गर्भवती महिलाओं के लिए जानना है जरूरी क्या होते है बेबी ब्लूज और पोस्टपार्टम डिप्रेशन?

गर्भावस्था (प्रेग्‍नेंसी) के साथ ही घर-परिवार में एक नए मेहमान के आने की खुशी की लहर फैल जाती है| नौ महिने के इंतजार के बाद वह नन्ही सी जान अपनी पहली किलकारी के साथ इस दुनिया के परिवेश में आ जाते है| उस प्यारे से बच्चे के आने से माँ के मन में प्रेम, वात्सल्य और ख़ुशी होती है, लेकिन इसी बीच नई माँ को हो रही गंभीर उदासी क्या हैं?

बच्चे के जन्म के बाद आपके जीवन में एक आधारभूत परिवर्तन आता है और आपको कई प्रकार के नए अनुभव होते हैं| प्रसव (डिलीवरी) के बाद महिलाओं में शारीरिक और मानसिक बदलाव आना स्वाभाविक है| ये बदलाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के हो सकते हैं| कई महिलाओं के लिए यह चिंता और अवसाद (डिप्रेशन) का कारण भी बन जाता है| जिससे डिलीवरी के बाद महिलाओं में चिड़चिड़ापन, चिंता, उदासी, निराशा, अकेलापन और भूख कम या ज्यादा लगना समेत कई लक्षण नजर आने लगते हैं|

कई बार डिप्रेशन का स्तर इतना बढ़ जाता है कि यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है|

प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं में डिप्रेशन होना सामान्य है| रिसर्च की माने तो, 15% महिलाएं इसका सामना करती हैं| बेबी ब्लूज यानी प्रसवोत्तर उदासी 15 से 85% महिलाओं को होती है| 

पोस्टपार्टम डिप्रेशन इस शब्द से भारत में अभी कुछ ही लोग परिचित है लेकिन इस गंभीर समस्या का बहुत से लोग सामना कर चुके हैं और कर रहे हैं| अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के अनुसार डिलीवरी के बाद चार में से एक महिला को पोस्टपार्टम डिप्रेशन की स्थिति से गुजरना पडता है, इसे पोस्ट डिलीवरी स्ट्रेस भी कहा जाता है| 

प्रेग्‍नेंसी की शुरुआत या फिर डिलीवरी के बाद बेबी ब्लूज का सामना करना पडता हैं| 

इस दौरान चिड़चिड़ापन, चिंता, निराशा, डर, नींद में कमी समेत कई लक्षण नजर आते हैं| ज्यादातर डिलीवरी के 2-3 दिन बाद से शुरू होकर 1-2 हफ्ते तक चलते हैं और यह गंभीर समस्या नहीं होती| 

लेकिन ये लक्षण 2 हफ्ते से अधिक और उससे भी लंबे समय तक बन रहे, तो यह डिप्रेशन कहलाता है, और मां-बच्चे दोनों के लिए गंभीर हो सकता है| इसे  प्रसवोत्तर अवसाद (पोस्टपार्टम डिप्रेशन) कहा जाता है| आधुनिक दौर में यह समस्या काफ़ी तेजी से बढ़ रही है| रिसर्च के अनुसार 15% नई माँ डिप्रेशन का शिकार होती है|

पोस्टपर्टम डिप्रेशन गर्भावस्था के दौरान या बच्चे के जन्म के एक वर्ष बाद तक शुरू हो सकता है| 

पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है जो आपके सोचने, महसूस करने, या कार्य करने के व्यवहार को प्रभावित करती है और आपके चित पर नकारात्मकता हावी हो जाती है| शुरुआत में पोस्टपर्टम डिप्रेशन और सामान्य तनाव व थकावट के बीच स्पष्ट अंतर को समझ पाना थोडा मुश्किल होता है| प्रेग्नेंसी के समय या उसके बाद थकावट, उदासी या निराशा की भावनाओं का अनुभव करना असामान्य नहीं है, लेकिन अगर भावनाएं आपको अपने दैनिक कार्यों को करने से रोकती हैं, तो यह पोस्टपर्टम डिप्रेशन का संकेत हो सकता है|

पोस्टपार्टम डिप्रेशन के मुख्य प्रकार है में पोस्टपार्टम पैनिक डिसऑर्डर, पोस्टपार्टम एंग्जायटी, पोस्टपार्टम ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर आते है|

पोस्टपार्टम पैनिक डिसऑर्डर इसमें सांस फूलना, धड़कन तेज होना, मरने का डर, सीने में दर्द जैसे लक्षण देखाई देते हैं| पोस्टपार्टम एंग्जायटी में निराशा, मन में अपराध बोध आदि की समस्या उत्पन्न होती हैं| पोस्टपार्टम ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर यह अत्यधिक गंभीर स्थिति है, इस समय महिला के मन में अपने स्वयं को और बच्चे को हानि पहुंचाने के ख्याल आ सकते है| इस स्थिति में डॉक्टर से सम्पर्क करना अति आवश्यक होता है|

पोस्टपर्टम डिप्रेशन के सटीक कारण अज्ञात हैं, लेकिन प्रेग्नेंसी के समय और डिलीवरी के बाद महिला के शरीर में कई तरह के हॉर्मोनल बदलाव होते हैं| प्रेग्नेंसी के समय, प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजेन हार्मोन के स्तर सामान्य से अधिक होते हैं| डिलीवरी के बाद यह स्तर अचानक सामान्य हो जाता है| इस अचानक हुए परिवर्तन से डिप्रेशन हो सकता है| इसके अतिरिक्त अच्छी माँ बनने का दबाव, नींद पूरी न होना, अपर्याप्त आहार, अपने करियर को लेकर चिंता और अनचाहा गर्भ भी कारण हो सकते है|

अमेरिकन सोसायटी ऑफ एनेस्‍थेसिओलोजिस्‍ट में शोधकर्ताओं ने एक स्‍टडी में बताया कि मौसम, मां का वजन, रंग, एपिड्यूरल का इस्‍तेमाल, शिशु की जेस्‍टेशनल एज और अन्‍य कारक भी पोस्टपर्टम डिप्रेशन में अहम भ‍ूमिका निभा सकते हैं|

क्या होते है, पोस्टपर्टम डिप्रेशन के लक्षण?

