भेट या अभिशाप : दहेज समाजिक कोढ और कलंक

अजीब विडंबना हैं, जिस देश में शाक्ति, समृद्धि, विद्या, धन-धान्य, और प्रकृति का प्रतीक विभिन्न पूजनीय देवियो जैसे दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती इत्यादि को पूजा जाता हैं, उस देश में महिलाओं को अपना अस्तित्व साबित करने के लिए संघर्ष करना पडता हैं| और कुछ तो अस्तित्व में ही नही आ पाती क्योंकि गर्भ में ही कन्या भ्रूण को नष्ट कर दिया जाता हैं| कन्या के जन्म पर कुछ अभिभावक उन पर एक बोझ बढ़ जाना समझते हैं| कन्या के पैदा होने के बाद से ही शादी और दहेज की चिंता सताने लगती हैं|

बेटियों को जीवन भर अपने घर तो नही रख सकते न, उन्हें तो विदा करना ही पडता हैं| ये सोच ही लडकियों को उनके शिक्षा के अधिकार से भी वंचित रखने के लिये जिम्मेदार हैं| कुछ अभिभावक बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने से बेहतर जल्दी शादी करवाना बेहतर समझते हैं| जिसका मुख्य कारण यह हैं, कि ज्यादा पढ़ी-लिखी लडकी के लिये लडका भी उसकी योग्यता के अनुरूप ही होना चाहिए, लेकिन उसकी तो एक ऊँची बोली होगी| अब पढा़ई पर खर्चा करे या शादी मे|

बेटा तो घर का चिराग होता हैं, क्योंकि खानदान को तो आगे उसी को बढ़ाना हैं| बेटी तो किसी ओर के परिवार को आगे बढ़ाती हैं|

अगर समाज की बातो से ही सहमती जताऊँ फिर भी बेटी तो चाहिए ही न, बेसक कुछ लोग उन्हें परिवार नियोजन की मशीन ही समझते हो| तो फिर दहेज के नाम पर बेटो की बोली क्यों लगाईं जाती हैं|

अरे अपने बेटे को पढ़ाया-लिखाया कबिल बनाया उसमे पैसे नही लगे क्या| अपनी कमाई पत्नी पर ही तो शादी के बाद लुटायेगा तो कैसे न बेटी के पिता से दहेज मांगे? आगे चलकर उसी की बेटी तो खुश रहेगी| लेकिन एक बेटी के पिता ने जो परवरिश की, उसे पढाया उसका क्या? तो क्या पति की सारी कमाई पत्नी सिर्फ अपने ऊपर खर्च करती हैं?

प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज में विभिन्न प्रथाएं अस्तित्व में रही हैं| जिनमें कुछ परंपराएं ऐसी भी हैं जो बदलते समय के साथ-साथ अधिक विकराल रूप लेती जा रही हैं| दहेज प्रथा ऐसी ही एक कुरीति बनकर उभरी है जिसने ना जाने कितने ही परिवारों को अपनी चपेट में ले लिया है|

दहेज प्रथा आज अपने घृणित रूप में हमारे सामने खड़ी है|

जो कुछ भी, विवाह के समय कन्या के परिवार की तरफ़ से वर के परिवार को उपहार स्वरूप दिया जाता था, वह उत्तरवैदिक काल में वहतु फिर मध्य काल में स्त्रीधन और अब अपने प्रचंड रूप दहेज मे परिवर्तित हैं| दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं| यूरोप, भारत, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास रहा है| भारत में इसे दहेज, हुँडा या वर दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है| वधू के परिवार द्वारा धन या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है|

ऋगवैदिक काल में दहेज प्रथा का कोई औचित्य नहीं था| उत्तरवैदिक काल में वर्तमान दहेज स्वरूप से बिल्कुल भिन्न वहतु प्रथा का प्रचलन था| इस काल में वधु का पिता उसे विदा करते समय कुछ उपहार भेट में देता था| लेकिन उसे दहेज नहीं मात्र उपहार माना जाता था| यह पूर्व निश्चित नहीं होता था| पिता अपनी स्वेच्छा से अपनी पुत्री के नवजीवन के आरंभ मे अपने योगदान हेतु जो कुछ भी देना उचित समझता वह भेट स्वरूप देता था| इसमें न्यूनतम या अधिकतम जैसी कोई सीमा निर्धारित नहीं थी|

