हिम्मत और जज्बे की साक्षात प्रतिमूर्ति, जिन्होंने साबित कर दिया कि दुर्बलता तो सिर्फ mind में होती है

आत्मविश्वास और लक्ष्य के प्रति पूर्ण निष्ठा अगर है तो शारीरिक विकलागता शून्य भर हो जाती है |

इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास, अपने लक्ष्य के प्रति जूनून, कुछ कर गुजरने बुलंद हौसला और दृढ़ सकल्प ये वो हथियार है जो किसी भी कमजोर मानसिकता की दुर्बलता को सहज ही काट सकते है|

ज्यादातर छोटी-छोटी बातो और घटनाओ से सभी भयभीत हो जाते है| थोड़ी सी विपरीत परिस्थितियों को देख कर ऐसे व्यवहार करते है जैसे ईश्वर ने सारा कष्ट उन्हें ही दे दिया है | अपनी किस्मत को कौसने लगते है, ईश्वर से शिकायत करते की उन्होंने ऐसा क्यों किया| शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति भी थोड़े से कष्ट से खबरा जाता है |

लेकिन हालात का सामना कैसे करना चाहिए और परिस्थितियो को कैसे अपने अनुकूल किया जा सकता है इसका सुदृढ़ उदाहरण हैं अरुणिमा सिन्हा| एक दुर्घटना में अपना पैर गवाने के बाद भी खुद को बेरुखी के अंधकार में नही जाने दिया और भरपूर साहस के साथ कृतिम पैर होने के बावजूद दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी-एवरेस्ट को फतह करने वाली विश्व की पहली दिव्यांग महिला और पहली दिव्यांग भारतीय बनी|

अरुणिमा सिन्हा जिन्होंने से साबित कर दिया की लगन, हौसले और आत्मविश्वास से अगर कुछ भी किया जाये तो परिस्थितिया भी आपके ही अनुसार चलने लगती है|

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई 1988 में हुआ था| वह उत्तर प्रदेश राज्य के अम्बेडकर नगर जिले के शहजादपुर इलाके के पंडाटोला मुह्हले की निवासी है| वह बचपन से वालीवाल में रूचि रखती थी और भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना इनका मुख्य लक्ष्य था| समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर और कानून की डिग्री लेने के साथ उन्होनें राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी के रूप में पहचान बनाई|

Mountaineer Arunima Sinha

पर कहते है न हर किसी के जीवन में कभी न कभी ऐसा भी वक्त आता है जो इंसान के जीवन को बदलकर रख  देता है ऐसा ही कुछ अरुणिमा सिन्हा के साथ भी हुआ जो वह 11 अप्रैल 2011 की वो काली रात कभी नही भूल सकती|

वे 2011 में पद्मावत एक्सप्रेस से लखनऊ से नई दिल्ली जा रही थीं| बरेली के पास लगभग 1 बजे कुछ लुटेरों ने उनके गले में पड़ी सोने की चैन खीचनी चाही परन्तु जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उन लूटपाट में नाकाम रहने पर लुटेरों ने उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया| उसी समय दूसरे ट्रैक से ट्रेन गुजर रही थी, वह उससे टकराई और इस हादसे में उनका बाया पैर पटरियों के बीच में आ जाने से कट गया और दाँये पैर की भी हड्डिया भी टूट गई थी| पूरी रात वह दर्द से कराहती रही उन्हें कोई मदद नही मिली क्योकि उस समय आस-पास कोई नही था| चूहे उनके कटे हुए पैर को कुतर रहे थे पर वह कुछ नही कर पा रही थी| लगातार ट्रेन आ-जा रही थी, उस रात 49 ट्रेन उनके पास से गुजरी| पर अपने जीवन में आए इस भीषण संकट से भी अरुणिमा सिन्हा ने हार नहीं मानी|

सुबह जब कुछ गांव वालों ने उन्हें देखा तो पास के अस्पताल में लेकर गए| वहाँ के डॉक्टर परेशान थे की उनका इलाज कैसे शुरू करे क्योकि उनके पास एनीस्थीसिया, ब्लड, ओक्सीजन मौजूद नही था| तब भी साहस से भरी अरुणिमा सिन्हा ने डॉक्टर से कहा जब वह पूरी रात दर्द बरदास्त कर सकती है तो वह तो उनके भले के लिए उनका पैर काट रहे है तो बिना एनीस्थीसिया ही काट दे| डॉक्टर्स ने भी उनके साहस को सलाम किया और वहाँ के डॉक्टर्स और फर्मेर्सिस ने उन्हें ब्लड दिया| बिना एनीस्थीसिया ही उनका पैर काटना पड़ा|

फिर मिडिया में इस घटना के पता चलने के बाद क्योकि वह राष्ट्रिय वॉलीबॉल खिलाड़ी थी तब उन्हें ओर अच्छा ट्रीटमेंट मिला और नई दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया|

