Pratishtha Deveshwar Wheelchair पर होकर भी Oxford University मे पढने वाली पहली भारतीय छात्रा

Pratishtha Deveshwar Wheelchair पर होकर भी Oxford University मे पढने वालीपहली भारतीय छात्रा

बीते हुए समय को बेसक नही बदला जा सकता किन्तु भविष्य निश्चित ही आपके हाथ मे होता है | आपकी समस्याएं आपको रुकने का संकेत नही देती बल्कि वो लक्ष्य के रास्ते का मार्गदर्शक होती है | अपनी कठिनाइयों को साहस, धैर्य और आत्मविश्वास से बखूबी हराया है, होशियारपुर के गौतम नगर की प्रतिष्ठा देवेश्वर ने |

वह 13 वर्ष की आयु मे चंडीगढ़ जाते समय कार दुर्घटना में घायल हो गई थीं | इस दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी पर गहरी चोट लगी थी, जिसके कारण उनके शरीर का निचला हिस्सा पैरालाइज हो गया था और तभी से वह व्हील चेयर पर ही हैं |
पैरालाइज होने के बाद प्रतिष्ठा 3 वर्षो तक बिस्तर पर ही रहीं जिसके कारण उन्हें घर पर ही अपनी पढाई जारी रखी | 10वीं और 12वीं में 90-90% प्रतिशत अंक लाकर उन्होने यह बता दिया कि, मन मे अगर अटल दृढ़ता हो तो उस आत्मविश्वास के सामने हर चुनौती आसान हो जाती हैं |

12वी मे सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होने के बाद उन्होने स्वतंत्र रहने का फैसला किया | और दिल्ली जाकर पढ़ाई करने का मन बनाया, तब परिजनों ने मना किया। वे उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे | परन्तु उन्होने परिजनो को भी अपनी बात मनवाने पर विवश कर दिया |

परिवार से दूर वह अब लेडी श्रीराम कॉलेज फार वूमेन, दिल्ली यूनिवर्सिटी से राजनीतिक शास्त्र में बीए ऑनर्स कर रही है और पिछले तीन वर्ष से अकेले ही वहां रह रही है। प्रतिष्ठा के पिता मुनीष शर्मा होशियारपुर में ही डीएसपी स्पेशल ब्रांच पर तैनात है और माता अध्यापक हैं |

वहां कॉलेज मे उनका साहस ओर भी अधिक बढा फिर ततो उन्होने न सिर्फ अपने लिए बल्कि अन्य लड़कियों के लिए भी आवाज उठाना सीखा। प्रतिष्ठा की आवाज देश-विदेश तक पहुंची। उन्हें ब्रिटिश हाई कमीशन, हिंदुस्तान यूनिलीवर, यूनाइटेड नेशंस में वैश्विक स्तर पर अपनी बात रखने का अवसर मिला। प्रतिष्ठा दिव्यांगों के अधिकारों को लेकर भी काफी सक्रिय भूमिका निभा रही है |

प्रतिष्ठा देवेश्वर का चयन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पब्लिक पॉलिसी में मास्टर्स डिग्री के लिए हुआ है। प्रतिष्ठा व्हीलचेयर पर रहने वाली भारत की पहली छात्रा हैं, जिन्हें ऑक्सफोर्ड में पढ़ने का मौका मिला | वह कोर्स पूरा करने के बाद भारत आकर यूपीएससी की परीक्षादेना चाहती हैं | वह उनकी आवाज बनना चाहती हैं जिनकी ना तो कोई सुनता है और न कोई बात करता है |
 
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