उद्यमिता की मिशाल हैं लिज्जत पापड़ की संस्थापक जसवंतिबेन जमनादास पोपट : महिलाओं को बना रही हैं आत्मनिर्भर

₹80 की उधारी से शुरूआत की थी अब, है ₹1600 करोड की कंपनी| लिज्जत पापड़ की 81 ब्रांचस् में 45000+ महिलाएं कर रही है काम| केवल पापड़ के साथ शुरूआत करते हुए, लिज्जत अब कई उत्पादों का निर्माण करता है, जिसमें अप्पम, गेहूं का आटा, मसाला, डिटर्जेंट पाउडर, तरल डिटर्जेंट और साबुन आदि शामिल हैं|

यदि आप किसी ऐसे खास चीज पर कार्य कर रहे है जिसकी आपको वास्तव में परवाह है, तब आपको आगे बढ़ने के लिए कहना नही होगा| आपका नजरिया आपको आगे बढ़ा देगा| ~Steve Jobs

महिलाएं किसी भी रूप मे पुरूषों से कम नही हैं| आत्मनिर्भरता के लिए सर्वप्रथम महत्वपूर्ण हैं, हर झिझक और डर को दरकिनार कर दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना| अगर स्वयं पर विश्वास हो तो कुछ भी असम्भव नही|

 
महिला सशक्तिकरण की यह प्रेरणा पुंज वर्ष 1959 से देदीप्यमान हैं| यह कहानी हैं, जसवंती जमनादास पोपट की| एक ऐसा समय, जब कोई उद्यमिता की बात भी नही करता था उस समय जसवंती बेन ने अपनी 6 सहेलियों के साथ मिलकर एक कांतिमान उद्यम की नीव रख दी जो आज जाना-पहचाना ब्रांड हैं| जिसने हजारों महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया| जसवंती बेन को उनके उद्यम क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु 91 वर्ष की आयु में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री (2021) से सुशोभित किया गया|
 
जसवंती बेन कम पढ़ी-लिखी थी और गरीब परिवार से आती थी| अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने और अपने पति का सहयोग करने की अभिलाषा से जसवंती बेन ने कुछ करने की ठानी| कम शिक्षित होने के कारण किसी अच्छे क्षेत्र में नौकरी मिल पाना तो सम्भव नही था|
 
तब उन्होंने अपने एकमात्र कौशल अपनी पाक कला मे निपुर्णता का सदुपयोग करने का निश्चय किया| फिर क्या मुम्बई के गिरगाँव में पाँच इमारतों के समूह लोहाना निवास में रहने वाली पडोसी 7 गुजराती महिलाओं ने मिलकर अपनी पाक कौशलता द्वारा पापड बनाने का काम करना निश्चित किया|
 
जसवंती बेन ने अपने कार्य की शुरूआत के लिए, सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी के सदस्य और एक सामाजिक कार्यकर्ता छगनलाल करमसी पारेख से 80 रुपये उधार लिए| जिससे उन्होंने पापड बनाने के लिए आवश्यक सामग्री को खरीदा| छगनलाल पारेख जिन्हें लोकप्रिय रूप से छगनबापा के नाम से जाना जाता है, उनके मार्गदर्शक भी थे|
 
जसवंती बेन और अन्य 6 महिलाओं पार्वती बेन रामदास थोदानी, उजम बेन नारंदास कुंडलिया, बनू बेन एन. तन्ना, लगु बेन अमृतलाल गोकानी, जया बेन वी. विठलानी, और दिवाली बेन लुक्का ने मिलकर अपनी इमारत की छत पर एकत्रित होकर 15 मार्च 1959 में अपनी उद्यमिता का शुभारंभ किया|
 
 
उन्होंने शुरूआत 4 पैकेट पापड बनाने से की| जिसे उन्होंने भुलेश्वर में एक जाने-माने व्यापारी को बेचा| उनके खरीदारो को इस महिला समूह के पापड का स्वाद बहुत पसंद आया| जल्द ही उनके पापड की मार्केट मे काफी माँग बढी| और उन्होंने शहर के अन्य हिस्सों में भी अपने पापड़ को बेचना शुरू किया|
 
