्त्री और पुरूष दोनों की भागीदारी होना आवश्यक है |

विश्व आर्थिक मंच की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 में भारत 28 पायदान से फिसलकर 112वें से 140वें स्थान पर पहुंच गया | कोरोना महामारी साल में भारत के लैंगिक भेद अनुपात में 4.3% की बढ़ोतरी दर्ज की गई |

विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में महिला श्रम शक्ति की भागीदारी दर (एफएलपीआर) 1990 में 30.27% से घटकर 2019 में 20.8 % रह गई है |

सभी अभिभावको से अनुरोध है, कि अपनी बेटी की शिक्षा के साथ कोई कटोती न करे क्योंकि जब पढ़ेगी तब ही तो बढ़ेगी |

Jagdisha के साथ अपनी राय अवश्य सांझा करे |

 

 

अन्य पढ़ें

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