  • बिना किसी कारण के चिड़चिड़ापन या गुस्से में रहना| छोटी-छोटी बातो पर भी बिदक जाना|
  • किसी भी काम पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होना|
  • हर काम को उदासीनता से करना|
  • नींद न आना या बहुत अधिक नींद आना|
  • अस्पष्ट दर्द या बीमारी का अहसास|
  • अनियंत्रित भूख या खाने की अनिच्छा|
  • आत्म-नियंत्रण की कमी महसूस करना|
  • बिना कारण अत्यधिक रोना|
  • अज्ञात डर बना रहना और स्वयं को असहाय महसूस करना|
  • थकान महसूस होना और आराम करने के बाद भी नींद न आना|
  • अपने आस-पास के लोगों, यहां तक ​​कि दोस्तों और परिवार से भी दूरी बना लेना|
  • अपने बच्चे के बारे में अत्यधिक चिंता करना या बच्चे की देखभाल करने में कोई दिलचस्पी न लेना|

डिप्रेशन के रोगी में मोटापा, दिल का दौरा और लम्बी बीमारी का खतरा बढ़ सकता है|

कब होता है, पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने का खतरा अधिक?

  • प्रेगनेंसी के दौरान चिंता या डिप्रेशन होना|
  • भावनात्मक अस्थिरता
  • सामाजिक अलगाव|
  • हाल ही में कोई तनावपूर्ण घटना जैसे तलाक, किसी अपने को गंभीर बीमारी या मृत्यु होना|
  • पहले कभी डिप्रेशन हुआ हो|
  • परिवारिक मतभेद और सहयोग की कमी का एहसास|
  • बच्चे की देखभाल को लेकर परेशान होना|
  • आत्मसम्मान में कमी महसूस करना|
  • बच्चे का रोते रहना|
  • सिंगल पेरेंट होना|
  • पार्टनर के साथ रिश्ता सही न होना|
  • आर्थिक स्थिति कमजोर होना|
  • परिवार में मानसिक स्वास्थ्य बीमारी का इतिहास होना|

कैसे करे पोस्टपर्टम डिप्रेशन का सामना?

पोस्टपर्टम डिप्रेशन की स्थिति में परिवार के सदस्यों का प्रोत्साहन, सहयोग और आनंदित परिवारिक वातावरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है| बच्चे की देखभाल के लिए पार्टनर, परिवार के सदस्यों का पूर्ण सहयोग देना एक अच्छा कदम है| उन्हें समझने की कोशिश करें और धैर्य रखें|

डिलीवरी के बाद लगभग एक साल तक अच्छी देखभाल आवश्यक होती है| इस समय महिला को भावनात्मक सहयोग की सबसे अधिक आवश्यकता होती है|

महिलाओं अगर किसी बात से विचलित है या मन में बूरे ख्याल आ रहे है, तो अपनी भावनाओं को मन में न रखें| इसके बारे में पार्टनर, परिवार के सदस्यों व दोस्तों से बात करें|

आपको उचित आराम की आवश्यकता होती है, इसलिए थकान महसूस होने पर आराम करें| जबरदस्ती काम का दबाव न ले| बच्चे के सोने के समय खुद भी नींद लें| संतुलित व पौष्टिक आहार का सेवन करें|

स्वयं को अकेला न महसूस होने दे| अगर अकेलापन लग रहा हो तो परिवार के सदस्यों व दोस्तों से बात करें| अगर संभव हो तो परिवार के साथ रहे और उनसे मिलने जाएं|

डॉक्टर की सलाह पर हल्के व्यायाम और योग करें|

समय निकालकर पार्टनर, परिवार के सदस्यों व दोस्तों के साथ बाहर घुमने जाएं|

पोस्टपार्टम डिप्रेशन का गंभीर रूप पोस्टपार्टम साइकोसिस एक जटिल समस्या होती है| 1,000 में से 1 या 2 नई माँ में यह डिप्रेशन देखने को मिलता है| इसके लक्षण डिलीवरी के 2 से 3 घंटे से लेकर चार हफ्तों के अंतर्गत नजर आ सकते हैं| पागलपन की स्थिति, हर चीज को शक की निगाहों से देखना, अजीब चीजें नजर आना, डर लगना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं| इसके लक्षण दिखते ही बिना देरी किए मनोरोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए| 

पोस्टपर्टम डिप्रेशन के लक्षण दिखने या स्थिति महसूस होने पर अच्छे डॉक्टर से संपर्क करे और बेझिझक अपनी समस्या के निदान के लिए सलाह ले| अगर लक्षण शुरुआती हैं तो इसके लिए दवाइयों की आवश्यकता नहीं होती| लेकिन बीमारी बढ़ जाने पर मनोचिकित्सक को दिखाना आवश्यक है|

 

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