छगनबापा ने उन्हें एक समान गुणवत्ता वाले पापड़ बनाने की सलाह दी और उन्हें कभी भी गुणवत्ता से समझौता नहीं करने के लिए कहा| उन्होंने उन्हें एक व्यावसायिक उद्यम के रूप में चलाने और उचितरूप से खाता-लेखो को बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया|
 
जसवंती बेन ने अपने व्यावसाय का एक सहकारी प्रणाली के रूप में विस्तार किया| प्रारंभ में, छोटी लड़कियां को भी शामिल किया गया, लेकिन बाद में 18 वर्षिय न्यूनतम आयु सीमा तय की गई| तीन महीनों के अंदर ही उनके साथ पापड़ बनाने वाली लगभग 25 महिलाएँ जुड गईं|
 
जल्द ही महिलाओं ने व्यापार के लिए कुछ उपकरण खरीदे, जैसे बर्तन, अलमारी, स्टोव, आदि| पहले वर्ष में, संगठन की वार्षिक बिक्री ₹6196 हुईं| टूटे हुए पापड़ पड़ोसियों के बीच वितरित कर दिए जाते थे|
 
पहले वर्ष के दौरान, महिलाओं को बरसात के मौसम में चार महीने के लिए उत्पादन बंद करना पडा था क्योंकि इस मौसम में पापड सूख नही पाते थे| अगले साल, उन्होंने खाट और स्टोव खरीदकर समस्या का हल किया|
 
इस समूह को मुखर प्रशंसा और समाचार पत्रों में लेखों के माध्यम से काफी प्रचार मिला| इस प्रचार ने इसकी सदस्यता बढ़ाने में मदद की| इसके गठन के दूसरे वर्ष तक, 100 से 150 महिलाएं समूह में शामिल हो गई थीं, और तीसरे वर्ष के अंत तक इनके साथ 300 से अधिक महिला सदस्य थीं|
 
जितनी भी महिलाएं इस व्यवसाय से जुड़ी है वह आर्थिक रूप से कमजोर और अपनी खराब आर्थिक स्थिति के कारण ज्यादा शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाई थी|
 
इस समय तक, सात संस्थापकों की छत अब सदस्यों और सामग्री को समायोजित नहीं कर सकती थी, इसलिए गूंधे हुए आटे को उन सदस्यों के बीच वितरित किया जाता था जिसे वे अपने घरों में ले जाती थी और पापड़ बनाती थी| फिर पापड़ को तौल कर और पैकेजिंग के साथ वापस किया जाता था|
 
1962 में समूह ने अपने पापड़ का नामकरण किया और यह नाम था ‘लिज्जत पापड़’| लिज्जत गुजराती शब्द है, जिसका अर्थ स्वादिष्ट होता है| साथ ही, इस ऑर्गेनाइजेशन का नाम रखा गया ‘श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़’| नामकरण के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की गईं थी, जिसके तहत धीरजबेन रूपारेल द्वारा ‘लिज्जत पापड़’ नाम को चुना गया और उन्हें ₹5 पुरस्कार राशि दी गईं|
 
1962-63 तक, लिज्जत पापड़ की वार्षिक बिक्री 182,000 हो गईं थी| जुलाई 1966 में, सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत लिज्जत को पंजीकृत किया|
 
महाराष्ट्र के बाहर पहली शाखा 1968 में वलोड, गुजरात में स्थापित की गई थी| अपने पापड़ों के साथ जबरदस्त सफलता का स्वाद चखने के बाद, लिज्जत ने अन्य उत्पादों जैसे खाखरा (1974), मसाला (1976), वडी, गेहूं का आटा और बेकरी उत्पादों (1979) का उत्पादन शुरू किया| 1970 के दशक में, लिज्जत ने आटा मिलों (1975), प्रिंटिंग विभाग (1977) और पॉलीप्रोपाइलीन पैकिंग विभाग (1978) की स्थापना की|
 