मध्य काल में वहतु स्त्रीधन मे परिवर्तित हो गया| लेकिन अभी इसका स्वरूप वहतु के ही समरूप था| पिता अपनी इच्छा और योग्यता के अनुरूप धन या उपहार देकर बेटी को विदा करता था| इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि जो उपहार वो अपनी बेटी को दे रहा है वह किसी परेशानी में या फिर किसी बुरे समय में उसके और उसके ससुराल वालों के काम आएगा| इस स्त्रीधन से ससुराल पक्ष का कोई संबंध नहीं होता था, लेकिन इसका स्वरूप पहले की अपेक्षा थोड़ा विस्तृत हो गया था| अब विदाई के समय धन को भी महत्व दिया जाने लगा था|


विशेषकर उच्च और संपन्न परिवार के लोगो ने इस प्रथा को अत्याधिक बढ़ा दिया| इसके पीछे उनका मंतव्य ज्यादा से ज्यादा धन खर्च कर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना था| यानी ज्यादा दिखावे को धन-संपन्न लोग अपनी बडाई समझने लगे|

जिसने बेटी की शादी मे ज्यादा खर्चा किया बस उसी के चर्चे, पर इस होड ने स्त्रीधन शब्द पूरी तरह समाप्त कर दहेज शब्द की उत्पत्ति की| संपन्न लोगो की देखादाखी मध्यम वर्ग, असंपन्न और अति निर्धन लोगो मे भी ये होड शुरू हो गई|
वर्तमान स्थिति तो ऐसी हैं कि एक बेटी के परिवारवालों का सम्मान दहेज में दिए गए धन-दौलत पर ही निर्भर करता है| दहेज मानो निर्धन लोगो के जीवन का अभिशाप बन गया है| ये दहेज अब बेटियों के भविष्य को नष्ट करने वाला और वधु आहुती का रूप ले चूका हैं|

भेट या अभिशाप : दहेज समाजिक कोढ और कलंक


संपन्न परिवारों को दहेज देने या लेने में कोई बुराई नजर नहीं आती , क्योंकि उनके लिए यह निवेश मात्र है| जिस निवेश के बदले वे अपनी बेटी की खुशियाँ खरीदते है| पर क्या सच में खुशियाँ खरीद लेते हैं या यह माना जाए की बेटे की शादी के पिछे का पहला मंतव्य अपने लालच की डागर भरना हैं|


आज दहेज के नाम पर बड़ी-बड़ी वस्तुओं, कई तोला सोना और धन की मांग की जाती है| लोग बेफिक्र दहेज मांगने में बिल्कुल भी शर्म महसूस नहीं करते और एक लम्बी सी लिस्ट दे दी जाती हैं| सरकार ने दहेज लोभियों को दंडित करने के लिए अनेक नियम बनाए हैं परन्तु फिर भी यह प्रथा समाज में पनप रही है| अपने लालच की चादर पसारे धड़ल्ले से लोभीचारी अपनी माँगे रखते हैं|

दहेज प्रथा कानून

• दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है|
• दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है|
• धारा 406 के अन्तर्गत स्त्रीधन को लडकी को सौंपने से मना करने पर लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनो|
• यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के अंदर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है|
दहेज एक सामाजिक कोढ़ है| इससे मुक्त होने के लिये मानसिकता मे परिवर्तन अनिवार्य हैं| लड़कियों और लड़कों में भेद किए बिना उन्हें समान दर्जा देना होगा| उनको शिक्षित करना होगा|

अब यह समाज पर है कि वह जागरूक हों तथा स्थिति को समझे| यह हम सबका दायित्व है कि आवश्यक बदलाव के लिए कदम उठाएं एवं दहेज देना या लेना बन्द करें| यह हम सबको जानना चाहिए कि पहले हम अपनी बेटियों का मूल्य समझें, ताकि जब वे बड़‍ी हों तो अन्य लोग भी उनका मूल्य समझें|

मध्यम वर्गीय और निर्धन पिता जो बेटी की शादी मे तो लाखो रूपये खर्च कर सकते हैं पर उनकी उच्च शिक्षा और करियर के लिये ये रूपये खर्च करना व्यर्थ समझते हैं| ऐसे परिवार के लिए अपनी सोच मे परिवर्तित लाना अति आवश्यक हैं| बेटियों को अपना भविष्य निर्धारित करने का अधिकार दे और उनका सहयोग करें|

युवा पीढ़ी, जिसे समाज का भविष्य समझा जाता है, उन्हें इस प्रथा को समाप्त करने के लिए आगे आना होगा ताकि भविष्य में कोई भी वधू दहेज हत्या की शिकार ना बने|

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