उस समय मीडिया और न्यूज़पेपर ने अरुणिमा की जमकर आलोचना की तथा अरुणिमा को तरह तरह की बातों का सामना करना पड़ा।

न्यूज़ में कहाँ जा रहा था की उनके पास टिकेट नही था तो टीटी के आने पर उन्होंने चलती ट्रेन से छलांग लगा दी| तो दूसरी न्यूज़ में आया की उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की|

उनके परिवार ने इस बात का खंडन भी किया किन्तु किसी ने उनकी बात न सुनी| अरुणिमा को जिस समय मीडिया और समाज के लोग लाचार समझ रहे थे। उस समय अरुणिमा के अंदर कुछ और ही चल रहा था।

उन्होंने फैसला किया वह लोगों की मुंह बंद कर देंगी। वह लाचार ना रहकर ऐसा कुछ कर दिखाएंगी जो आज तक के इतिहास में किसी ने ना किया हो। उन्होंने हॉस्पिटल के बेड पर ही इसके लिए दुनिया के सबसे कठिन स्पोर्ट्स हिल क्लाइंबिंग को चुना और सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ाई करने का फैसला लिया।

जरा सोचिये जो शरीर से हष्टपुष्ट होता है उसके भी पैर एवेरेस्ट फतह के नाम से डगमगाने लगते है ऐसे में अगर कोई भी अरुणिमा सिन्हा के इस फैसले को सुनता तो दातो तले ऊँगली दबा लेता| उनका उपहास उड़ाया गया, उन्हें लोग पागल और सनकी समझने लगे यहाँ तक की हॉस्पिटल में उन्हें देखने के लिए मानसिक डॉक्टर को भी बुलाया गया| किन्तु उनके परिवार ने उनका भरपूर साथ दिया|

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जिन हालात में अरुणिमा थीं, उसमें लोगों को खड़े होने के लिए सालों लग जाते हैं, वहीं अरुणिमा केवल चार माह में ही उठ कर खड़ी हो गईं| अरुणिमा सिन्हा के बाये पैर को कृत्रिम पैर के सहारे जोड़ दिया गया था|

बायां कृत्रिम पैर, दाएं पैर की हड्डियों में पड़ी लोहे की छड़ और शरीर पर जख्मों के निशान के साथ एम्स से बाहर आते ही अरुणिमा सिन्हा सीधे अपने घर न आकर एवरेस्ट पर चढऩे वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बछेंद्री पॉल से मिलने जमशेदपुर जा पहुंचीं|

अरुणिमा सिन्हा के इस हालत को देखते हुए पहले बछेन्द्री पाल ने उन्हें आराम करने की सलाह दी लेकिन अरुणिमा सिन्हा के बुलन्द हौसलो को देख वे नतमस्तक हो गयी और बोली तुमने तो अपने हौसलो के बल पर अपने अन्दर तो एवरेस्ट की ऊँचाई को पार कर लिया है अब तो बस दुनिया के लिए अपने में फतह की तारीख लिखनी है|

उन्होंने बछेन्द्री पाल की निगरानी में नेपाल से लेकर लेह, लद्दाख में पर्वतारोहण के गुर सीखे| उत्तराखंड में नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग और टाटा स्टील ऑफ एडवेंचर फाउंडेशन से प्रशिक्षण लेने के बाद उन्हें स्पॉन्सरशिप मिली और 1 अप्रैल, 2013 को उन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की|

उन्हें एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। रॉकी स्थान पर वे सबसे आगे रही लेकिन नीली और हारी दिखने वाले बर्फीले पर्वत पर उन्हें काफी मुश्किल झेलनी पड़ी, उनका कृत्रिम पैर पूरी तरह घूम जाता था| लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी और अपने पथ पर पूर्ण विश्वास से चलती रही|

अपनी चढ़ाई के तीन स्तर पार करने के बाद जब वे अपने अगले पड़ाव के लिए बढ़ी तो हर तरफ उन्हें मृत शरीर दिखाई दे रहे थे| 10-15 मिनटो के लिए वे रुकी पर मन में दृढ़ सकल्प के साथ खुद से और उन मृतको से वादा किया की वह माउंट एवरेस्ट को फतह जरुर करेगीं|

अंत की सौ मीटर चढ़ाई के दौरान उनका ऑक्सीजन खत्म होने की कगार पर था और इस स्थिति में उनके गाइड और बाकी एवरेस्ट क्लाइंबर ने अरुणिमा को वापस लौटने की सलाह दी। लेकिन कहते हैं ना कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ठीक वैसे ही अरुणिमा के हौसलों के आगे एवरेस्ट को भी झुकना पड़ा। उन्होंने 21 मई 2013 को 10:55 पर  दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर एक नया इतिहास रच दिया।

