कौन है भारत कोकिला, इनकी जयंती को क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में

उन्होंने केवल 13 वर्ष की आयु में ही 1300 पदों की ‘झील की रानी’ नामक लंबी कविता और लगभग 2000 पंक्तियों का एक विस्तृत नाटक लिखकर अंग्रेजी भाषा पर अपनी पकड़ का उदाहरण दिया था| उन्हें शब्दों की जादूगरनी कहा जाता था| वें बहुभाषाविद थीं, और क्षेत्रानुसार अपना भाषण अंग्रेज़ी, हिन्दी, बंगला या गुजराती भाषा में देती थीं| 

हम बात कर रहे हैं, भारत की पहली महिला राज्यपाल (governor) सरोजिनी नायडू की| 

सरोजिनी नायडू एक स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री और एक महान वक्ता भी थीं| सरोजिनी नायडू ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए हर एक नागरिक को अपने भाषण और कविताओं के माध्यम से जागरूक किया था| वें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन का हिस्सा रहीं| वें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली भारतीय महिला भी थीं| 

अत्यंत मधुर स्वर में अपनी कविताओं का पाठ करने के कारण सरोजिनी नायडू को भारत कोकिला कहा जाता है|

वें हमारे  देश की महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं| वें हमेशा महिलाओं में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए प्रयत्नशील रहीं| 


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उन्होंने 1917 में महिला भारतीय संघ (WIA) की स्थापना में मदद की जिसने महिलाओं के लिए वोट प्राप्त किए और विधायी कार्यालय रखने का अधिकार प्राप्त किया| यह भारतीय महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी| 

सरोजिनी नायडू महिला सशक्तिकरण का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं|

हमारा देश निश्चित रूप से महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ रहा है | फिर भी, हमें अभी एक लंबा रास्ता तय करना है|

भारत में हर साल 13 फरवरी को  सरोजिनी नायडू की जयंती को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है|   

जब अत्याचार होता है, तो केवल आत्म-सम्मान की बात उठती है और कहते हैं कि यह आज समाप्त हो जाएगा, क्योंकि मेरा अधिकार न्याय है। यदि आप मजबूत हैं, तो आपको खेलने और काम दोनों में कमजोर लड़के या लड़की की मदद करनी होगी। ~ सरोजिनी नायडू

 

जीवनी

सरोजिनी चट्टोपाध्याय(सरोजिनी नायडू) का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था| उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था, वह  एक वैज्ञानिक और शिक्षा शास्त्री थे| उनके पिता हैदराबाद के निजाम कॉलेज के स्थापक थे| साथ ही वे इंडियन नेशनल कांग्रेस हैदराबाद के पहले सदस्य भी थें| उनकी माता का नाम वरदा  सुंदरी था, वह कवयित्री थी और बंगाली में भी कविताएं लिखती थी|  

सरोजिनी नायडू परिवार के सभी सदस्य देश प्रेमी थे|

सरोजिनी नायडू के 8 भाई बहन थे, जिनमें वह सबसे बडी़ थी| उनके बड़े भाई वीरेंद्रनाथ क्रांतिकारी थे, जिन्होंने बर्लिन कमिटी बनाने में मुख्य भूमिका निभाई| जिन्हें 1937 में एक अंग्रेज ने मार डाला था| उनके एक भाई का नाम धीरेंद्र नाथ थे, जो क्रांतिकारी थे| उनके दूसरे भाई का नाम हरिंद्रनाथ था वह कवि, कथाकार और कलाकार थे| 

सरोजिनी नायडू बहुत ही मेधावी छात्रा थी, वह उर्दू, इंग्लिश, बांग्ला, तेलुगू, फारसी जैसी अन्य भाषाओं में प्रवीण थी|

बारह वर्ष की छोटी आयु में उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी से मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी| उनके पिता चाहते थे कि वो गणितज्ञ या वैज्ञानिक बनें, पर उनकी रुचि कविताएं लिखने में थी|

