जादू-टोना, चुडैल और डायन प्रथा जैसी कुप्रथा और अंधविश्वास के खिलाफ उठा रही हैं आवाज : बीरूबाला राभा

 

साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन,
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है|
-आल-ए-अहमद सूरूर
 
असम की 72 वर्षीय बीरूबाला राभा, महिलाओं को डायन बताकर उनकी बदहाली करने और मार देने वाले अंधविश्वास के खिलाफ वर्षों से संघर्ष कर रहीं हैं और अब तक 200 से अधिक महिलाओं के जीवन को बचा चुकी हैं| उनकी कोशिशों का ही परिणाम है कि वहां की विधानसभा ने “डायन हत्या निषेध” 2015 विधेयक पारित किया|
 
आखिर क्या हैं एक नारी, कोई वस्तु मात्र जो सति प्रथा, दहेज प्रथा और डायन प्रथा जैसी कुप्रथाओ का सहारा ले उन पर अत्याचार करने का अवसर तय किया गया| कहने को एक नारी देवी है, पूजनीय है, वंदनीय है तो फिर डायन, डाकिनी, चुड़ैल, जादुगरनी, पिशाचिनी, टोटगायली, मनहूस, अपशकुनी, मसानी जैसे अनेक काले शब्दों का पर्याय उनके लिए क्यों? क्या और क्यों है ये सब?
 
डायन प्रथा मुख्य रूप से राजस्थान में देखने को मिलती थी, मगर पूर्वी उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ पिछड़े हुए इलाके हैं जहाँ यह कुप्रथा ग़ैरकानूनी होने के बावजूद भी अपने पाँव पसार रही है| असम, बंगाल और झारखंड में यह भयावह रूप में आज भी जीवित है|
 
समाजसुधारक बीरूबाला राभा का जन्म असम के सुदूर उत्तर-पूर्वी गाँव में हुआ था| उनके जीवन का संघर्ष बचपन से ही शुरू हो गया था| जब वह सिर्फ 6 वर्ष की थी, तब उनके पिता की मृत्यु हो गईं थी| पिता की मृत्यु के बाद आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनका स्कूल जाना संभव न था| वह खेतों और घर में कृषक मजदूर माँ का सहयोग करने लगी|
समय के पड़ाव के साथ 15 वर्ष की आयु में उनकी माँ ने उनका विवाह एक किसान युवक के साथ करवा दिया| विवाह के पश्चात उनका अधिकतर समय घरेलू कामो में व्यतीत होता था| बढते समय के साथ साथ वह 3 बच्चों की माँ बन गईं और उनका पूरा समय बच्चों और घर की देखभाल में बीतने लगा| उनका जीवन एक साधारण परिवार की जीवनशैली से खुशहाल चल रहा था|
 
अपने समाज और गाँव में डायन कुप्रथा से वह परिचित तो थी परन्तु अभी तक अपने जीवन के उद्देश्य को जाना नही था| ये समाजिक अंधविश्वास कितना विषाक्त हैं, इसकी अनुभूति उन्हें 1980 दशक के मध्य में हुईं| इस कठोर सत्य को उन्होंने तब जाना, जब 1985 में उनका बड़ा बेटा धर्मेश्वर टायफायड बिमारी से पीड़ित हो गया|
 
एक सुदूर और पिछडे गाँव में डॉक्टर से ज्यादा झाड-फूक, तांत्रिक और निम-हकीम बाबाओं का ज्यादा बोल बाला होने के कारण गाँव के लोगो के कहने पर देवधानी नाम की एक तांत्रिका के पास उनके बेटे को ले जाया गया|
 
जादू-टोना, चुडैल और डायन प्रथा जैसी कुप्रथा और अंधविश्वास के खिलाफ उठा रही हैं आवाज : बीरूबाला राभा