वह एवेरेस्ट पर सफल चड़ाई करने वाली पहली भारतीय विकलांग महिला का वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। एवरेस्ट से उतरने के दौरान उनका ऑक्सीजन पूरी तरह से खत्म हो गई। लेकिन वह कहते हैं ना कि जो सच्चे दिल से कोशिश करते हैं उनका भगवान भी साथ देता है। ठीक वैसा ही अरुणिमा के साथ हुआ। एक ब्रिटिश क्लाइंबर ने एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान मौसम खराब होने की वजह से दो में से एक ऑक्सीजन सिलेंडर जिसमे ऑक्सीजन कम बची थी वही फैका और नीचे की ओर लौट गया| उनके गाइड ने वह ऑक्सीजन सिलेंडर लिया और अरुणिमा को दिया और वापस नीचे की तरफ लौटने लगे।

अब भी मुश्किलें उनका पीछा नही छोड़ रही थी, एकाएक उनका कृत्रिम पैर निकल गया| पर सलाम है इस बहादुर नारी को जिसकी हिम्मत एक बार डगमगाई जरुर पर उन्होंने हार नही मानी, एक हाथ से रस्सी को पकड़ा दूसरे से अपने कृत्रिम पैर को और घसीटते हुए आगे बढती रही| कुछ दूर ऐसे ही चलने पर रॉकी जगह पर कृत्रिम पैर खोला और उसे सही किया|

चौथे स्तर से एवरेस्ट सम्मिट में 3500 फीट है जिसे साधारणत: 15-16 घंटे लगते किन्तु अरुणिमा सिन्हा ने यह 28 घंटो में पूरा किया| इसी कारण बाकी एवरेस्ट क्लाइंबर ने मान लिया था की वह जिन्दा वापस नही आएगी|

अरुणिमा सिन्हा दुनिया को सिर्फ यह बताना चाहती हैं कि अगर कोई शख्स लक्ष्य हासिल करने की ठान ले तो कोई बाधा उसे नहीं रोक सकती|

भारत सरकार ने 2015 में उनकी शानदार उपलब्धियों के लिए चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान-पद्मश्री से नवाजा। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणिमा की जीवनी-‘बॉर्न एगेन इन द माउंटेन’-का लोकार्पण किया। सन 2016 में अरुणिमा सिन्हा को अम्बेडकरनगर रत्न पुरस्कार से अम्बेडकरनगर महोत्सव समिति की तरफ से नवाजा गया |

अरुणिमा ने अपने हौसले और जूनून के दम पर कृत्रिम पैर के द्वारा अब तक माउंट एवरेस्ट के अलावा, माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका), माउंट कोजिअस्को (आस्ट्रेलिया), माउंट अकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका), कारस्टेन्ज पिरामिड (इंडोनेशिया) और माउंट एलब्रस (यूरोप) की चढ़ाई कर ली है| 

माउंट विन्सन (अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी ) पर चढ़ाई करने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला का विश्व रिकॉर्ड भी हमारे देश के नाम पर हो गया है। अरुणिमा ने 3 जनवरी 2019 गुरुवार को 12:27 मिनट पर अंटार्कटिका के सबसे ऊंचे शिखर माउंट विंसन का माथा चूम लिया।

उन्होंने लखनऊ में 120 विकलांग बच्चों को गोद लिया है और हर संभव तरीके से उनकी मदद कर रही हैं|

उन्हें ब्रिटेन की एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया है।
पद्मश्री अरुणिमा सिन्हा ने 21 जून 2018 गुरुवार को परिणय सूत्र में बंधकर जीवन की नई पारी की शुरुआत की। अरुणिमा का विवाह पैरा ओलंपिक खेलों में शानदार प्रदर्शन करने वाले शूटर गौरव सिंह से हुआ।


अरुणिमा सिन्हा ने 13 अगस्त 2014 को अरुणिमा फाउंडेशन नाम से एक ट्रस्ट बनाया था|
अरुणिमा सिन्हा ने जीवन में प्रत्येक हारे हुए लेकिन महत्वाकांक्षी दिव्यांग का सहारा बनने के उद्देश्य से तथा समाज कल्याण की भावना से शहीद चंद्रशेखर आजाद दिव्यांग खेल एकेडमी (Shaheed Chandra Shekhar Azad Divyang Khel Academy) की स्थापना की है |

जिसे अरुणिमा फाउंडेशन (Arunima Foundation ) द्वारा संचालित किया जा रहा है | इसमें दिव्यांग खिलाड़ियों को प्रशिक्षित तथा प्रोत्साहित किया जाता है तथा उन्हें सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाती है | यह एकेडमी दिव्यांग खिलाड़ियों को सम्मान पूर्वक शारीरिक और सामाजिक विकास में सहायता प्रदान करती हैं | अरुणिमा चाहती है कि उनका कीर्तिमान भारतीय दिव्यांग पर्वतारोही ही तोड़कर नए इतिहास की रचना करें |

Jagdisha,  अरुणिमा और उनकी आत्मनिर्भरता व साहस और समाज को बदलने के जज़्बे को सलाम करता है  और उनके इस साहसी कदम से अनेकानेक महिलाओं को हिम्मत और प्रेरणा मिलेगी   निश्चित रूप से समाज के लोग हिम्मत और साहस से प्रेरित होंगे |

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