भारतीय शिपिंग की पहली महिला कही जाने वाली सुमति मोरारजी का जीवन परिचय

भारतीय शिपिंग की पहली महिला कही जाने वाली सुमति मोरारजी का जीवन परिचय


भारतीय महिलाएं हमेशा से अपने शौर्य और बुद्धिमता का लोहा देती रहीं हैं। 

अगर सही शिक्षा की महत्ता को समझ बचपन से बिना किसी लिंगभेद के उचित ज्ञान का संचार हर बच्चे में किया जाए तो निश्चित ही समाज और देश का विकास उच्चतम शिखर पर पहुंच जाएगा।

13 वर्ष की आयु में हो गया था विवाह। अपनी बुद्धिमता और सीखने की इच्छाशक्ति के कारण जुड़ी परिवार की शिपिंग कंपनी के प्रबंधक कार्यों में। 

भारत की पहली शिपिंग कंपनी की एक समय में प्रबंधक एक महिला रहीं। सुमति मोरारजी, जिन्हें भारतीय शिपिंग की प्रथम महिला के रूप में जाना जाता है।

उन्होंने 43 जहाजों और 6 हजार से अधिक कर्मचारियों के बेड़े का अकेले ही प्रबंधन किया। 

उन्होंने आधुनिक भारतीय शिपिंग कंपनियों के लिए एक ऐसा मॉडल स्थापित करने में मदद की जो दुनिया को न केवल व्यापारिक मूल्यों के आधार को अपितु भारतीय संस्कृति और विरासत के विचारों को भी प्रचारित करे।

महात्मा गांधी जी की मित्रों की गिनती में उनका भी एक नाम है। महात्मा गांधी जी के द्वारा आयोजित कई स्वतंत्रता आंदोलनों में भी सुमति मोरारजी ने अपनी सहभागिता दिखाई।

वर्ष 1971 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

आइए जानतें हैं सुमति मोरारजी की जीवन यात्रा…

प्रारंभिक जीवन 

सुमति मोरारजी का जन्म 13 मार्च 1909 में बॉम्बे (मुम्बई) एक समृद्ध धनी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम माथुरादास गोकुलदास और मां का नाम प्रेमाबाई था। 

उनके माता – पिता ने उनका नाम पवित्र यमुना नदी के नाम पर जमुना रखा। तब शायद उन्हें यह एहसास ही न था की सात बच्चों में इकलौती बेटी का भविष्य पानी से ही जुड़ने वाला है। 

उस दौरान लड़कियों को सामाजिक रूप से अधिक स्वतंत्रता नही थी। बहुत से सामाजिक नियमो की बेड़ियों में महिलाएं जकड़ी हुई थीं।

तत्कालीन रीति रिवाजों के अनुसार 13 वर्ष की अल्पायु में ही सुमति मोरारजी (जमुना) का विवाह स्वतन्त्रता पूर्व प्रख्यात उद्योगपति नरोत्तम मोरारजी के इकलौते बेटे शांति कुमार मोररजी से हुआ।

नरोत्तम मोरारजी कपड़ा उद्योग के व्यापारी होने के साथ उन्होंने वर्ष 1919 में सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी को भी स्थापित किया।

यह बात तो कल्पना से परे ही थी की नरोत्तम मोरारजी द्वारा स्थापित शिपिंग कंपनी की आगे चलकर बागडोर सुमति मोरारजी (जमुना) के हाथों में आने वाली थी।

सुमति मोरारजी और शांति कुमार मोररजी विवाह प्रसंग क्योंकि यह दो समृद्ध और प्रसिद्ध परिवार के बढ़ते रिश्ते थे इसलिए यह शादी बॉम्बे में सबसे में सबसे बड़े सामाजिक आयोजनों में से एक थी। आयोजन लगभग सप्ताह भर तक चलते रहें। और इस शादी की चर्चा महीने भर तक रही।

जमुना से सुमति मोरारजी 

नरोत्तम मोरारजी जमुना की तीव्र बुद्धि और जल्दी से सीखने के कौशल व ज्ञान अर्जित करने की लगन से अत्याधिक प्रभावित हुए। और उन्होंने उनका नाम जमुना से सुमति रख दिया। 

सुमति एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘श्रेष्ठ बुद्धि वाली महिला’। उस उम्र में, सुमति मोरारजी हिंदी, इंग्लिश और मराठी भाषाओं में परांगत थीं।

उन्होंने बार – बार मोरारजी परिवार के व्यावसायिक मामलों में अपनी गहरी रुचि व्यक्त की और अक्सर अपने शानदार विचार साझा किए।