अब इन तंत्र मंत्र वालो को बिमारी की जड का क्या ज्ञान, उसने पीड़ित की नब्ज टटोली और कह दिया की उनके बेटे पर एक गर्भवती ‘डायन’ का साया है, और 3 दिनों में वह मृत्यु की गोद में सो जायेगा| एक माँ के लिए उसके बेटे की मृत्यु की बात संघन घात के समान होती हैं, जिसकी कल्पना मात्र ही माँ को विचलित कर देती हैं| उन्होंने अपने बेटे का डॉक्टर द्वारा इलाज करवाने का फैसला लिया और उनका बेटा बिमारी को हराकर स्वस्थ हो गया|

 
लेकिन बीरूबाला राभा के गांव में यह रूढ़िवादिता न जाने कब से अपनी जड़ें जमाए बैठी थी| एक अच्छी भली महिला को ‘डायन’ बताकर ग्रामीणों द्वारा मार-पीटकर गांव से बाहर निकाल देना, उनका शोषण करना या उन्हें मृत्यु के द्वार तक पहुँचा देना तो जैसे आम बात थी|
 
बेटे के स्वस्थ होने के साथ ही बीरूबाला राभा समझ गईं थी, कि ये तांत्रिक, ओझा, नीम- हकीम सिर्फ भोले-भाले लोगों को अपने स्वार्थ के कारण ठगते हैं और बदले में बेकसूर महिलाओं के जीवन को बर्बाद कर देते हैं|
 
इस अनुभव ने उनको पूरी तरह झिंझोड़ दिया था| किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिये इन नीम-हकीमों के पास जाना उन्होंने बिल्कुल बंद कर दिया और गाँव वालो को भी समझाया|
 
बीरूबाला राभा को यह विश्वास हो गया था कि महिलाओं पर हो रहे इस अन्याय को रोकने के लिए उन्हें कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए|
 
 
गाँव की जिस महिला पर डायन होने का दोष लगा दिया जाता, उसका पूरा परिवार ही सामाजिक तिरस्कार को झेलने को मजबूर होता|
 
बीरूबाला राभा अपने उद्देश्य से परिचित हो चुँकि थी, स्वयं के अनुभव के पश्चात अंधविश्वास की बली चढ़ने वाली महिलाओं को बचाने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ अपनी राह की ओर चल दी| वह एक स्थानीय महिला संस्थान के साथ जुड़ गईं|
 
कुछ ही दिनों बाद उन्हें पता चला कि पड़ोस के गांव में डायन दोष लगाकर कई महिलाओं को उत्पीड़ित किया जा रहा है। बीरूबाला राभा तो इस बुराई की जड़ों को उखाड़ने के लिए संकल्प ले ही चुँकि थी, तो बस फिर क्या था, वह उस गांव की तरफ चल पड़ीं| वहां पहुंच कर जब उन्होंने उन महिलाओं की दुर्दशा देखी, तब जैसे उनके हृदय पर कठोर प्रहार हुआ| वह गांव के मुखिया व समाज के प्रभावशाली लोगों से मिलने पहुँची और उन्हें अपने बेटे के साथ हुईं पूरी घटना का विवरण सुनाया|
 
बीरूबाला राभा ने उन्हें समझाया कि दुनिया में डायन जैसा कुछ भी नहीं होता ये मनघडण बाते है, जिसके सहारे अपनी ईष्या और लालच के वशीभूत मनुष्य महिलाओं पर अत्याचार करते हैं|
 
न जाने कब से इन सुदूर इलाकों में महिलाओं की जमीन और संपत्ति हड़पने के लिए या फिर उनके यौन शोषण में असफल रहने पर एक षड्यंत्र के तहत उन्हें ‘डायन’घोषित करने का खेल खेला जा रहा था|
 