1987 में, लिज्जत का मुंबई के उपनगर बांद्रा में कमल अपार्टमेंट में नया परिसर खरीदा गया| जुलाई 1988 से पंजीकृत कार्यालय बांद्रा में स्थानांतरित हो गया| 1988 में, लिज्जत ने सासा डिटर्जेंट और साबुन के साथ साबुन बाजार में प्रवेश किया| सासा की वार्षिक बिक्री ₹500 मिलियन थी, जो 1998 में लिज्जत के कुल कारोबार का 17% था| मार्च 1996 में, लिज्जत की 50वी शाखा का उद्घाटन मुंबई में किया गया था|
 
1980 और 1990 के दशक में, लिज्जत ने विदेशी आगंतुकों और अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करना शुरू कर दिया| युगांडा की पूर्व उप-राष्ट्रपति डॉ. स्पैसिओसा वांडिरा काजीब्वे ने जनवरी 1996 में लिज्जत के केंद्रीय कार्यालय का दौरा किया, क्योंकि वह युगांडा में इसके समान संस्थान शुरू करना चाहती थी|
 
लिज्जत ने यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, सिंगापुर, नीदरलैंड थाईलैंड और अन्य देशों में व्यापारी आयातकों की मदद से अपने उत्पादों का निर्यात शुरू किया|
 
2002 में, लिज्जत ने 3 अरब रुपये का कारोबार किया और 100 करोड़ रुपये का निर्यात किया| साथ ही पूरे देश में 62 शाखाओं में 42,000 महिलाओं को रोजगार दिया|
 
आज लिज्जत की 80 से ज्यादा शाखाएँ पूरे देश मे विस्तृत हो चुकी हैं जिसमें 45000 से ज्यादा महिला सदस्य काम करती हैं| इस संगठन में पुरूष केवल एकाउंटेंट, ड्राइवर या सुरक्षा गार्ड के रूप में कार्यरत हैं, वे संगठन के सदस्य नही बनते |
 
लिज्जत बाकी कंपनियों से अलग है, इस व्यापार में सभी महिला सदस्य हैं| यहां अध्यक्षता कार्यकारी समिति से सदस्य बारी-बारी से संभालते हैं और वो भी सबकी सहमति से चुने जाते हैं। यानी सबको मौका दिया जाता है जो इस उद्योग की सफलता में एक अहम किरदार निभाते हैं| हर शाखा का नेतृत्व एक संचालिका करती है और यह हर साल बदलती रहती हैं|
 
लिज्जत समूह की दो सबसे अच्छी बातें यह है कि लिज्जत पापड़ सरकार से किसी भी तरह की आर्थिक सहायता नहीं लेती और यहां काम करने वाली हर महिला को ‘बहन’ शब्द से संबोधित किया जाता है, जिस कारण सब एक समान दिखते हैं|
लिज्जत पापड़ को देश-विदेश में प्रसिद्धि प्राप्त हैं, इसका कारण है इसकी गुणवत्ता| इसकी गुणवत्ता का श्रेय इस व्यापार से जुड़ी सभी महिलाएं को जाता हैं जो यहां बनने वाले पापड़ों की गुणवत्ता का खास ख्याल रखती हैं| यहां अभी भी पापड़ों को मशीन से नहीं बल्कि हाथों से बनाया जाता है और आटा गूंथना, लोई बनाना, पापड़ बनाना, सुखाना और पैंकिग इस पापड़ के मुख्य चरण हैं|
 
लिज्जत पापड़ के संस्थापको मे अब तक केवल 91 वर्षिय जसवंती बेन ने ही लिज्जत पापड़ के साथ अपने 62 सालो के सफर को तय किया है|
 
लिज्जत पापड़ प्रमाण हैं, महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता की भावना जिसने एक घरेलु व्यवसाय को एक बडे व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया|
 
Jagdisha का जसवंती बेन को सहृदय प्रमाण और अनेकानेक शुभकामनाएं|

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