उनकी सास का शीघ्र निधन हो जाने के कारण उन्होंने घर की भी पूरी जिम्मेदारी संभाली।

पहली शिपिंग महिला के रूप में 

वर्ष 1923 में 14 साल की आयु में सुमति मोरारजी को सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी की प्रबंध एजेंसी के लिए नामांकित किया गया। जो दौर के हिसाब से कुछ अनसुना सा था।

20 साल की उम्र में उन्हें कंपनी के निदेशक मंडल में शामिल किया गया।

उस समय शिपिंग व्यापार अपनी प्रारंभिक अवस्था में था। नरोत्तम मोरारजी ने भारत और यूरोप के बीच कार्गो परिवहन के लिए कुछ जहाजों की पैरवी की थी।

सुमति मोरारजी ने कुछ जहाजों को पार करने वाली विनम्र शुरुआत से धीरे – धीरे विकसित करने तक का लक्ष्य पार किया। वर्ष 1946 में उन्होंने कंपनी का पूर्ण कार्यभार संभाला।

उन्होंने अपने अनुभवों के आधारों और विशेषज्ञता के बल से अगले कुछ दशकों में शिपिंग व्यापार को शानदार रूप से विकसित किया।

उन्होंने अकेले ही कंपनी को 43 बड़े जहाजों, जिनका वजन 5,52,000 टन था के बेड़े में वृद्धि की। उन्होंने 6,000 से अधिक कर्मचारियों का प्रबंधन किया। वह इंडियन फ्लीट एसोसिएशन की अध्यक्ष भी बनीं।

उनके अद्भुद कार्य के कारण, उन्हे 1956-1958 तक और फिर 1965 में इन्डियन नेशनल स्टीमशिप ऑनर्स एसोसिएशन जिसे बाद में इंडियन नेशनल शिप ऑनर्स एसोसिएशन कर दिया गया की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में चुना गया।

भारत की आजादी के बाद, जैसे जैसे भारतीय व्यापार में वृद्धि हुई, जहाजों ने निर्यात और आयात को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सुमति मोरारजी ने अपनी विशेषज्ञता और अनुभवों से भारतीय व्यापार संबंधों और परिवहन में मुख्य योगदान दिया।

वर्ष 1965 तक सुमति मोरारजी द्वारा संचालित सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी भारत की सबसे पुरानी, बड़ी और सम्मानित प्रतिष्ठानों में से एक बन गई।

वर्ष 1970 में वह वर्ल्ड शिपिंग फेडरेशन, लंदन की उपाध्यक्ष बनीं।

उन्होंने नरोत्तम मोरर्जी इंस्टीट्यूट ऑफ शिपिंग के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।

वर्ष 1979 से 1987 तक वह कंपनी की चेयरपर्सन रहीं। दुर्भाग्यवश कर्ज में डूबी कंपनी को तत्कालीन शिपिंग क्रेडिट एंड इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने अपने कब्जे में ले लिया।

उस समय कंपनी के 23 जहाज, जिन्हें सुमति मोरारजी अपनी बेटियां कहती थीं बेच दिए गए। वह 1992 तक कंपनी की चेयरपर्सन एमेरिटस रहीं।

स्वतन्त्रता संग्राम में भूमिका

सुमति मोरारजी और उनके पति शांति कुमार मोरारजी ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सुमति मोरारजी, महात्मा गांधी जी के करीबी मित्रों में से एक रहीं। 

महात्मा गांधी जी उनसे नियमित पत्र व्यवहार करते थें। वर्ष 1942 और 1946 के बीच सुमति मोरारजी ने उनके साथ स्वतन्त्रता के लिए भूमिगत आंदोलनों में पूर्ण सहयोग दिया।

सुमति मोरारजी ने अपने जहाजी बेड़ो द्वारा अशांति विभाजन के दौरान सिंधियों को पाकिस्तान से भारत सुरक्षित पहुंचाने में मदद की।

सामाजिक कार्य

सुमति मोरारजी गहन आध्यात्मिक और श्रीनाथ जी की भक्त थीं। वह तुलसी पूजा किया करती थीं।

वर्ष 1965 में उन्होंने अपने जहाज जलदत्त पर स्वामी प्रभुपाद, जो बाद में इस्कॉन के संस्थापक आचार्य हुए के लिए न्यूयॉर्क यात्रा हेतु टिकट की व्यवस्था की।

उन्होंने जुहू, मुंबई में विद्या केंद्र स्कूल की स्थापना की।

उन्हें अपनी नागरिक सेवाओं के लिए 1971 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

निधन 

27 जून 1998 में 89 वर्ष की आयु में सुमति मोरारजी का हृदय गति रुकने के कारण निधन हो गया।

सुमति मोरारजी सही अर्थों में भारतीय शिपिंग की जननी थीं।

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