केवल 13 वर्ष की आयु में उन्होंने 1300 पंक्तियों की कविता ‘द लेडी ऑफ लेक’ लिखी थी| उनकी कविता से हैदराबाद के निजाम बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सरोजिनी नायडू को विदेश में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति दी|

जिस समय में महिलाओ की शिक्षा एक बहुत बडी चुनौती के समान थी, उस समय 16 वर्ष की आयु में वें शिक्षा प्राप्ति के लिए इंग्लैंड गई| वहां पहले उन्होंने किंग कॉलेज लंदन में दाखिला लिया, उसके बाद कैम्ब्रिज के ग्रीतान कॉलेज से शिक्षा हासिल की| वहां वे उस दौर के प्रतिष्ठित कवि अर्थर साइमन और इडमंड गोसे से मिलीं|

उन्होंने  सरोजिनी नायडू को भारत के विषयों को आधार मानकर और पर्वतों, मंदिरों, नदियों और उनके सामाजिक परिवेश के बारे में अपनी कविता में समाहित करने के लिए प्रेरणा दी थी|

सरोजिनी नायडू जब इंग्लैंड में पढाई कर रही थी| तब वही उनका परिचय गोविन्द राजू नायडू से हुआ था| जो वहाँ पर चिकित्सक की पढाई कर रहे थे|  गोविन्द राजू नायडू से सरोजिनी जी को प्रेम हो गया था| और जब वह 19 वर्ष की हुई तब 1898 में उन्होंने उनसे शादी कर ली जो उस समय एक क्रांतिमय कदम था|

उन्होंने अंर्तजातीय विवाह किया था जो कि उस दौर में मान्य नहीं था| मगर उनके पिता ने उनका पूरा सहयोग किया था| उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहा| उन्हें चार संताने जयसूर्या, पद्मजा, रणधीर और लीलामणि हुए|

जब 1905 में उनकी कविता बुल बुले प्रकाशित हुई| तब उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई| उसके बाद भी उनकी कविताएँ प्रकाशित होती रही और लोगों को पसंद भी आती थी| उनके द्वारा संग्रहित 1905 में द गोल्डन थ्रेशहोल्ड, 1912 में द बर्ड ऑफ़ टाइम और 1912 में ही द ब्रोकन विंग बहुत सारे भारतीयों और अंग्रेजी भाषा के पाठकों को पसंद आई|

उनकी कविताओं के प्रशंसकों में रवीन्द्रनाथ टैगोर और जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे|

वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान वो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुईं| इस आंदोलन के दौरान वें गोपाल कृष्ण गोखले, रवींद्रनाथ टैगोर, मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट, सीपी रामा स्वामी अय्यर, गांधीजी और जवाहर लाल नेहरू से मिलीं| 

उन्होंने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों के लिए भारतीय महिलाओं को जागृत किया| भारत में महिला सशक्तिकरण और महिला अधिकार के लिए भी उन्होंने आवाज उठायी| उन्होंने राज्य स्तर से लेकर छोटे शहरों तक हर जगह महिलाओं को जागरूक किया|

सरोजिनी नायडू के राजनीति में सक्रिय होने में गोखले जी के 1906 के कोलकाता अधिवेशन के भाषण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| भारत की स्वतंत्रता के लिए विभिन्न आंदोलनों में सहयोग दिया। काफी समय तक वे कांग्रेस की प्रवक्ता रहीं|


 जलियांवाला बाग हत्याकांड से क्षुब्ध होकर उन्होंने 1908 में मिला ‘कैसर-ए-हिन्द’ सम्मान लौटा दिया था|

अपने संघर्ष क्षमता और लोगों की सेवा भावना के कारण उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और महात्मा गांधी भी उनके काम से बहुत प्रभावित हुए| 1914 में इंग्लैंड में वें पहली बार गाँधीजी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गयीं|