कानून व्यवस्था न होने के कारण असम में पाखंडियों को खुलकर यह खेल खेलने को मिलता रहा| खासकर अकेली महिलाओं, विधवाओं या फिर वृद्ध दंपतियों को निशाना बनाया जाता| बीरूबाला राभा यह पाखंड खेल समझ गई थीं| उन्होंने इस सामाजिक कुरीति से खुलकर अवरोध करना प्रारंभ कर दिया| लेकिन यह लोहे के चने चबाने जैसा था|
इन षडयंत्रो का शिकार न केवल महिलाएं अपितु पुरूषों को भी बनाया जाता हैं|
 
झाड़-फूंक, जादू-टोने वालो की तो दुकानदारी पर खतरा घिर गया और षडयंत्रकारियों का जाल टूटने लगा| परिणाम स्वरूप बीरूबाला राभा के जीवन पर संकट के बादल घिर गए|
उन पर डायन होने का आरोप लगा, पडोसियों कि मृत्यु का कारण बताया गया| उन पर कई हमले किए गए, लेकिन यह निडर और साहसी महिला सत्य की टोर्च लिए गांव-गांव जा कर जादू-टोनों के पाखंड को उजागर करती रही| उन्होंने कानून का सहारा लिया और पीड़ित महिलाओं के लिए पुलिस-प्रशासन से इंसाफ और संरक्षण भी बुहार लगाईं|
 
2011 में उन्होंने अपनी इस डायन कुरीति से लड़ाईं को अपने नाम की “मिशन बीरूबाला” संस्था स्थापित की जिसके अंतरगत वह गाँव-गाँव जाकर किसी के डायन होने के अंधविश्वास के प्रति लोगो को जागरूक करने लगी|
 
उनके निरंतर प्रयासों का ही परिणाम है, कि 2018 में असम सरकार द्वारा डायन या चुड़ैल प्रताड़ना रोकथाम और संरक्षण अधिनियम, 2015 को पारित किया गया| असम सरकार द्वारा 2015 में चुड़ैल प्रताड़ना रोकथाम और संरक्षण अधिनियम राज्य विधानसभा मे पेश किया गया था और अंततः 3 वर्षो के बाद जून 2018 में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की स्वीकृति से यह “संज्ञेय, गैर-जमानती और समझौते के अयोग्य” अपराध के रूप में बिल पारित किया गया|
 
उन्होंने लगभग 200 महिलाओं को इस कलंक से आजाद कराकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ा|
 
बीरूबाला राभा को कई देश-विदेश सम्मानो से सम्मानित किया गया हैं| वर्ष 2016 में बीबीसी ने उन्हें भारत की 20 गुमनाम नायिकाओं में शुमार किया था। उन्हें वर्ष 2018 में विमेन वर्ल्ड समिट फाउंडेशन (WWSF) पुरस्कार से सम्मानित किया गया| गौहाटी विश्वविद्यालय के सहयोग से जेवियर फाउंडेशन ने उन्हें उनके उत्कृष्ट कार्य हेतु प्रमाण पत्र प्रदान किया| वह WWSF-विमेन वर्ल्ड समिट फाउंडेशन, जिनेवा, स्विट्जरलैंड द्वारा $1000 नकद पुरस्कार प्राप्तकर्ता भी रही|
भारत सरकार ने बीरूबाला राभा को सामाजिक कार्य में योगदान के लिए 2021 में भारत के चौथे सबसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया|
 
डायन, चुडैल जैसे अंधविश्वास की उत्पत्ति का मुख्य कारण देश के इन सुदूर इलाको में शिक्षा और स्वास्थ्य संस्थानो का अभाव होना हैं| किन्तु इस अखंड सत्य का भी खंडन नहीं किया जा सकता कि बीरूबाला राभा जैसी अडिग महिला या पुरुष ही बदलाव ला देश का गौरव बढ़ाते हैं|
 
Jagdisha का इस महान संघर्षवान, समाजसुधारक और समाजसेवी महिला बीरूबाला राभा को नतमस्तक प्रणाम और अनेकानेक शुभकामनाएं|

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