जब सरोजिनी नायडू की मुलकात गोपाल कृष्ण गोखले से हुई तब उनके जीवन में एक नया परिवर्तन आया| गोखले जी ने उन्हें अपनी कलम की ताकत को आजादी की लड़ाई में प्रेरक शस्त्र बनाने को कहा था, और क्रांतिकारी कविताएँ लिखने व लोगों को आजादी की लड़ाई के लिए प्रोत्साहित करने की सलाह दी| उसके बाद तो वें लोगों के अंतर्मन में देश की आजादी का जूनून भरने में लग गई|

संकटों से न घबराते हुए वे एक धीर वीरांगना की भाँति गाँव-गाँव घूमकर, देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं| और देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाती रहीं| 

उनके वक्तव्य जनता के हृदय को झकझोर देते थे और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित कर देते थे| वे बहुभाषाविद थी और क्षेत्रानुसार अपना भाषण अंग्रेजी, हिंदी, बंगला या गुजराती में देती थीं|

वर्ष 1925 में वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं| उन्हें होम रूल लीग की अध्यक्षता करने का भी मौका मिला| उन्होंने मदन मोहन मालवीय के साथ 1931 में हुए गोलमेज कांफ्रेंस में भी हिस्सा लिया| सरोजिनी नायडू सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधी जी के साथ जेल भी गयीं|

वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्हें 21 महीने के लिए जेल में रहना पड़ा था और बहुत सारी यातनाएं सहनी पड़ी थी| उनका गांधीजी से मधुर संबंध था, और वें उनको मिकी माउस कहकर पुकारती थीं|


स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद, उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया| 

उत्तर प्रदेश विस्तार और जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रांत था| उस पद को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, मैं अपने को क़ैद कर दिये गये जंगल के पक्षी की तरह अनुभव कर रही हूँ| लेकिन वह प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इच्छा को टाल न सकीं जिनके प्रति उनके मन में गहन सम्मान व स्नेह था| इसलिए वह लखनऊ में जाकर बस गईं और वहाँ सौजन्य और गौरवपूर्ण व्यवहार के द्वारा अपने राजनीतिक कर्तव्यों को निभाया|

70 वर्ष की उम्र में 2 मार्च 1949 को महान स्वतंत्रता सेनानी और कवयित्री सरोजिनी नायडू का दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया|


सरोजनी नायडू की प्रमुख रचनायें

12 साल की आयु में उन्होंने फारसी नाटक मेहर मुनीर की रचना की, जो हैदराबाद के तत्कालीन नवाब को बहुत पसंद आई थी| साथ ही 13 वर्ष की आयु में उन्होंने 1300 पंक्तियों की कविता ‘द लेडी ऑफ लेक’ लिखी थी|

1905 में उनका पहला कविता संग्रह द गोल्डन थ्रैशहोल्ड प्रकाशित हुआ|

1912 अपने दूसरे कविता संग्रह बर्ड आफ टाइम और 1917  तीसरे संग्रह ब्रोकन विंग से उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली|

1916 में मुहम्मद अली जिन्ना: एन एम्बेसडर आफ युनिटी और 1943 में द स्क्रिप्टेड फ्लूट: सांग्स आफ इंडिया का प्रकाशित हुई|

1961 में उनकी रचना द फीदर आफ द ड्वान को उनकी बेटी पद्मजा नायडू ने प्रकाशित करवाया|

1971 में उनकी अंतिम रचना द इंडियन वेबर्स प्रकाशित हुई|

पुरस्कार

ब्रिटिश सरकार ने सरोजनी नायडू को महामारी से लोगों को बचाने के लिए कैसर ए हिंद पुरस्कार से पुरस्कृत किया था| 13 फरवरी 1964 को भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में 15 नए पैसे का एक डाकटिकट भी जारी किया था|

सरोजिनी नायडू का नाम भारतीय इतिहास में सदैव याद रखा जायेगा उनके जन्मदिन को भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है| 

सरोजिनी नायडू सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है, वें एक सशक्त महिला थी, जिन्होंने अपने बुद्धि-कौशल और संघर्ष से अपने जीवन की राह स्वयं तय की|

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